युवाओं के शैक्षिक विकास में मील का पत्थर बनेगा एटा का पुस्तक मेला

स्व. श्री बृजपाल सिंह स्मृति अष्टम पुस्तक मेला

जिलाधिकारी एटा श्री प्रेम रंजन सिंह उद्घाटन भाषण देते हुए

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एटा। बीती 7 दिसम्बर को एटा के सकीट रोड स्थित 109 साल पुराने राजकीय इंटर कालेज के प्रांगण में स्वर्गीय श्री बृजपाल सिंह यादव पी ई एस की स्मृति में इस वर्ष भी पुस्तक मेले का आयोजन हुआ। गौरतलब है कि बीते सात वर्षों की भांति इस वर्ष भी इस पुस्तक मेले का आयोजन स्वामी विवेकानंद कल्याण समिति के तत्वावधान में किया गया जिसका शुभारम्भ जिलाधिकारी एटा श्री प्रेम रंजन सिंह द्वारा किया गया। ज्ञातव्य है कि इस पुस्तक मेले में जिसमें एटा जनपद ही नहीं, समीपस्थ कासगंज, हाथरस, फिरोजाबाद, मैनपुरी आदि जिलों के हजारों की संख्या में स्कूली छात्रों, उन विद्यालयों के शिक्षकों, प्रधानाचार्यों, डिग्री कालेज के छात्रों, प्रवक्ताओं,  प्राचार्यों, प्रबंधकों, अभिभावकों, प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों व समाजसेवियों ने भाग लिया, का शुभारंभ करते हुए जिलाधिकारी एटा श्री प्रेमरंजन सिंह ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि यह पुस्तक मेला अपने आप में अभूतपूर्व है। अभूतपूर्व इसलिए भी है कि यह पुस्तक मेला युवाओं के भविष्य को संवारने की दिशा में एक अनुपम और अतुलनीय प्रयास है। इसकी जितनी प्रशंसा की जाये वह कम है। 

उन्होंने इस अवसर पर मौजूद हजारों छात्रों को संबोधित करते हुए पुस्तकों की उनके जीवन में महत्ता के बारे में बताते हुए कहा कि पुस्तकें ही व्यक्ति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती हैं। आप शैक्षिक प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी हेतु यहां से पुस्तकें खरीदें। आप इस अवसर का लाभ उठावें क्योंकि यहां हर विधा की पुस्तकों का अपार भंडार मौजूद है। जिलाधिकारी ने मेले में उपस्थित एटा सहित समीपस्थ जिलों के प्रधानाचार्यों को भी अपने विद्यालयों के पुस्तकालयों हेतु पुस्तकें खरीदने हेतु निर्देशित भी किया। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने पुस्तक मेले के सफल आयोजन हेतु शुभकामनाएं देते हुए मेले के संयोजक ए आर एम संजीव यादव एवं उनकी समस्त टीम की भूरि भूरि प्रशंसा की और बधाई दी। 

जिलाधिकारी एटा को स्मृति चिन्ह भेंट करते उप शिक्षा निदेशक डायट डा जितेन्द्र सिंह

इसके उपरांत जिलाधिकारी श्री सिंह ने मेले में आये देश के नामचीन प्रकाशकों की स्टाल पर जाकर पुस्तकों को देखा और मेले में विभिन्न कालेजों से आयीं छात्राओं द्वारा बनायी रंगोली का भी अवलोकन किया। मेले में उद्घाटन सत्र में मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशक  मनोज कुमार गिरि ने जहां इस मेले को जिले के युवाओं के लिए मील के पत्थर की संज्ञा दी, उप शिक्षा निदेशक डायट डा जितेन्द्र सिंह ने पुस्तक मेले के आयोजन को अभिनव प्रयास बताया, वहीं  जिला विद्यालय निरीक्षक चंद्रकेश यादव, ए आर एम एटा  राजेश यादव व राजकीय इंटर कालेज एटा के प्रधानाचार्य सुभाष सिंह चाहर ने कहा कि पुस्तक मेला आयोजन समिति और उसके आयोजक संजीव यादव इस भगीरथ प्रयास के लिए शत शत बधाई और साधुवाद के पात्र हैं।
छात्राओं द्वारा बनायी रंगोली का अवलोकन करते अतिथिगण


पुस्तकों का अवलोकन करते छात्र/छात्राएं व अभिभावक

गांधी जी ट्रस्ट की भावना से पूंजीवाद के दुष्परिणामों को दूर करना चाहते थे-- ज्ञानेन्द्र रावत
गांधी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पर आयोजित संगोष्ठी में अतिथियों का परिचय देते श्री ज्ञानेन्द्र रावत

