यदि भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं है तो भारत बिल्कुल भारत नहीं है : अटल बिहारी वाजपेयी

भारत रत्न भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 99वीं जयंती पर विशेष 

भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी न केवल एक कुशल धुरंधर राजनीतिज्ञ थे, बल्कि कवि, प्रभावी पत्रकार, प्रशासक, लेखक, उत्कृष्ट और ओजस्वी वक्ता भी थे: डॉ. कमलेश मीना। 

आप मित्र बदल सकते हैं, पर पड़ोसी नहीं : भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

लेखक : डॉ कमलेश मीना

सहायक क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

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भारत की धरती-माटी की एक खास बात रही है कि समय-समय पर इस धरती ने ऐसे वीरों को जन्म दिया है, जिन्होंने विचारधाराओं की रक्षा के लिए मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। उन्हीं महापुरुषों में से एक थे पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी, जिन्हें राजनीति में रहते हुए भी अपने अच्छे स्वभाव और व्यवहार के कारण अजातशत्रु की उपाधि मिली। हम उनकी 98वीं जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं और भारत के लिए उनके शानदार, गौरवशाली कार्यों को याद करते हैं। हम उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी 21वीं सदी में विकसित भारत की अवधारणा के प्रणेता थे। 25 दिसंबर 2023 को राष्ट्र भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की 98वीं जयंती मनाएगा और उनके जन्मदिन को भारत में सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

मैं हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के बारे में एक कहानी साझा करना चाहूंगा। जब मैं 5वीं और 6वीं कक्षा में पढ़ता था, हमारी वार्षिक या अर्धवार्षिक परीक्षा में अटल बिहारी वाजपेयी जी के बारे में एक बहुविकल्पीय प्रश्न पूछा गया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी भाषा में भाषण देने वाले भारत के पहले विदेश मंत्री कौन थे? मुझे अब भी वह सवाल याद है और मेरे दिमाग में हमेशा अटल बिहारी वाजपेई जी का नाम रहता है। हमें याद रखना चाहिए कि 21वीं सदी की मजबूत नींव हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी जी ने रखी थी और आज हमारे प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी अटल जी के मजबूत, एकजुट, विकसि और आत्मनिर्भर भारत बनाने के सपने को पूरा कर रहे हैं। 

भारत रत्न और देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की आज 98वीं जयंती है। नीति, सिद्धांत, विचार और व्यवहार के सर्वोच्च शिखर पर रहते हुए सदैव जमीन से जुड़े रहने वाले अटल जी के संपर्क में जो भी आ, वह राजनीति में कभी छोटे मन से काम नहीं करेगा। अटल जी में यह क्षमता थी कि विपक्ष में रहते हुए भी वे हर दल के राजनेताओं और कार्यकर्ताओं के मन में एक खास जगह बना लेते थे। विपक्ष में रहते हुए भी वे सदैव सत्ता पक्ष के नेताओं से अधिक लोकप्रिय रहे। अपने सतत प्रवास, बयानबाजी और राजनीतिक संघर्ष के साथ-साथ सड़क से संसद तक शेर की तरह दहाड़कर जवाहरलाल नेहरू और उनके साथी नेताओं के मन में खास जगह बनाने वाले अटल जी सर्वदलीय नेता थे। 

अटल बिहारी बाजपेयी जी भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के भीष्मपिता थे, जो हमेशा पूरी नैतिकता, नैतिक सिद्धांतों और संवैधानिक विचारधारा के साथ मूल्य आधारित राजनीति के लिए खड़े रहे। अपने पूरे राजनीतिक विश्वास के दौरान सत्ता और शासन के लिए विचारधारा से कोई समझौता नहीं किया। उनका दृढ़ विश्वास भारतीय लोकतंत्र, संसदीय नैतिक मूल्यों और जनता के जनादेश के प्रति था। उनके धैर्य, राजनीति के तरीके, ईमानदारी की उनके विरोधी भी प्रशंसा करते थे।

आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वे मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्‍व वाली सरकार में विदेश मामलों के मंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता थे जिन्‍होंने संयुक्‍त राष्‍ट्र महासंघ को हिन्‍दी भाषा में संबोधित किया। अटल बिहारी वाजपेयी जी भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में अपना भाषण दिया था। तब से मैं इस महान राजनीतिज्ञ को जानता हूं और मेरे कॉलेज के दिनों में हमने उनके शासन को देखा और महसूस किया था। अटल बिहारी वाजपेयी जी एक प्रभावशाली वक्ता, पत्रकार, अत्यंत लोकप्रिय राजनेता, विभिन्न विचारों और उदार हिंदुत्व विचारधारा वाले जननायक थे। बेहद प्रभावी लोकप्रिय राजनेता थे। अटल बिहारी बाजपेयी जी ने अखंड भारत, सशक्त भारत, स्वतंत्र, आत्मनिर्भर भारत की वकालत की। अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। भारतीय संसदीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय लोकतंत्र के सर्वश्रेष्ठ सांसद थे और यहां तक ​​कि उनके विरोधी भी उनकी उदारता, उदार विचारों, आरएसएस की प्रतिबद्ध विचारधारा का पूरा सम्मान करते थे, जो हमेशा राष्ट्र 'प्रथम' दर्शन के प्रति समर्पित रहे। 

प्रत्येक राजनीतिक दल में उनके अपने मित्र थे, पार्टी के भीतर और कुछ हद तक विपक्ष में भी उनकी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के खिलाफ कोई नहीं था। अटल जी सभी के लिए आसानी से उपलब्ध थे और उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं में कोई अहंकार नहीं था जो उन्हें एक दिग्गज राजनेता बनाता है। वे जीवन भर राष्ट्र के लिए पूर्णतः समर्पित रहे। उनकी भाषण कला में एक अलग ही आकर्षण, मनमोहक और जादुई शक्ति थी। काव्य कौशल, पत्रकारीय दृष्टिकोण और आरएसएस के प्रभाव के कारण अटल बौद्धिक रूप से मजबूत थे।अटल जी ने व्यक्तिगत हित के लिए नहीं बल्कि भारत को बदलने के लिए राजनीति की। उनके पूरे जीवन में यही दृढ़ विश्वास उनकी राजनीतिक यात्रा को दर्शाता है। अटल जी ने भारतीय संस्कृतियों, परंपराओं और जन-जन के शासन की पहचान स्थापित की। उनकी राजनीति जनता के विश्वास पर ही आधारित थी। अटल जी अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं और दृढ़ संकल्प, प्रतिबद्ध और सच्ची निष्ठा के लिए जाने जाते थे।

अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मतिथि 25 दिसंबर 1924 है। बचपन और प्रारंभिक जीवनअटल बिहारी वाजपेई का जन्म स्थान ग्वालियर, मध्य प्रदेश था। उनका जन्म एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में कृष्ण बिहारी वाजपेयी और कृष्णा देवी के घर हुआ था। उज्जैन के बड़नगर में सरस्वती शिशु मंदिर और एंग्लो-वर्नाक्युलर मिडिल (एवीएम) स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, अटल ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ने चले गए, जहाँ उन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत और हिंदी में बीए पूरा किया। इसके बाद उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह कानून की पढ़ाई करने चले गए लेकिन 1947 के विभाजन दंगों के कारण उन्होंने इसे छोड़ दिया। अटल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक सक्रिय सदस्य थे, शुरुआत में स्वयंसेवक के रूप में शामिल हुए और विस्तारक परिवीक्षाधीन पूर्णकालिक कार्यकर्ता के पद तक पहुंचे। 

