क्यों उड़े मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में धुर्रे : नवीन जैन
लेखक : नवीन जैन

स्वतंत्र पत्रकार. इंदौर (एमपी)

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एक शेर का दूसरा मिसरा है- "लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई" मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के हालिया विधानसभा चुनावों में भले मंदिर-मस्जिद मुद्दा न उछला हो, लेकिन जानकारों का कहना है कि तमिलनाडु के मंत्री उदय निधि स्टालिन का एक ही वाक्य तमिलनाडु से सुदूर उक्त तीन राज्यों में कांग्रेस के बड़ी मेहनतों से गड़े तंबू उखाड़ गया, और कांग्रेस एक तरह से अनाथ हो गई। उदय निधि ने एक स्थान पर कह दिया कि सनातन धर्म तो डेंगू, मलेरिया, और न जाने क्या-क्या है। बस, जैसे सोई हुई बारूद में माचिस की जलती हुई एक ही तीली ऐसी पड़ी, कि कांग्रेस के  परखच्चे उड़ गए। याद रखें कि उदय निधि की पार्टी ,और कांग्रेस विपक्षी गठबंधन इंडिया एलायंस के अनिवार्य अंग हैं। कांग्रेस, तो वैसे भी इस समूह की पालनहार है। उसके थिंक टैंक ने भी तत्काल पेच अप नहीं किया और उधर उदय निधि स्टालिन इतने वाचाल निकले कि अपनी बात पर अड़े रहे। 

माना जाता है कि इसी एक बयान के कारण लोगों ने एक बार फिर मानना शुरू कर दिया कि देश में धर्म रक्षक पार्टी कोई है, तो सिर्फ भाजपा ही है। मध्य प्रदेश  हिंदी बेल्ट का एक ऐसा महत्वपूर्ण राज्य है जहां कुल 230 सीटें हैं। इस  सूबे में कांग्रेस की जो गत हुई है ,उसकी कल्पना, तो भाजपा ने भी नहीं की थी। इस प्रदेश में सरकार बनाने के लिए मैजिक फिगर 116//117चाहिए। भाजपा खुद मानकर चल रही थी, कि चूंकि इस बार वोटिंग बूथों पर भीड़ टूट पड़ी है, इसलिए हालात पुराने जैसे भी हो सकते हैं। नोट करें कि 2018के विधान सभा चुनावों में भाजपा के हत्थे 107,और कांग्रेस के पल्ले 114सीटें पड़ी थीं।कमलनाथ ने कमाल दिखाते हुए कांग्रेस की सरकार बना ली थी, लेकिन माना जाता है बस उन्हीं दिनों से कांग्रेस का कबाड़ा होना शुरू भी हो गया। 

माना जाता है कि चूंकि कमलनाथ संजय ब्रिगेड के सदस्य रहे हैं, इसलिए खैर वर्तमान केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता स्व. माधव राव सिंधिया को तो  वे पर्याप्त सम्मान देते रहे हैं। वैसे भी चर्चा आम रही है कि पूर्व पीएम स्व इन्दिरा गांधी कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा मानती रही हैं। और फिर कमलनाथ पूर्व केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। शायद इसीलिए वे अपनी भावनाओं या आवेश को कंट्रोल नहीं कर पाए, और इसी इगो के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ तुर्ष  बयानबाजी कर दी। जिससे भड़ककर सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत करके भाजपा ज्वाइन कर ली। 

कहावत है, कि किसी भी अखाड़े में वही कुश्ती देखने में मज़ा आता है, जिसमें दोनों तरफ़ के पहलवान बराबरी के हों, वर्ना एक जबर जंग पहलवान एक ही दाव में सामने वाले पहलवान को चारो खाने चित्त कर सकता है। मध्य प्रदेश में उक्त कहावत एकदम फिट बैठी। याद करें जब इसी सूबे में महा उप चुनाव हुए थे, तो  कमलनाथ ने दावा कर दिया था, कि देख लेना भाजपा को दो सीटी भी मिल गई, तो वो अपनी खैर समझे,लेकिन हुआ एकदम उल्टा। बीस से ज़्यादा उप चुनावों की सीटों में से खुद कांग्रेस को पल्ले पड़ी कुल दो सीटें। इस बार भी कमलनाथ के साथ दिग्विजय सिंह भी 150 सीटों के पार जाने का खोखला दावा भरते रहे। 

दोनों नेताओं को मिलाकर मीडिया के एक बड़े हिस्से को भी मुगालता रहा कि वोटर बदलाव चाहते हैं। क्यों बदलाव चाहते हैं इसका का कोई ठोस जवाब किसी के पास नहीं था। हां, तमाम घोटालों, प्रशानिक चूक, बढ़ते अपराध, महंगाई, बेरोजगारी, कुपोषण, ट्रांसफर उद्योग, भड़काऊ बयान, धार्मिक कट्टरता आदि के घिसे पिटे हवाले ज़रूर दिए जाते रहे, लेकिन मतदाताओं ने पीएम नरेंद्र मोदी को एक तरह से से सर माथे बैठाए रखा। 

इन्दौर की नंबर एक सीट से नव निर्वाचित भाजपा विधायक और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय यदि यह कह रहे हैं कि लाड़ली बहना योजना का कोई खास असर वोटिंग पर नहीं पड़ा तो और मध्य प्रदेश मोदी मय, और मोदी मध्य प्रदेश मय हो गए हैं तो इस बात में दम लगता है, क्योंकि राजस्थान, और छत्तीसगढ़ में तो भाजपा ने ऐसा कोई लोक लुभावन नारा या घोषणा नहीं की थी, फिर भी उसने उक्त दोनों किले फतेह किए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)