पुस्तक मेले के दूसरे दिन "गांधी, गांधीवाद और ट्रस्टीशिप के सिद्धांत की प्रासंगिकता" विषय पर आयोजित संगोष्ठी के प्रारंभ में वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, पर्यावरणविद व पुस्तक मेला संरक्षक ज्ञानेन्द्र रावत ने अतिथियों का परिचय देते हुए कहा कि यह प्रसन्नता और गर्व का विषय है कि इस अवसर पर प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता और एशिया के नोबल पुरस्कार के नाम से ख्यात मैग्सैसे पुरस्कार से सम्मानित डा संदीप पाण्डेय, प्रख्यात गांधीवादी व गांधी के विचारों का देशभर में प्रचार-प्रसार व उनके चित्रों की प्रदर्शनी लगाने वाले रमेश भाई, जाने-माने शिक्षाविद, गांधी दर्शन के व्याख्याता और जवाहर लाल नेहरू पी जी कालेज, एटा के पूर्व प्राचार्य डा० भूपेन्द्र शंकर, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, पी ए सी की एटा स्थित वाहिनी के कमांडेंट आई पी एस श्री आदित्य प्रकाश वर्मा व अलवर राजस्थान के जाने माने पर्यावरण कार्यकर्ता व समाजसेवी रामभरोस मीणा उपस्थित हैं। उनके पुस्तक मेले के दौरान इस संगोष्ठी में पधारने पर पुस्तक मेला समिति व एटा वासी स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। इस संगोष्ठी में हम गांधीजी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत जो श्रम और पूंजी के बीच गैर मशीनी व्यवस्था पर आधारित है। क्योंकि गांधी जी कार्ल मार्क्स की तरह पूंजीवाद अथवा बुर्जुआ वर्ग को समाप्त नहीं करना चाहते थे और वह न्यास यानी ट्रस्ट की भावना से पूंजीवाद के दुष्परिणामों को दूर करना चाहते थे। आप सभी इस अवधारणा पर यहां मौजूद अतिथियों के विचार सुनेंगे।

प्रारंभ में श्री रमेश भाई ने अपने संबोधन में कहा कि ट्रस्टीशिप का सिद्धांत गांधी जी ने 1903 में दक्षिण अफ्रीका में प्रतिपादित किया था। उन्होंने इस सिद्धांत का आधार ईशोषनिषद के प्रथम श्लोक को माना था। उसका अर्थ है कि इस जगत में जो कुछ भी है, जीवन है, वह सब ईश्वर का बसाया हुआ है। इसलिए ईश्वर के नाम से त्याग कर तू किसी के धन की लालसा न कर, वासना न कर, उसका यथा प्राप्त भोग कर। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि व्यक्ति की कमाई राज्य के काम आनी चाहिए, वह तो उस कमाई का मात्र संरक्षक बनकर ही रहे। शिक्षाविद डा भूपेन्द्र शंकर ने कहा कि प्रकृति की रचना और व्यक्ति की क्षमता कभी भी समान नहीं हो सकती है। यह सही है कि कुछ लोगों की कमाई की क्षमता कुदरती तौर पर अधिक होगी और कुछ की दूसरों के मुकाबले बहुत ही कम। इसलिए उनकी अधिकांश कमाई राज्य की भलाई के लिए ही काम आनी चाहिए। ठीक उस तरह जिस तरह एक पिता की सभी कमाऊ संतानों की आमदनी परिवार के कोष में ही जमा होती है। वे तो मात्र उस कमाई के संरक्षक ही बनकर रहेंगे। इस तरह से यह साफ जाहिर है कि गांधी जी का मंतव्य क्या था और वह किन लोगों की बात कर रहे थे और किनके पक्ष में खडे़ थे। आई पी एस श्री आदित्य प्रकाश वर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि गांधी एक व्यक्ति नहीं महामानव थे। वे आखिरी पंक्ति में खडे़ आदमी की बहबूदी चाहते थे। उनका मानना था कि जो व्यक्ति अपनी जरूरतों से भी ज्यादा संपत्ति अर्जित करता है, उसे केवल और केवल  अपनी  जरूरतों की पूर्ति हेतु उस संपत्ति के उपभोग का अधिकार है। शेष यानी बची हुयी संपत्ति का प्रबंधन,देखभाल या उसका उपयोग एक ट्रस्टी की हैसियत से

समाज के कल्याण के लिए करना चाहिए। इस विचार से गांधी एक युग दृष्टा ही नहीं, समाज सुधारक ज्यादा प्रतीत होते हैं जिनका मकसद समाज के अंतिम व्यक्ति का कल्याण है। राम भरोस मीणा कहते हैं कि कुछ लोग गांधी जी को पूंजीवाद का समर्थक कहते हैं जो नितांत गलत है। असलियत में पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजीपति, अधिकारी और राजनेता मात्र और मात्र अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति ही करते हैं। इसमें देश गौण हो जाता है लेकिन गांधी जी देश को सर्वोपरि मानते थे। जबकि पूंजीवाद में जहां राजनेता, अधिकारी, पूंजीपति और उनके समर्थक आर्थिक सलाहकार शब्दों का खेल खेलते हैं जिसमें आंकडो़ं की बाजीगिरी के चलते देश की गिरती अर्थ व्यवस्था को सामूहिकता के ढोंग के चलते  ऊपर उठा दिया जाता है जबकि वास्तविकता उससे कोसों दूर रहती है।