उन्होंने उत्तर प्रदेश में विस्तारक के रूप में कई समाचार पत्रों-पांचजन्य एक साप्ताहिक हिंदी, राष्ट्र धर्म एक मासिक हिंदी, और स्वदेश और वीर अर्जुन दैनिक समाचार पत्र के लिए काम किया।राष्ट्रीय राजनीति में वाजपेयी का पहला कार्यकाल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान शुरू हुआ, जिसने अंततः भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को समाप्त कर दिया। उन्होंने एक पत्रकार बनने का करियर शुरू किया था, लेकिन इसे आगे बढ़ाने में असमर्थ रहे क्योंकि वे तत्कालीन भारतीय जनता संघ में शामिल हो गए, जिसने अंततः वर्तमान भारतीय जनता पार्टी को आकार दिया। शुरुआत में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव नियुक्त किया गया और उत्तरी क्षेत्र का प्रभारी बनाया गया, जो दिल्ली में स्थित था। दीन दयाल उपाध्याय के निधन के बाद, अटल को भारतीय जनता संघ का नेता बनाया गया और वर्ष 1968 में इसके अध्यक्ष बने। श्री अटल बिहारी वाजपेयी वाक्पटुता के धनी व्यक्ति थे, जिसका उपयोग उन्होंने संघ की नीतियों का शानदार ढंग से बचाव करने के लिए किया। अटल बिहारी वाजपेयी नौ बार लोकसभा के लिए और दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए थे। इस प्रकार उन्हें एक अनुभवी सांसद माना जाता है। 

भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी का इतिहास भी काफी उल्लेखनीय है। वह तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे। वर्ष 1996 में उन्होंने भारत के 10वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। हालाँकि, जब भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में बहुमत बनाने में विफल रही, तो वाजपेयी ने 13 दिनों की अवधि के बाद ही इस्तीफा दे दिया क्योंकि यह स्पष्ट हो गया कि उनके पास सरकार बनाने के लिए आवश्यक समर्थन नहीं था। प्रधानमंत्री के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल 1998 के आम चुनावों के बाद शुरू हुआ जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का गठन हुआ। अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली यह सरकार कुल 13 महीने तक चली।

 अटल बिहारी वाजपेयी का तीसरा और अंतिम कार्यकाल 1999 से 2004 तक पूरे 5 साल की अवधि तक चला। अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के विकास में कई उल्लेखनीय योगदान दिये थे। उन्होंने न केवल भारत के प्रधानमंत्री के रूप में बल्कि विदेश मंत्री और संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। वह विपक्ष के भी सक्रिय नेता रहे थे। इस प्रकार श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्वतंत्र भारत की घरेलू और विदेशी नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

वह सामाजिक समानता के सच्चे समर्थक और महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक भी थे। श्री अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे भारत में विश्वास करते थे जो 5000 वर्षों के सभ्यतागत इतिहास पर कायम है, लेकिन आने वाले वर्षों में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को आधुनिक, नवीनीकृत और पुनर्जीवित कर रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी को मुख्य रूप से एक व्यावहारिक व्यक्ति माना जाता था, लेकिन जब वर्ष 1998 में परमाणु हथियारों के परीक्षण के लिए उनकी आलोचना की गई, तो उन्होंने बिना डरे अवज्ञाकारी मुद्रा अपना ली। उन्होंने कश्मीर क्षेत्र को लेकर पाकिस्तान और भारत के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए समर्पित प्रयास करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रेरक नेतृत्व को देखते हुए, भारत अर्थव्यवस्था में लगातार वृद्धि हासिल करने में सक्षम रहा और जल्द ही देश के लिए सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। वर्ष 2000 से उनकी सरकार ने राज्य द्वारा संचालित कई उद्योगों से सार्वजनिक धन का विनिवेश भी शुरू कर दिया था। 2004 के संसदीय चुनावों में, वाजपेयी के नेतृत्व वाला गठबंधन हार गया और उन्होंने दिसंबर 2005 में सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्ति की घोषणा की। अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी शादी नहीं की और पूरी जिंदगी कुंवारे रहे। अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रख्यात कवि भी थे। उन्होंने हिन्दी में कविताएँ लिखीं। उन्होंने अपने जीवन के 50 से अधिक वर्ष समाज की सेवा में समर्पित कर दिए। वर्ष 1994 में उन्हें 'सर्वश्रेष्ठ सांसद' के रूप में नामित किया गया था। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने न केवल खुद को एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता साबित किया, बल्कि एक प्रखर राजनीतिज्ञ और एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उनकी अनेक कुशलताओं ने उन्हें एक बहुआयामी व्यक्तित्व बनाया। उनके काम राष्ट्रवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं जहां उन्होंने जनता की आकांक्षाओं को व्यक्त करने का प्रयास किया। 

