कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी और साइकोलॉजिस्ट डॉ गिरिन्द्र शेखर बोस
लेखिका : स्वाती जैन

 हैदराबाद 

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आज की इस तनाव भरी ज़िंदगी में हर कोई मानसिक रूप से परेशान है और इससे छुटकारा पाना चाहता है।लेकिन हम में से ज्यादातर लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं कि कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी और प्रसिद्ध साइकोलॉजिस्ट आचार्य डॉ गिरिन्द्र शेखर बोस जी को आगे आने वाले समय की इस भयावह बीमारी का आभास स्वतंत्रता पूर्व ही हो गया था जब उन्होंने अपने बड़े भाई महान क्रांतिकारी व साहित्यकार राजशेखर बोस जी के सहयोग से 5 फरवरी 1940 को कोलकाता में तीन शैय्या वाले मानसिक चिकित्सालय की स्थापना की जिसे वर्तमान में लुंबिनी पार्क मेंटल हॉस्पिटल के नाम से जाना जाता है साथ ही आर जी कर मेडिकल कॉलेज में एशिया की पहली साइकियाट्रिक ओपीडी की स्थापना कर मानसिक रोगियों के लिए एक नयी इबारत लिखी।

यह देश के इतिहास में एक ऐसा मील का पत्थर है  जिसने लाखों मानसिक रोगियों की जिंदगी को आसान किया है और इसलिए ही गिरिन्द्र शेखर बोस जी को अपने इस अतुलनीय योगदान के लिए एशिया का पहला साइकियाट्रिस्ट और साइक्लोजिस्ट कहा जाता है।

गिरिन्द्र शेखर बोस वो धरोहर हैं जिनका होना ही देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि उन्होंने विश्व पटल पर एक ऐसे क्षेत्र में भारत का नाम रोशन किया है जिस पर कभी सिर्फ गोरे लोगों का ही दबदबा था।

30 जनवरी 1887 को बिहार के दरभंगा जिले में पैदा हुए गिरिन्द्र बोस ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से रसायन विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र की शिक्षा प्राप्त कर 1915 में कोलकाता यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में एम ए किया और इसके बाद 1921 में कॉन्सेप्ट ऑफ रिप्रेशन विषय पर शोध कर डॉ ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त की।

इन्होंने अपना यह शोध पत्र उस समय के ख्याति प्राप्त मनोचिकित्सक सिग्मंड फ्रायड़ को भेजा। उसके बाद ही इन दोनों का पत्रों व ट्र्ंक कॉल्स से वार्तालाप शुरू हुआ और यह वार्तालाप सही मायने में भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति का एक बेजोड़ मिलन था।   लेकिन आश्चर्य है कि ये दोनों व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं मिले। लेकिन बाद में डॉ बोस के मरणोपरांत इनके और फ्रायड़ के पत्र वार्तालाप को द बिगिनिंग्स ऑफ साइकोअनालिसिस इन इंडिया - बोस फ्रायड़ करेस्पांडेंन्स नामक पुस्तक का रूप दिया गया।

अब गिरिन्द्र बोस जी ने खुद को पूरी तरह मानसिक रोगियों की चिकित्सा में समर्पित कर दिया और प्रतिदिन सुबह बिना शुल्क लिये पास की बस्तियों के गरीब लोगों की चिकित्सा के लिए जाने लगे। ये वो दौर था जब भारत में मानसिक रोगियों की चिकित्सा की कोई व्यवस्था नहीं थी और ना ही इस तरह के रोगियों को बीमार माना जाता था। लेकिन सम्मोहन कला के विशेषज्ञ गिरिन्द्र बोस ने अपने इलाज में योग और सम्मोहन जैसी देसी तकनीकों को शामिल कर इसे और आसान बनाया। उस समय के प्रसिद्ध कवि क़ाज़ी नज़रूल इस्लाम इनके नियमित मरीजों में से एक थे।

फ्रायड ने हमेशा ही गिरिन्द्र बोस जी के शोध को सम्मान दिया। आज वियना, लंदन और न्यूयॉर्क में गिरिन्द्र बोस जी को समर्पित एक गैलरियां हैं। वहीं गिरिन्द्र जी की किताबें पांच विदेशी भाषाओं फ्रेंच, जर्मन , जापानी, इंग्लिश व रशियन में उपलब्ध हैं। यहां तक कि जब रविन्द्र नाथ टैगोर जी वियना में फ्रायड से मिलने गये तो उन्होंने गिरिन्द्र बोस जी का ही रेफरेंस लैटर दिया।1922 में डॉ बोस ने इंडियन साइको अनालिटिकल सोसायटी की स्थापना की और इसे सिग्मंड फ्रायड़ के सहयोग से इंटरनेशनल एसोसिएशन का समर्थन प्राप्त हुआ। डॉ बोस अच्छे लेखक भी थे  बंगाली में इन्होंने लाल कालों लिखी जिसके साहित्य को चिट्टी चिट्टी बैंग बैंग में लिया गया। इनके अलावा इनकी कुछ दूसरी पुस्तकें स्वप्न, पूरन प्रबेश और कॉन्सेप्ट ऑफ रिप्रेशन भी हैं।

वहीं डॉ गिरिन्द्र बोस जी का देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी बड़ा योगदान है। ब्रिटिश के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन में इन्होंने अनुशीलन समिति को फंड्स उपलब्ध कराया। इनका परिवार ही देश का पहला सौभाग्यशाली परिवार है जब इनके पैतृक घर पारसी बागान पर अनुशीलन समिति के सदस्यों द्वारा  स्वतंत्रता प्राप्ति से भी पहले 7 अगस्त 1906 को राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। गिरिन्द्र शेखर बोस जी अपने इन योगदानों के लिए हमेशा याद किये जायेंगे। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)