गांधी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत एक सामाजिक-आर्थिक दर्शन है--संदीप पाण्डेय

संगोष्ठी को सम्बोधित करते श्री संदीप पाण्डेय

मुख्य वक्ता डा संदीप पाण्डेय ने अपने सम्बोधन में कहा कि महात्मा गांधी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप असलियत में एक सामाजिक आर्थिक दर्शन है जो व्यक्ति को केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संपत्ति के उपयोग का अधिकार देता है और शेष संपत्ति का प्रबंध उसे एक ट्रस्टी की हैसियत से कर समाज के कल्याण हेतु करना चाहिए। यह व्यक्ति को एक साधन मुहैय्या कराता है जिसके तहत धनी लोग उन ट्रस्टों के ट्रस्टी होंगे जो सामान्यत: समाज के सामान्य लोगों के कल्याण की बात करते हैं। गांधीजी मानते थे कि अमीर यानी धनाढ्य लोगों को देश के वंचित तबके और गरीब लोगों की मदद के लिए अपनी संपत्ति छोड़ देनी चाहिए। गांधीजी के शब्दों में देखिए कि -"मान लीजिए कि मेरे पास उचित मात्रा में धन है। वह भले विरासत में मिला हो या व्यापार और उद्योग के जरिये ही क्यों न मिला हो, मुझे पता होना चाहिए कि वह सारी संपत्ति मेरी नहीं है।जो शेष है यानी मेरी शेष संपत्ति समुदाय की है और उसका इस्तेमाल समुदाय के कल्याण के लिए ही होना चाहिएगा। आज योरोप और अमेरिका के जरिये होता हुआ क्रोनी कैपिटेलिज्म देश में अपनी पैठ बनाने में लगा हुआ है। पूंजीवाद की आंधी के चलते खुले बाजार का अगुआ अमेरिका आज संरक्षणवाद की बैसाखी थामने को अभिशप्त है। ऐसे संक्रमणकाल में अपने देश का भविष्य विकास के नामपर कुछ पूंजीपतियों के हाथों सौंप देना देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।इससे बचाव का एकमात्र रास्ता गांधी दर्शन यानी गांधी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत में ही निहित है।

संगोष्ठी के अंत में पुस्तक मेला आयोजक ए आर एम श्री संजीव यादव ने कहा कि गांधी एक युगदृष्टा, अहिंसा के पुजारी और महामानव तो थे ही, वह जनता के अर्थशास्त्री भी थे। उनका दृष्टिकोण मानवीय गरिमा में निहित था। उनका आर्थिक दर्शन उनके जीवन भर के असंख्य प्रयोगों का परिणाम है। उनके व्यावहारिक दृष्टिकोण ने मानवीय गरिमा की रक्षा की प्रक्रिया में मौजूदा सामाजिक आर्थिक समस्याओं को एक नयी दिशा दी। उनके आर्थिक विचार गरीबी, सामाजिक-आर्थिक अन्याय के खिलाफ शोषण और गिरते नैतिक मानकों के विरुद्ध उनके सामान्य धर्मयुद्ध का हिस्सा थे। असलियत में गांधी विचार का मूल मानवीय भौतिक समृद्धि नहीं वरन् मानवीय गरिमा की सुरक्षा है। उनका लक्ष्य मानवीय सामाजिक मूल्यों के प्रति अल्प सम्मान के साथ उच्च जीवन स्तर के बजाय मानव जीवन का विकास, उसका उत्थान और सर्वधन था। सच तो यह है कि वे आधुनिक आर्थिक दर्शन को भौतिकवाद के दलदल से बाहर निकालकर या यूं कहें कि मुक्त कराकर उच्च आध्यात्मिक धरातल पर लाना चाहते थे। उनके प्रयास वास्तव में ट्रस्टीशिप की उनकी अवधारणा में दिखाई देते हैं। ट्रस्टीशिप की उनकी अवधारणा किसी वर्ग विशेष को खत्म करने की कोशिश नहीं करती बल्कि वह वर्ग के अंतर को कैसे कम किया जाये, यह विचार प्रदान करती है। उनका विचार आज भी प्रासंगिक है। उसका अहम कारण यह है कि इसका लक्ष्य दुनिया से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव करना है। उनके इन्हीं विचारों के संदर्भ में आज इस अवसर पर पधारे संदीप पाण्डेय जी, रमेश भाई जी, आई पी एस एटा स्थित पी ए सी वाहिनी के सेनानायक आदित्य प्रकाश वर्मा जी, प्रख्यात शिक्षाविद डा० भूपेन्द्र शंकर जी व अलवर से पधारे  राम भरोस मीणा जी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। 

संगोष्ठी में राज कुमार पाराशर की पुस्तक परिवर्तन का विमोचन करते श्री संदीप पाण्डेय व अन्य अतिथि गण