अटल जी कहा करते थे कि हमारा लोकतंत्र में विश्वास है। जीवन के सभी क्षेत्रों में हम लोकतांत्रिक पद्धति के समर्थक हैं। अपने राजनीतिक दल को भी हम लोकतंत्रात्मक तरीके से चलाते हैं। समाज के सभी वर्गों से और देश के सभी क्षेत्रों से पार्टी में अधिकाधिक लोग शामिल हों, यह हमारा प्रयास होता है। किसी व्यक्ति या इकाई द्वारा अधिक से अधिक सदस्य बनाए जाते हैं, इस प्रतियोगिता में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन प्रतियोगिता पार्टी के अनुशासन और मर्यादा के अंतर्गत होनी चाहिए। पार्टी के विस्तार के लिए नए सदस्य बनाना एक बात है और पार्टी पर कब्जा करने के लिए सदस्यता और बात।

"अगर किसी को दल बदलना है तो उसे जनता की नजर के सामने दल बदलना चाहिए। उसमें जनता का सामना करने का साहस होना चाहिए। हमारे लोकतंत्र को तभी शक्ति मिलेगी जब हम दल बदलने वालों को जनता का सामना करने का साहस जुटाने की सलाह देंगे।" अटल बिहारी वाजपेयी।

संयुक्‍त राष्‍ट्र को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक मंच समझा जाता है। आज से 46 साल पहले, इसके मंच से पहली बार हिंदी गूंजी। कंठ था मां भारती के ऐसे सपूत का जिसकी वाकपटुता और भाषण-कौशल के मुरीद विरोधी खेमे में भी रहे। 4 अक्‍टूबर 1977 को, तत्‍कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी संयुक्‍त राष्‍ट्र के मंच से करीब 43 मिनट बोले। वह संयुक्‍त राष्‍ट्र की 32वीं आम बैठक थी। वह दौर शीतयुद्ध के चरम का था। पूरी दुनिया किसी न किसी के पाले में थे। भारत उस वक्‍त में गुट निरपेक्षता की आवाज बुलंद कर रहा था। वाजपेयी ने मंच से खुद को 'नौसिखिया' बताया था, पर साथ ही यह भी कहा था कि 'भारत अपने प्रादुर्भाव से लेकर अब तक किसी भी संगठन से सक्रिय रूप से जुड़ा नहीं रहा है।' 'वसुधैव कुटुम्‍बुकम' का सिद्धांत दोहराते हुए वाजपेयी ने पूरी दृढ़ता से भारत का पक्ष रखा। 

4 अक्‍टूबर 1977 को वाजपेयी का वह भाषण उनके संपूर्ण राजनीतिक जीवन के सबसे प्रभावशाली और अहम संबोधनों में गिना जाता है। वाजपेयी ने अपने संबोधन की शुरुआत में कहा, 'मैं भारत की जनता की ओर से राष्ट्र संघ के लिए शुभकामनाओं का संदेश लाया हूं। महासभा के इस 32 वें अधिवेशन के अवसर पर मैं राष्ट्रसंघ में भारत की दृढ़ आस्था को पुन: व्यक्त करना चाहता हूं। जनता सरकार को शासन की बागडोर संभाले केवल 6 मास हुए हैं फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुन: प्रतिष्ठित हो गए हैं जिस भय और आतंक के वातावरण ने हमारे लोगों को घेर लिया था वह अब दूर हो गया है, ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे ये सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब फिर कभी हनन नहीं होगा।'

"वसुधैव कुटुंबकम की परिकल्पना बहुत पुरानी है भारत में सदा से हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है अनेकानेक प्रयत्नों और कष्टों के बाद संयुक्त राष्ट्र के रूप में इस स्वप्न के साकार होने की संभावना है यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं।"

