राहुल गाँधी के वायनाड से फिर चुनाव लड़ना अनिश्चित

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

www.daylife.page 

पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अपने पारम्परिक चुनाव क्षेत्र अमेठी से नामांकन दाखिल किया था। अचानक उन्होंने एक अन्य स्थान से भी चुनाव लड़ने का निर्णय किया। इसके लिए उन्होंने धुर दक्षिण के राज्य केरल के  मुस्लिम बहुल चुनाव क्षेत्र वायनाड को चुना। बताया जाता है कि प्रारंभिक सर्वेक्षण में राहुल गाँधी और कांग्रेस के नेताओं को आभास हुआ कि अमेठी से उनका चुनाव जीतना मुश्किल है। यहाँ बीजेपी ने अपनी बड़ी नेता और तब केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी फिर से  मैदान उतारा था। वे पिछले पांच साल से यहाँ लगातार सक्रिय थी।

चुनावों के बाद यह साफ़ हो गया कि राहुल गाँधी का दो जगह से चुनाव लड़ने का निर्णय सही था। वे अमेठी इस चुनाव हार गये लेकिन वायनाड से आसानी से जीत गए। इस बार वे अमेठी फिर चुनाव लड़ेंगे, यह अभी साफ़ नहीं, पर उन्होंने वायनाड से फिर चुनाव लड़ना तय कर लिया है। 

केरल में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त लोकतान्त्रिक मोर्चे का हिस्सा है। इसके नेताओं ने ही राहुल गाँधी को केरल के मुस्लिम बहुल मल्ल्पुरम इलाके के वायानड लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की सलाह दी थी। वास्तव में यह मोर्चा इतना मजबूत था कि लोकसभा के चुनावों में इसने राज्य की कुल 20 लोकसभा सीटों में से 19 सीटें जीतने में सफलता पाई। उस समय राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाला वाम लोकतान्त्रिक मोर्चा सत्ता में था। यह वाम मोर्चे के लिए एक बड़ा धक्का था। इसके बाद कांग्रेस के नेताओं को लगा कि लगभग दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में इसका सत्ता में आना सुनिश्चित है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राज्य में पहली बार वाम मोर्चा लगातार सत्ता में आया। केवल इतना ही नहीं बल्कि वाममोर्चे को पिछले चुनावों से 2 प्रतिशत अधिक मत मिले। 

पिछले लोकसभा चुनावों के देश की राजनीतिक तस्वीर काफी बदल गई है। विपक्षी दल अगले लोकसभा चुनावों को सामने रखते हुए एक मंच, इंडिया, पर आ गए हैं। पांच राज्यों के चुनावो से पहले इंडिया के नेताओं के बैठकों के तीन दौर पूरे हो गए थे। इसके नेताओं ने दावा किया था कि सीटों का  बंटवारा हो चुका है तथा सभी उम्मीदवारों की घोषणा अक्टूबर तक कर दी जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर आ चुके थे। इंडिया के कुछ घटगों को उम्मीद थी कि इन चुनावों में कांग्रेस उनको साथ लेकर चलेगी। लेकिन कांग्रेस ने इसे नकारते हुए सब जगह अपने बलबूते पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया। कांग्रेस के नेताओ को कुछ ज्यादा ही भरोसा था कि हिंदी भाषी तीन राज्यों में उनकी पार्टी की सरकार  बनेगी। लेकिन हुआ इसके विपरीत। कांग्रेस इन तीन राज्यों में हार गई, पर दक्षिण के तेलंगाना में चुनाव जीत गई। 

अब फिर इंडिया के नेता एक जुट होने में लगे है। इसके नेता कह रहे है मोटे तौर पर यह सहमति बन रही है कि जिस राज्य जो दल सबसे अधिक मजबूत है  उसके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाये। राज्यों में अन्य दलों का कितनी सीटें अन्य किस पार्टी को मिलें यह राज्य की सबसे बड़ी पार्टी पर ही छोड़  दिया जाये।

केरल में सत्त्रुध वाममोर्चा बड़ा दल है जब कि कांग्रेस के नेतृत्व वाला लोकतान्त्रिक मोर्चा विपक्षी दल है। वाममोर्चे के स्थानीय नेता अपने बलबूते पर ही सभी 20 सीटें लड़ना चाहते है। वे कांग्रेस सहित किसी अन्य दल को एक भी सीट देने को तैयार नहीं। इसी के चलते अब राहुल गाँधी को वायनाड से फिर लोकसभा का चुनाव लड़ना कुछ अनिश्चित सा हो गया। मोर्चा वायनाड सीट अपने घटक कम्युनिस्ट पार्टी को देना चाहता है। 

वाम मोर्चे के नेता इस बात को बार बार दोहरा रहे है कि ऐसा कैसे हो सकता कि राज्य का सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ें। राज्य विधान सभा की कुल 140 सीटों में से वाम मोर्चे के पास 99 सीटें है जब कि कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे के पास  इससे आधी से भी कम यानि 41 सीटें है। कांग्रेस के नेतृत्व वाला मोर्चा यह चाहता है कि इन सीटों के अनुपात में उनका लोकसभा की सीटें मिलनी चाहिये। कांग्रेस के कुछ नेता नेता चाहते है कि  2019 के लोकसभा के नतीजों को आधार मान कर सीटें का बंटवारा  होना चाहिए। अगर यह आधार मान लिया तो कांग्रेस पक्ष मज़बूत रहेगा। इन मतभेदों के चलते राहुल गाँधी का वायनाड से चुनाव लड़ना कुछ अनिश्चित सा हो गया है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)