संगोष्ठी के अंत में राजकुमार पाराशर की पुस्तक "परिवर्तन" का श्री संदीप पाण्डेय व अन्य मंचासीन अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया।

धरती तभी बचेगी जब पर्यावरण बचेगा--पंकज चतुर्वेदी

पर्यावरण संगोष्ठी को सम्बोधित करते श्री पंकज चतुर्वेदी

पुस्तक मेले में तीसरे दिन पर्यावरण संगोष्ठी में देश के जाने माने पत्रकार एवं नदी जल विशेषज्ञ पंकज चतुर्वेदी ने अपने सम्बोधन में कहा कि धरती तभी बचेगी जब पर्यावरण बचेगा। उन्होंने कहा कि आज तथाकथित विकास के चलते हुए बदलावों के कारण धरती पर दिनोंदिन बोझ बढ़ता चला जा रहा है। यह तथाकथित विकास का मार्ग वास्तव में विनाश का मार्ग है जिसके पीछे आज इंसान अंधाधुंध भागे चला जा रहा है। इसे जानने-बूझने और सतत प्रयासों से पृथ्वी के इस बोझ को कम करने की जरूरत है। इसमें जलवायु परिवर्तन ने अहम भूमिका निबाही है। इसलिए हम सबका दायित्व बनता है कि पृथ्वी के ऊपर आये इस भीषण संकट के बारे में सोचें और इससे निजात पाने के उपायों पर अमल करने का संकल्प लें। चूंकि हम पृथ्वी को हर समय भोगते हैं इसलिए पृथ्वी के प्रति अपने दायित्व का हमेशा ध्यान में रख कर हर दिन निर्वहन भी करें। यह सब विकास के ढांचे में बदलाव लाये बिना असंभव है। 


विश्व जल परिषद के सदस्य पर्यावरणविद डा जगदीश चौधरी को स्मृति चिन्ह भेंट करते पूर्व प्राचार्य श्री रनवीर सिंह यादव

विश्व जल परिषद के सदस्य और पर्यावरणविद डा जगदीश चौधरी ने कहा कि आज सबसे बडी़ समस्या मानव का बढ़ता उपभोग है। कोई यह नहीं सोचता कि पर्यावरण मानव जीवन के साथ साथ लाखों लाख वनस्पतियों, जीव जंतुओं के जीवन का आधार भी है। इसके लिए खासतौर से उच्च वर्ग, मध्य वर्ग, सरकार और संस्थान सभी समान रूप से जिम्मेवार हैं जो संसाधनों का बेदर्दी से इस्तेमाल कर रहे हैं। जीवाश्म ईंधन का पृथ्वी विशाल भंडार है लेकिन जिस तेजी से इसका दोहन हो रहा है, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। इसके इस्तेमाल और बेतहाशा खपत ने पर्यावरण के खतरों को निश्चित तौर पर चिंता का विषय बना दिया है। असल में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में हमने कीर्तिमान बनाया है। इससे जैव विविधता पर संकट मंडराने लगा है। फिर प्रदूषण की अधिकता के कारण देश की नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। उनके आसपास स्वस्थ जीवन की कल्पना ही बेमानी है।

संगोष्ठी को सम्बोधित करते गांधीवादी श्री रमेश चंद्र शर्मा

प्रख्यात गांधीवादी रमेश भाई ने "नदियां धीरे बहो...." नामक गीत के माध्यम से नदियों की दुर्दशा और उनके मानवीय जीवन के साथ सम्बंधों का सिलसिलेवार वर्णन किया। अलवर से आये पर्यावरणविद रामभरोस मीणा ने कहा कि कैसी विडम्बना है कि आज एक करोड़ तीस लाख वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र हर साल नष्ट कर दिये जाते हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि दुनिया में 34 फीसदी के लगभग ही वनक्षेत्र बचा है। कोरोना काल ने वृक्षों की महत्ता को सिद्ध कर दिया है। इसलिए वृक्षारोपण बेहद जरूरी है। यह जान लेना कि वृक्ष रहेंगे तो हम रहेंगे, इनके बिना जीवन की कल्पना बेमानी है।

पर्यावरणविद डा अनुभा पुंढीर को स्मृति चिन्ह भेंट करते भारत संचार निगम के अधिकारी श्री जितेन्द्र शाक्य