सुशासन दिवस भारत में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर मनाया जाता है। सुशासन दिवस की स्थापना 2014 में सरकार में जवाबदेही के बारे में भारतीय लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ावा देकर प्रधानमंत्री वाजपेयी को सम्मानित करने के लिए की गई थी।

कभी महज़ दो सीटों वाली पार्टी रही भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में सरकार बनाने की उपलब्धि केवल अटल बिहारी वाजपेयी की भारतीय राजनीति में सहज स्वीकार्यता के बूते की बात थी, जिसे भांपते हुए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को भी लालकृष्ण आडवाणी को पीछे रखकर वाजपेयी को आगे बढ़ाना पड़ा था। वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे, पहले 13 दिन तक, फिर 13 महीने तक और उसके बाद 1999 से 2004 तक का कार्यकाल उन्होंने पूरा किया। इस दौरान उन्होंने ये साबित किया कि देश में गठबंधन सरकारों को भी सफलता से चलाया जा सकता है। ज़ाहिर है कि जब वाजपेयी स्थिर सरकार के मुखिया बने तो उन्होंने ऐसे कई बड़े फ़ैसले लिए जिसने भारत की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया, ये वाजपेयी की कुशलता ही कही जाएगी कि उन्होंने एक तरह से दक्षिणपंथ की राजनीति को भारतीय जनमानस में इस तरह रचा बसा दिया जिसके चलते एक दशक बाद भारतीय जनता पार्टी ने वो बहुमत हासिल कर दिखाया जिसकी एक समय में कल्पना भी नहीं की जाती थी। 

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था। साल 2015 में उन्‍हें भारत के सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान भारत रत्‍न से सम्‍मानित किया गया था।प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने कुछ ऐसे फैसले लिए जिससे भारत की अर्थव्यवस्था की दिशा ही बदल गई थी। उन्होंने देश को एक अलग ऊँचाइयों पर पहुँचाया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक आदर्शवादी और प्रशंसनीय राजनेता थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में भी कार्य किया था।1951 में आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन हुआ तो श्‍यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ अटलबिहारी वाजपेयी की अहम भूमिका रही।1957 में देश की संसद में जनसंघ में सिर्फ चार सदस्य थे जिसमें एक अटल बिहारी वाजपेयी भी थे।1957 में जनसंघ ने उन्हें 3 लोकसभा सीटों- लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वे चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर वे लोकसभा में पहुंचे। 

वाजपेयी के असाधारण व्‍यक्तित्‍व को देखकर उस समय के वर्तमान प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा। वाजपेयी तीसरे लोकसभा चुनाव 1962 में लखनऊ सीट से उतरे, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिल सकी। इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य चुने गए। बाद में 1967 में फिर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके। इसके बाद 1967 में ही उपचुनाव हुआ, जहां से वे जीतकर सांसद बने। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक आदर्शवादी और प्रशंसनीय राजनेता थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण देने वाले अटल जी पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे। अटल बिहारी वाजपेयी की पहचान एक कवि की भी थी। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपयी ने कहा था, "व्यक्ति को सशक्त बनाना देश को सशक्त बनाना है। सशक्तिकरण तेजी से आर्थिक विकास के माध्यम से तेजी से सामाजिक परिवर्तन के साथ किया जाता है"। दरअसल, ये शब्द देश के प्रति उनके योगदान में परिलक्षित होते हैं। उन्होंने न केवल भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार किया बल्कि समाज के वंचित वर्ग को ऊपर उठाने के लिए सामाजिक सुधार भी शुरू किए थे।

