टोंक सावित्रीबाई फुले सब्जी मंडी टोंक में मनाई जयंती

अरशद शाहीन 

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टोंक। सावित्रीबाई फुले की जयंती पर में जीवनी पर भीम सेना जिला अध्यक्ष अशोक बैरवा ने सब्जी मण्डी कि महिलाओं को सावित्रीबाई फुले कि जीवनी के बारे बताया कि स्वतंत्रता से पहले भारत में महिलाओं के साथ काफी भेदभाव होता था समाज में दलितों की स्थिति अच्छी नहीं थी। महिला दलित होती थी तो यह भेदभाव और भी बड़ा होता था। जब सावित्री बाई स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थर मारते थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कड़ा संघर्ष करते हुए शिक्षा हासिल की। सावित्रीबाई फुले का जीवन महिला सशक्तिकरण के लिए समर्पित था उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जमकर उठाई आवाज। जब वह महज 9 वर्ष की थीं जब उनका विवाह के ज्योतिराव फुले से कर दिया गया था। जिस समय सावित्रीबाई फुले की शादी हुई थी उस समय वह अनपढ़ थीं। पढ़ाई में उनकी लगन देखकर ज्योतिराव फुले प्रभावित हुए और उन्होंने सावित्रीबाई को आगे पढ़ाने का मन बनाया। ज्योतिराव फुले भी शादी के दौरान कक्षा तीन के छात्र थे, लेकिन तमाम सामाजिक बुराइयों की परवाह किए बिना सावित्रीबाई की पढ़ाई में पूरी मदद की। सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और शिक्षक बनीं।

 फुले दंपति ने देश में कुल 18 स्कूल खोले। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके योगदान को सम्मानित भी किया। इस स्कूल में सावित्रीबाई फुले प्रधानाध्यापिका थीं। ये स्कूल सभी जातियों की लड़कियों के लिए खुला था। दलित लड़कियों के लिए स्कूल जाने का ये पहला अवसर था। - लड़कियों को पढ़ाने की पहल के लिए सावित्रीबाई फुले को पुणे की महिलाओं का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा। जब वह स्कूल पढ़ाने जाती थीं तो पुणे की महिलाएं उन पर गोबर और पत्थर फेंकती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि लड़कियों को पढ़ाकर सावित्रीबाई धर्मविरुद्ध काम कर रही हैं। वह अपने साथ एक जोड़ी कपड़ा साथ जाती थीं और स्कूल पहुंचकर गोबर और कीचड़ से गंदे हो गए कपड़ों को बदल लेती थीं बच्चों को पढ़ाई करने और स्कूल छोड़ने से रोकने के लिए उन्होंने एक अनोखा प्रयास किया। वह बच्चों को स्कूल जाने के लिए उन्हें वजीफा देती थीं सावित्रीबाई ने अपने घर का कुआं दलितों के लिए भी खोल दिया  उस दौर में यह बहुत बड़ी बात थी। विधवाओं के लिए खोला आश्रम सावित्रीबाई ने विधवाओं के लिए एक आश्रम खोला। विधवाओं के अलावा वह निराश्रित महिलाओं, बाल विधवा बच्चियों और परिवार से त्यागी गई महिलाओं को शरण देने लगीं। 

सावित्रीबाई आश्रम में रहने वाली हर महिला और लड़कियों को भी पढ़ाती थीं उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की, जो बिना पुजारी और दहेज के विवाह आयोजित करता था। अपने पति ज्योतिबा फुले, जो तब तक महात्मा फुले कहलाने लगे थे, की मृत्यु के बाद उनके संगठन सत्यशोधक समाज का काम सावित्रीफुले ने संभाल लिया और सामाजिक चेतना का काम करती रहीं। उनकी मृत्यु के बाद आज तक सावित्रीबाई फुले ज्योतिबा फुले को भारत रत्न से वंचित रखा गया जो खेद का विषय है, टोंक मुख्यालय पर सावित्रीबाई फुले ज्योतिबा फुले की प्रतिमा ना होना भी समाज को उनके विचारों से दूर रखने का सरकारों का षड्यंत्र साबित होता है। इस मौके पर मौजूद रही मुन्नी सैनी गुलाब देवी सैनी मनवार सैनी सीता सैनी कमलेश सोलंकी गुड्डी सैनी सभी मिलकर पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया उनके विचारों को याद किया।