पर्यावरणविद व रघुकुल आर्यावर्त एवं उत्तराखंड में प्लास्टिक विरोधी अभियान की प्रमुख प्रोफेसर डा अनुभा पुंढीर ने प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में सिलसिलेवार व्याख्या करते हुए कहा कि समय की मांग है कि हम प्लास्टिक के उपयोग से बचें और मानव जीवन की रक्षा की दिशा में इसका पूर्णत: बहिष्कार करें तभी कुछ बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। उनके अनुसार प्लास्टिक के माइक्रो कण हमारे ईको और खाद्य चेन के हर स्तर पर मौजूद हैं । यही नहीं जो हवा हम सांस के जरिये लेते हैं, उसमें भी माइक्रो प्लास्टिक के अति सूक्ष्म कण मौजूद रहते हैं। ये प्लास्टिक के कण हमारे भूजल, दूध और खाद्य पदार्थों में भी हैं जो हमें अलग अलग तरीकों से बीमार बना रहे हैं। इसी को दृष्टिगत रखते हुए हमने सिंगल यूज प्लास्टिक से छुटकारा पाने के लिए हमने थैला अभियान आज से दस बरस पहले शुरू किया था। इसके तहत हमने सभी को एक कपडे़ का थैला, पानी की एक बोतल और स्टील का एक गिलास अपने साथ रखने का अभियान चलाया था। इससे 10 से 60 फीसदी प्लास्टिक प्रदूषण रोकने में समर्थ हो सकते हैं।

पर्यावरण संगोष्ठी को सम्बोधित करते पर्यावरणविद सुबोध नंदन शर्मा

पर्यावरणविद एवं शेखा झील के उद्धारक सुबोध नंदन शर्मा ने कहा कि जनसंख्या वृद्धि से धरती के विनाश का खतरा मंडरा रहा है।इससे वे सभी प्रजातियां खत्म हो जायेंगी जिनपर हमारा जीवन निर्भर है। जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी में आये बदलावों से इस बात की प्रबल संभावना है कि इस सदी के अंत तक धरती का बहुत हद तक स्वरूप ही बदल जायेगा। जाहिर है कि इन पर अंकुश लगाये जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारा संघर्ष अधूरा रह जायेगा। इसके लिए पहला कदम हमें अपने उपभोग के स्तर को कम करना और जीवनशैली में बदलाव जरूरी है।

संगोष्ठी के संचालक मेला समिति के संरक्षक वरिष्ठ पत्रकार राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति के अध्यक्ष पर्यावरणविद श्री ज्ञानेन्द्र रावत ने कहा कि स्वस्थ जीवन के लिए हमें प्रकृति के करीब जकर सीखना होगा जिसे हम बिसार चुके हैं। यह जानना होगा कि यह दुर्दशा प्रकृति और मानव के विलगाव की ही परिणिति है। सरकारों के लिए यह जरूरी है कि  वे विकास को मात्र आर्थिक लाभ की दृष्टि से न देखें बल्कि पर्यावरण को भी विकास का आधार बनायें। इसके लिए जरूरी है कि हम प्रकृति के प्रहरी बनकर उसे बचाने औरआवश्यकता अनुसार उपभोग का संकल्प लें और दूसरों को भी प्रेरित करें। तभी पर्यावरण की रक्षा कर पाने में हम समर्थ हो सकते हैं। पर्यावरण संगोष्ठी के मध्य गार्गी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित जान बेलामी फोस्टर की लिखी पुस्तक "पारिस्थितिकी पूंजीवाद के खिलाफ" का मंचासीन अतिथियों ने विमोचन किया।

पर्यावरण संगोष्ठी में गार्गी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित जान बेलामी फोस्टर की पुस्तक 'पारिसथितिकी पूंजीवाद के खिलाफ' का विमोचन करते पर्यावरणविद

इससे पूर्व महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत पुलिस विभाग द्वारा आपरेशन जागृति जागरूकता कार्यक्रम के तहत महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति सजग करने के साथ  उनके सम्मान और  स्वावलम्बन पर चर्चा हुयी। वहीं मतदाता जागरूकता कार्यक्रम के तहत उन्हें शत प्रतिशत मतदान में भागीदारी का संकल्प दिलाया गया। इस अवसर पर एडीएम प्रशासन श्री आलोक कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि शासन-प्रशासन महिलाओं को उनके अधिकार और न्याय दिलाने को प्रयासरत है। आपरेशन जागृति अभियान का मकसद महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा व उनका सम्मान सुरक्षित करना है। 

पर्यावरणविदों के विचार सुनते लोग

अपर पुलिस अधीक्षक धनंजय कुशवाहा ने कहा कि पुलिस विभाग महिलाओं की सुरक्षा तथा सम्मान के लिए संकल्पित है। क्षेत्राधिकारी नगर श्री विक्रांत द्विवेदी ने कहा कि जब महिलाएं जागरूक होंगी तो निश्चित ही अपराधों में कमी आयेगी और अपराधियों पर भी त्वरित कार्यवाही संभव होगी।स्वीप की जिला आईकान सीमा वार्ष्णेय ने कहा कि आज महिलाएं किसी से कम नहीं हैं।महिलाओं का जितना दायित्व समाज और परिवार के प्रति है, उससे भी अधिक दायित्व  लोकतंत्र में अपने मताधिकार के प्रयोग के प्रति है। महिला थाना प्रभारी नंदिनी सिंह ने भी आपरेशन जागृति को लेकर महिलाओं को जाग्रत किया। इस अवसर पर कोतवाली नगर प्रभारी इंसपेक्टर निर्दोष कुमार सेंगर,स्वीप की सह जिला आईकान अंजली गुप्ता, मंजू द्विवेदी व आरती शर्मा की उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय थी।