भारत की GDP ग्रोथ में बढ़ोतरी : उन्होंने आर्थिक सुधारों को पेश किया और भारत को नई ऊंचाइयों पर ले गए। 1998 से 2004 तक उनके कार्यकाल में भारत की GDP ग्रोथ की बढ़ोतरी 8 फीसदी तक हुई, महंगाई दर 4 फीसदी से कम और विदेशी मुद्रा भंडार पूरी तरह भरे रहे। हालांकि उनके कार्यकाल के दौरान भारत को भूकंप 2001, दो चक्रवात 1999 और 2000, एक भयानक सूखा 2002-2003, तेल संकट 2003, कारगिल संघर्ष 1999, और एक संसद हमले सहित आपदाजनक घटनाओं का सामना करना पड़ा था फिर भी उन्होंने एक स्थिर अर्थव्यवस्था बनाए रखी थी। जिस कारण उनकी पार्टी बीजेपी को वास्तविक आर्थिक अधिकार रखने वाली पार्टी की छवि मिली और साथ ही भारत भी आर्थिक प्रगति की तरफ बढ़ा।

निजीकरण: अटल विहारी वाजपेयी ने प्राइवेट बिजनस और इंडस्ट्री को बढ़ावा देते हुए सरकार की भागीदारी को कम किया। इसके लिए उन्होंने अलग से विनिमेश मंत्रालय बनाया। सबसे महत्वपूर्ण फैसला भारत ऐल्युमिनियम कंपनी (BALCO) और हिंदुस्तान जिंक, इंडिया पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड और VSNL में विनिमेश का था। इतना ही नहीं वाजपेयी से पहले देश में बीमा का क्षेत्र सरकारी कंपनियों के हवाले ही था, लेकिन वाजपेयी सरकार ने इसमें विदेशी निवेश के रास्ते खोले। उन्होंने बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा को 26 फ़ीसदी तक किया था, जिसे 2015 में नरेंद्र मोदी सरकार ने बढ़ाकर 49 फ़ीसदी तक कर दिया।

उन्होंने वित्तीय उत्तरदायित्व अधिनियम को आगे बढ़ाया जिसका उद्देश्य राजकोषीय घाटे को कम करना और सार्वजनिक क्षेत्र की बचत को बढ़ावा देना था। इससे पब्लिक सेक्टर सेविंग्स वित्त वर्ष 2000 में GDP के -0.8 फीसदी की तुलना में वित्त वर्ष 2005 में बढ़कर 2.3 फीसदी तक पहुंच गई थी।

इंडियन टेलीकॉम इंडस्ट्री में वृद्धि: उनकी सरकार ने नई दूरसंचार नीति के तहत राजस्व-साझाकरण मॉडल पेश किया जिसने दूरसंचार कंपनियों को निश्चित लाइसेंस शुल्क से निपटने में मदद की। भारत संचार निगम लिमिटेड का गठन भी नीति निर्माण और सेवा के प्रावधान को अलग करने के लिए बनाया गया था। दूरसंचार विवाद निपटान अपीलीय प्राधिकरण के निर्माण ने सरकार के नियामक और विवाद निपटान की भूमिकाओं को भी अलग कर दिया। अंतर्राष्ट्रीय टेलीफोन सेवा विदेश संचार निगम लिमिटेड को पूरी तरह समाप्त कर दिया था। जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिली। इसके पीछे भी प्रमोद महाजन का दिमाग़ बताया गया। रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल के ज़रिए लोगों को सस्ती दरों पर फ़ोन कॉल्स करने का फ़ायदा मिला और बाद में सस्ती मोबाइल फ़ोन का दौर शुरू हुआ।

सर्व शिक्षा अभियान: 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त प्राथमिक शिक्षा देने के लिए एक सामाजिक योजना की शुरूआत की गई। 2001 में वाजपेयी सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान को लॉन्च किया। योजना लॉन्च होने के 4 सालों के अंदर ही स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या में 60 फीसदी की गिरवाट देखने को मिली। ऐसे भी देश की आर्थिक तरक्की हुई। इस मिशन से वाजपेयी के लगाव का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने स्कीम को प्रमोट करने वाली थीम लाइन 'स्कूल चले हम' ख़ुद से लिखा था। 2000 में जहां 40 फ़ीसदी बच्चे ड्रॉप आउट्स होते थे, उनकी संख्या 2005 आते आते 10 फ़ीसदी के आसपास आ गई थी।

