केजरीवाल की एक और नौटंकी

लेखक : नवीन जैन 

स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)

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आज वो हरेक आदमी अंदर से फिर टूट गया होगा, जिसने अरविंद केजरीवाल में अपना भावी प्रधानमंत्री तक देख लिया था। कारण बड़ा मासूम, लेकिन जायज़ था। जब से देश आज़ाद हुआ है, पार्टी कोई भी हो, उसकी सरकार, और उसके मुखिया ने देश को येन केन प्रकारेणा लुटा ही, लेकिन जब आम आदमी पार्टी का गठन करके अरविंद केजरीवाल राजनीति में आए, तो उनका बायो डाटा खंगालने पर पता चला कि अरे! ये आदमी तो इनकम टैक्स की केंद्र सरकार के तहत आने वाली ठाठदार नौकरी को छोड़कर सियासत की भ्रष्टाचार से सफाई के लिए प्रसिद्ध गांधी वादी नेता ,और अपनी समाज सेवा के कारण महाराष्ट्र के एक हिस्से में देवता की तरह पूजे जाने वाले बुजुर्ग अण्णा हज़ारे को अपना उस्ताद बनाकर सियासत में आया है। 

बता दें कि  जब अण्णा हजारे के नेतृत्व में पूरा देश अपने अपने शहरों में घंटों का जाम लगाकर,और दस्तखत मुहिम चलकर नव जागरण का सपना तक देखने को तड़प उठा था, तब विदेशी मीडिया तक ने अण्णा हज़ारे में दूसरे महात्मा गांधी की रूह तक ढूंढ ली थी, लेकिन चूंकि ये एक विचारहीन क्रान्ति थी, इसलिए इसका गुब्बारा आकाश में दूर तक, और कई दिनों तक तो उड़ा, लेकिन फिर ऐसा गुम हुआ कि उनके चाहने वाले उन्हें उनके महाराष्ट्र स्थित पुश्तैनी गांव राने गांव सिद्धि में ही ढूंढ पाए। और इधर अरविंद केजरीवाल का असली रूप उजागर होने लगा। खुद अण्णा हजारे उन्हें तानाशाह तक कहने लगे, और खुद केजरीवाल ने अपने कार्य कलापों अपने इस छिपे हुए रूप की धीरे धीरे तस्दीक करनी भी शुरू कर दी। 

उन्होंने अण्णा हज़ारे को धता तो बताई ही प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास, प्रसिद्ध गांधीवादी नेता योगेश यादव, सॉलिसिटर प्रशांत किशोर, पत्रकार आशुतोष, पत्रकार राजदीप सरदेसाई को नही पहचानने का सफल नाटक करना शुरू कर दिया। उन्हें इतना  हरियाणावी हेकड़ी रही कि उनके पास दिल्ली सरकार में कोई मंत्री पद नहीं रहा। वे कभी पंजाब, तो कभी गुजरात, तो कभी अन्य राज्यों में अपनी आप पार्टी का कारोबार जमाने में लगे रहे। अभी भी 

वे जेल की सलाखों के पीछे से ही सरकार चलाने की घोषणा कर चुके हैं,जबकि यदि तत्काल स्टीफा दे देते तो उनकी छवि उजली होने में मदद मिल सकती थी।

केजरीवाल को शायद ये मुगालता रहा होगा कि दिल्ली के वे मुख्य मंत्री हैं इसलिए उन्हें पुलिस उन्हें छू भी नहीं सकती, जबकि उनके जैसे नेता से उम्मीद थी कि वे हमारे देश के कानूनों की किताब की इस खूबसूरती पर गौर करते कि देश में कानून सभी के लिए एक है।

उन्हें पता नही क्यों मालूम नहीं रहा कि हाल में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पद पर रहते हुए गिरफ्तारी हुई, कभी बिहार में भी तत्कालीन मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव के साथ ऐसा  ही हुआ था। नौ समन मिलने के बावजूद कोई इतना जिम्मेदार नेता पूछ ताछ के लिए ईडी के सामने नहीं जाए, तो संदेश तो यही जाएगा न कि दाल में ज़रूर कुछ  काला है।

अरविंद केजरीवाल कानून से बचकर नहीं, कानून से बरी होकर देश के नायक बन सकते थे। किस देश में आखिर ऐसा हुआ है कि राष्ट्रीय राजधानी का मुख्यमंत्री ही कानून से अपने को उपर माने। क्या केजरीवाल खुद नया संविधान या नए कानूनों की नई किताब लिखना चाहते हैं? (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)