मेले में आपरेशन जागृति के तहत महिलाओं को सम्बोधित करते अपर पुलिस अधीक्षक श्री धनंजय कुशवाह

7 से 10 दिसम्बर तक चलने वाले चार दिवसीय पुस्तक मेले में जहां पहले दिन उद्घाटन के पश्चात रंग और कलाकारी का अद्भुत नजारा दिखा, रंगोली प्रतियोगिता का आयोजन मतदाता जागरूकता की थीम पर आधारित रहा, महिला आर्ट गैलरी और राष्ट्रपिता बापू के जीवन के गांधीवादी रमेश भाई द्वारा लगायी चित्रों की प्रदर्शनी आकर्षण का केन्द्र रहीं, तीसरे दिन वाद-विवाद प्रतियोगिता और गीत-कविता प्रतियोगिता में प्रतिभागी छात्र-छात्राओं ने अपने तर्कपूर्ण वक्तव्यों से सभी को आकर्षित किया, वहीं गीत कविता की काव्य रस धारा ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया और देर शाम तक गीत की स्वर लहरियों का श्रोता आनंद उठाते रहे। 

मेले के अंतिम दिन छात्र-छात्राओं ने अपने गीतों और वाद्य यंत्रों के माध्यम से स्वर लहरियों से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। इसके उपरांत नृत्य तथा योग का प्रदर्शन कर उपस्थित हजारों दर्शकों की वाहवाही लूटी। साथ ही सत्तर के दशक की जीआईसी एटा की टापर रहीं डा आशा अग्रवाल ने अपने पिता स्व ओंकार प्रसाद अग्रवाल व भाई स्व० रामदास अग्रवाल की स्मृति में वर्ष 2023 की हाई स्कूल एवं इंटरमीडिएट की परीक्षा में जनपद के टापर रहे जीआईसी एटा के छात्र मुनेन्द्र कुमार, विवेक बघेल, गौतम कुशवाहा, हिमांशु कुमार, अमर पाल सिंह को नकद प्रोत्साहन राशि प्रदान कर सम्मानित किया। इसके अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में किसी ने देशभक्ति के गीतों पर नृत्य किया तो किसी ने भक्ति गीतों से सबका मन मोह लिया । 

इस अवसर पर सबसे उल्लेखनीय एवं प्रशंसनीय कार्य यह रहा कि बीते माह मेला संयोजक ए आर एम संजीव यादव के आह्वान कि 'समाज अपने पूर्वजों की स्मृति में जनपद के साधनहीन कमजोर वर्ग के बच्चों को पाठ्य पुस्तकें व महापुरुषों की जीवनियां दे ताकि जहां उन्हें पाठ्य पुस्तकों के अभाव का सामना नहीं करना पडे़गा, वहीं वह विश्व के महापुरुषों की जीवनियों का अध्ययन कर अपने जीवन की दिशा निर्धारित करने में समर्थ होंगे' के तहत दानदाताओं से मिले तकरीब 2 लाख 45 हजार की राशि में से कालेजों द्वारा अनुशंसित साधनहीन गरीब छात्र-छात्राओं को दानदाताओं यथा सर्वश्री अशोक यादव, संभल, श्रीमती सुनीता यादव, होरावाला, देहरादून, श्री नरेन्द्र सिंह यादव, ए डी ओ पंचायत, एटा, श्री देवेन्द्र सिंह यादव, ब्लाक प्रमुख, अध्यक्ष, जिला फुटवाल संघ, एटा,श्री वैभव दीक्षित, भरतोली, मो आरिफ खान, वरिष्ठ लेखाकार, श्री सुशील यादव,प्रधान, डा रामनिवास यादव, निदेशक, श्री राम बाल भारती इंटर कालेज, एटा, श्री पुरुषोत्तम दास, एरिया मार्केटिंग आफिसर, श्री सुशील कुमार आर्य, जनरल मैनेजर, ओ एन जी सी, डा सीमा यादव, प्रवक्ता, राजकीय बालिका इंटर कालेज, एटा, ज्वाइंट कमिश्नर जी एस टी श्री अनिमेश कुमार सिंह, श्री राजीव कुमार यादव, सचिव, जिला फुटवाल संघ, एटा, श्री राजीव कुमार गुप्ता, उपाध्यक्ष, रिलायंस जियो, श्री विजय प्रकाश, प्रबंधक, एस के कालेज, एटा, श्री राजेश कुमार, महा प्रबंधक, बी एस एन एल, एडीजीसी श्री रविशंकर वार्ष्णेय एवं शिक्षाविद श्री कविशंकर वार्ष्णेय, एटा, मैडीकल आफिसर डा मनोज कुमार यादव, छछैना, श्री कृष्ण कुमार, परसौन, श्री घनश्याम शाक्य,वरिष्ठ प्रबंधक, मानव संसाधन विकास विभाग, श्री शिव प्रताप सिंह यादव, पूर्व अधिकारी, शिक्षा विभाग, डा० डी के सिंह, प्रधानाचार्य, श्री सत्यवीर सिंह, प्रवक्ता, जैड एच इस्लामियां इंटर कालेज, निधौलीकलां, श्री अखिलेश मिश्रा, उप महा प्रबंधक, बी एस एन एल, ए आर एम एटा श्री राजेश यादव, श्री शिव कुमार द्विवेदी, प्रधानाचार्य, भरतोली, श्री अनिल कुमार यादव, दरबपुर, डा जितेन्द्र कुमार, बाबरपुर, श्री अंकित पाण्डेय, बरना, श्री प्रशांत वर्मा, प्रबंधक, डी पी इंटर कालेज, कठौली, श्री मुजीब अहमद खान, फोरमैन, यू पी रोडवेज, श्री अवध नरेश, अपर जिला सहकारी अधिकारी एटा, श्री सुभाष चौहान, कांतौर एवं श्री प्रतीक यादव द्वारा प्रख्यात पर्यावरणविद अनुपम मिश्र की पर्यावरण पर लिखी कालजयी अनुपम पुस्तक "आज भी खरे हैं तालाब" सहित पाठ्य पुस्तकों के सैट भेंट कर अपने स्वजनों की स्मृतियों को जीवंत किया और भविष्य में उनकी यथासमय सहायता का बचन भी दिया गया। इस प्रयास की उपस्थित समुदाय ने भूरि-भूरि सराहना की और दानदाताओं का उनके सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया। गौरतलब बात यह रही कि यह पुस्तक मेला जीआईसी के दशकों पुराने छात्रों के सम्मिलन का केन्द्र बना जहां उन्होंने घंटों बैठकर अपनी स्मृतियों को जीवंत किया और वे एक दूसरे को आश्वस्त कर कि अगले वर्ष इस मौके पर फिर मिलेंगे, कह कर विदा हुए। 