अटल बिहारी वाजपेयी ने वैश्विक स्थर के संबंधो को मजबूत किया। उनके कार्यकाल के दौरान, भारत ने अपने व्यापार में सुधार किया और चीन के साथ क्षेत्रीय विवादों को कम किया। 2000 में, उन्होंने शीत युद्ध के बाद द्विपक्षीय संबंधों में सुधार, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को आमंत्रित किया।

स्वर्णिम चतुर्भुज और ग्राम सड़क योजना :अटल बिहारी वाजपेयी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में उनकी महत्वाकांक्षी सड़क परियोजनाएं हैं, जिसे उन्होंने लॉन्च किया था। इनमें स्वर्णिम चतुर्भुज और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शामिल हैं। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को हाईवे नेटवर्क से जोड़ा। वहीं, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के जरिए गांवों को पक्की सड़कों के जरिए शहरों से जोड़ा गया। प्रधानमंत्री के तौर पर वाजपेयी के जिस काम को सबसे ज़्यादा अहम माना जा सकता है वो सड़कों के माध्यम से भारत को जोड़ने की योजना है। उन्होंने चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई को जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना लागू की. साथ ही ग्रामीण अंचलों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना लागू की. उनके इस फ़ैसले ने देश के आर्थिक विकास को रफ़्तार दी। हालांकि, उनकी सरकार के दौरान ही भारतीय स्तर पर नदियों को जोड़ने की योजना का ख़ाका भी बना था। उन्होंने 2003 में सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन किया था।हालांकि, जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने काफ़ी विरोध किया था।

विज्ञान और अनुसंधान :वाजपेयी ने चंद्रयान -1 परियोजना पारित की। भारत के 56वें स्वतंत्रता दिवस पर, उन्होंने कहा, "हमारा देश अब विज्ञान के क्षेत्र में उच्च उड़ान भरने के लिए तैयार है। मुझे यह घोषणा करने में प्रसन्नता हो रही है कि भारत 2008 तक चंद्रमा के लिए अपना स्वयं का अंतरिक्ष यान भेज देगा। इसे चंद्रयान नाम दिया जा रहा है”। उन्होंने भारत को परमाणु हथियार राज्य बना दिया।1998 में, भारत ने एक सप्ताह में पांच परमाणु परीक्षण किए थे। पोखरण परमाणु परीक्षण भारत को परमाणु ऊर्जा बनाने की प्रमुख उपलब्धि है। 1998 में पोखरण परीक्षण के बाद, अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत की प्रगति में ज्ञान के महत्व को रेखांकित करने के लिए नारे में 'जय विज्ञान' जोड़ा।

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को जनजातीय मामलों के मंत्रालय, उत्तर-पूर्व क्षेत्र विभाग और सामाजिक कल्याण मंत्रालय को सामाजिक न्याय मंत्रालय में परिवर्तित करने के लिए नए विभागों के निर्माण के लिए भी श्रेय दिया जाता है। मई 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। ये 1974 के बाद भारत का पहला परमाणु परीक्षण था। वाजपेयी ने परीक्षण ये दिखाने के लिए किय़ा था कि भारत परमाणु संपन्न देश है। हालांकि उनके आलोचक इस परीक्षण की ज़रूरत पर सवाल उठाते रहे हैं, क्योंकि जवाब के तौर पर पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किया था। वैसे ये वो दौर था जब विश्व हिंदू परिषद के लोगों ने ये मांग की थी कि पोखरण की रेत को पूरे भारत में प्रसाद के तौर पर बांटा जाए। इस परीक्षण के बाद अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा और कई पश्चिमी देशों ने आर्थिक पांबदी लगा दी थी लेकिन वाजपेयी की कूटनीति कौशल का कमाल था कि 2001 के आते-आते ज़्यादातर देशों ने सारी पाबंदियां हटा ली थीं।

प्रधानमंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्तों को सुधारने की कवायद को तेज़ किया था। उन्होंने फरवरी, 1999 में दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू की थी। पहली बस सेवा से वे ख़ुद लाहौर गए और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के साथ मिलकर लाहौर दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। ये क़दम उन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल में किया था। इतना ही नहीं, वाजपेयी अपनी इस लाहौर यात्रा के दौरान मीनार-ए-पाकिस्तान भी गए। दरअसल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा से पाकिस्तान के अस्तित्व को नकारता रहा था और अखंड भारत की बात करता रहा था। वाजपेयी का मीनार-ए-पाकिस्तान जाना एक तरह से पाकिस्तान की संप्रभुता को संघ की ओर से भी स्वीकार किए जाने का संकेत माना गया। तब तक भारत का कोई कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी मीनार-ए-पाकिस्तान जाने का साहस नहीं जुटा पाए थे।

मीनार-ए-पाकिस्तान वो जगह है जहां पाकिस्तान को बनाने का प्रस्ताव 23 मार्च, 1940 को पास किया गया था। मीनार-ए-पाकिस्तान जाकर वाजपेयी ने कहा था कि मुझे काफ़ी कुछ कहा गया है लेकिन मुझे उसमें कोई लॉजिक नज़र नहीं आता। इसलिए मैं यहां आना चाहता था। मैं कहना चाहता हूं कि पाकिस्तान के अस्तित्व को मेरे स्टांप की ज़रूरत नहीं है, मुझसे अगर भारत में सवाल पूछे गए तो मैं वहां भी जवाब दूंगा। वरिष्ठ पत्रकार किंग्शुक नाग ने वाजपेयी पर लिखी पुस्तक आल सीज़ंड मैन में लिखा है कि उनसे तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने कहा था कि अब तो वाजपेयी जी पाकिस्तान में भी चुनाव लड़े तो जीत जाएंगे। 

बाद में पाकिस्तान की कमान परवेज़ मुशर्रफ़ के हाथों में आ गई, वाजपेयी ने तब भी रिश्ते को सुधारने के लिए बातचीत को तरजीह दी, आगरा में दोनों नेताओं के बीच हाई प्रोफ़ाइल मुलाकात हुई भी हालांकि ये बातचीत नाकाम हो गई थी।

वाजपेयी सरकार ने पोटा क़ानून बनाया, ये बेहद सख़्त आतंकवाद निरोधी क़ानून था, जिसे 1995 के टाडा क़ानून के मुक़ाबले बेहद कड़ा माना गया था। महज दो साल के अंदर इस क़ानून के तहत 800 लोगों को गिरफ़्तार किया गया और क़रीब 4000 लोगों पर मुक़दमा दर्ज किए गए। तमिलनाडु में एमडीएमके नेता वाइको को भी पोटा क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया था। महज दो साल के दौरान वाजपेयी सरकार ने 32 संगठनों पर पोटा के तहत पाबंदी लगाई। वाजपेयी सरकार ने संविधान में संशोधन की ज़रूरत पर विचार करने के लिए एक फरवरी, 2000 को संविधान समीक्षा के राष्ट्रीय आयोग का गठन किया था। 

राजनीतिक जनमानस में उनका आकर्षण इतना लोकप्रिय था कि वे पूर्व प्रधानमंत्री और 'भारत रत्न' अटल बिहारी वाजपेयी देश के एकमात्र राजनेता थे, जिन्होंने 4 राज्यों के 6 लोकसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया। उत्तर प्रदेश में लखनऊ और बलरामपुर, गुजरात में गांधीनगर, मध्य प्रदेश में ग्वालियर और विदिशा और दिल्ली में नई दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले वाजपेयी एकमात्र नेता हैं। अटल बिहारी वाजपेयी जी के बाद एकमात्र भारतीय राजनेता शरद यादव जी थे जिन्होंने तीन राज्यों से लोकसभा चुनाव जीता। सौभाग्य से स्वर्गीय शरद यादव अटल बिहारी वाजपेई सरकार में कैबिनेट मंत्री थे।

अटल बिहारी वाजपेयी जी ने भारती राष्ट्र की प्रगति-उन्नति के लिए अपना सब कुछ देश को समर्पित कर दिया।भारत राष्ट्र के लिए समर्पित कविकुल के महान योद्धा अटल बिहारी वाजपेयी 16 अगस्त 2018 को पंचतत्व में विलीन हो गए। सत् सत् नमन! (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)