पुस्तक मेले के चार दिनों में जहां तकरीब 13.7 लाख की पुस्तकें बिकीं, वहीं बच्चों को चाचा चौधरी, कार्टून एवं अन्य हिन्दी-अंग्रेजी कामिक्स की पुस्तकों ने काफी लुभाया। वहीं छोटे बच्चों को लिखना-पढ़ना सिखाने वाली पुस्तकें अभिभावकों की और युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी वाली व बुजुर्ग पाठकों की आध्यात्म व धार्मिक पसंदीदा पुस्तकें रहीं। साथ ही मेले में उपन्यासों के दीवानों की भीड़ काफी चर्चा में रही। प्रबुद्ब वर्ग ने भी देश-विदेश के जाने-माने लेखकों की पुस्तकों की जमकर खरीदारी की। वहीं मणिकर्णिका, मुर्दहिया सहित जूठन उपन्यास की मांग मेले में अधिक रही और प्रेमचंद की लिखीं पुस्तकें नमक का दारोगा, डा० जोसेफ मर्फी लिखित पुस्तक पावर आफ योर सबकानशियस माइंड, जोगेन्द्र सिंह लिखित पुस्तक चुनौतियों को चुनौती, अंतरमन की दिव्य गूंज, गुलाम गौस खान और गीता प्रेस आदि की पुस्तकें विद्यार्थियों ने ज्यादा पसंद कीं। वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, सरदार भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अब्दुल कलाम, बिल गेट्स के अलावा महापुरुषों की जीवनी जमकर खरीदी गयीं। छोटे बच्चों की मनोरंजक पुस्तकें, भारत व विश्व के मानचित्र और ग्लोब की बिक्री भी खूब हुयी। मेले में इस मध्य इतिहासकार डा० उमा सोलंकी द्वारा लिखित पुस्तक " इतिहास के स्वर्ण अच्छर :  एटा जनपद" का विमोचन  भी किया गया और इस पुनीत कार्य हेतु उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी।

मेले में समापन के पूर्व विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजयी छात्र-छात्राओं को प्रशस्ति पत्र व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया और उनके उज्ज्वल भविष्य एवं मंगलमय जीवन की कामना की गयी। मेले में हाथरस, कासगंज, मैनपुरी,फिरोजाबाद आदि समीपस्थ जिलों के अलावा सरस्वती शिशु मंदिर, एटा, राजकीय बालिका इंटर कालेज एटा, श्री गांधी स्मारक इंटर कालेज एटा, एसीसी कान्वेंट स्कूल एटा, जनता इंटर कालेज परसौन,  प्रज्ञा इंटर कालेज पटियाली, ज्ञान सरोवर ग्लोबल एकेडेमी अवागढ़, पुष्पादेवी बालिका कालेज, पंडित पातीराम इंटर कालेज हाथरस, वर्णी जैन इंटर कालेज एटा, डा० जेड एच इंटर कालेज, निधौलीकलां, श्याम बिहारी पब्लिक स्कूल एटा,एस बी पब्लिक स्कूल, एटा, श्री राम बाल भारती इंटर कालेज एटा, आदर्श इंटर कालेज जलेसर,जनता इंटर कालेज धुमरी, जनता इंटर कालेज कैलठा,डी पी इंटर कालेज कठौली,माधवानंद इंटर कालेज कसैला, आर डी इंटर कालेज अलीगंज,महारानी लक्ष्मीबाई कन्या इंटर कालेज, एटा, एमजीएचएम इंटर कालेज मारहरा आदि स्कूलों के हजारों छात्र-छात्राओं ने न केवल पुस्तक मेले में सहभाग किया बल्कि विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेकर, विजयी होकर अपने विद्यालय, शिक्षकों और अभिभावकों का नाम रोशन किया।

 गांधी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पर आयोजित संगोष्ठी को सुनते लोग

पुस्तक मेले में पूर्व पालिकाध्यक्ष राकेश गांधी, अतिरिक्त पंचायत राज अधिकारी नरेन्द्र सिंह, बेसिक शिक्षा अधिकारी, एटा श्री दिनेश कुमार, रिटायर्ड असिस्टैंट कमिश्नर ट्रेड एण्ड टैक्स, दिल्ली एवं संरक्षक नेशनल मूवमेंट फार ओल्ड पैंशन डी एन सिंह, प्रधानाचार्य मनोज सक्सैना, शिक्षाविद डा प्रेमी राम मिश्रा, डा रामनिवास यादव, पूर्व प्रधानाचार्य  गुमान सिंह यादव, पूर्व प्रधानाचार्य जी आई सी रामवीर सिंह, श्री संदीप शर्मा, फुटवाल संघ के अध्यक्ष  देवेन्द्र चौधरी, सचिव राजीव कुमार यादव, रामचंद्र कन्या इंटर कालेज हाथरस की प्रधानाचार्य डा नीतू यादव, पातीराम इंटर कालेज हाथरस के प्रधानाचार्य श्री शिव कुमार दुबे, सर्वोदय इंटर कालेज, एटा के प्रधानाचार्य विजय मिश्र, एबीपी न्यूज के प्रतिनिधि वरिष्ठ पत्रकार श्री राकेश भदौरिया, बी एस एन एल के अधिकारी श्री जितेन्द्र शाक्य, प्राथमिक शिक्षक संघ के महामंत्री श्री राजीव वर्मा, श्री मनीष दुबे, उप्र लेखपाल संघ के पूर्व महामंत्री श्री हरिसिंह, मोहम्मद सज्जाद हुसैन, रविन्द्र शर्मा, श्री मनोज कुमार यादव, श्री महीपाल सिंह, श्री अनिल कुमार सिंह,श्री रामकृष्ण शर्मा, डा सुधीर गुप्ता,डा० ओमेंद्र सिंह यादव, प्रधानाचार्य श्री मनोज कुमार तिवारी, डा डी के सिंह, श्री भारतवीर वर्मा, श्री क्षेत्रपाल सिंह, डा राकेश यादव, श्रीमती नंदिनी शर्मा, श्री विश्रांत कुलश्रेष्ठ, श्री अजय मोहन शर्मा, प्रवक्ता प्रीति कश्यप, श्री पदमेंद्र वार्ष्णेय, शैलेन्द्र गुप्त, श्री कौशलेंद्र सिंह, श्री पवन यादव, कबीर यादव,श्री सेवाराम,श्री राहुल मिश्रा एवं कोच श्री मनोज कुमार आदि का अप्रतिम सहयोग एवं समर्थन प्रशंसनीय रहा। मेले में कार्यक्रम संचालन का दायित्व श्री संजय शर्मा ने बखूबी निभाया।

पुस्तक मेले के समापन के अवसर पर सभी का आभार व्यक्त करते मेला संयोजक ए आर एम श्री संजीव यादव

अंत में मेले के संयोजक ए आर एम मैनपुरी संजीव यादव ने सभी अतिथियों, प्रधानाचार्यों व मेले में आये प्रकाशकों व स्थानीय प्रशासन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आप सबके सहयोग-समर्थन के बलबूते पुस्तक मेले की सफलता हमें संबल और ऊर्जा प्रदान करती है। हमारा प्रयास है कि आने वाले समय में हम इससे भी अच्छा कुछ नया करने का प्रयास करें। समाज में बदलाव की दिशा में जो कुछ भी संभव होगा, हम करने का आपको विश्वास दिलाते हैं। मेले के सह संयोजक अनूप दुबे ने कहा कि आप सबका प्रेम, सहयोग और आशीष हमारी सफलता का आधार है। इसके साथ ही हम सभी पुस्तक मेला समिति के सदस्य आपके उज्ज्वल भविष्य और मंगलमय जीवन की कामना करते हैं और अगले वर्ष नवम्बर माह में आयोजित पुस्तक उत्सव में आपके आगमन की आशा-आकांक्षा के साथ आपसे विदा लेते हैं।