तेलंगाना विधान सभा चुनाव : मुफ्त रेवड़ियों की ब्यार
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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दक्षिण के राज्य तेलंगाना में विधान सभा चुनाव नवम्बर के अंत में होने है। इसको लेकर सभी राजनीतिक दलों में मतदातायों को जीतने के मुफ्त रेवड़ियाँ  बांटने की होड़ लगी है। जब से आम आदमी पार्टी ने मुफ्त रेवड़ियाँ बांटने का वायदा कर दिल्ली और पंजाब विधान सभा का चुनाव जीता है तब से अन्य दलों के नेताओं को यह विश्वास सा हो गया है कि वोट केवल जाति और विकास के नाम से नहीं मिलते, वोट मुफ्त रेवड़ियाँ बाँटने से मिलते हैं। कांग्रेस पार्टी ने  यही चुनावी रणनीति मई में कर्नाटक में हुए विधान सभा चुनावों में अपनाई थी। इसने मतदातायों को पांच गारंटियां पूरी करने का वायदा किया। यह अलग बात है की इन मुफ्त की रेवड़ियों को पूरा करने में राज्य की कांग्रेस सरकार के पसीने छूट रहे है, क्योंकि इस पर सरकार का सालाना 60 हज़ार करोड़ रूपये खर्च होना है। यह माना जाता है कि कांग्रेस राज्य में सत्ता में आने में इन मुफ्त रेवड़ियों का बड़ा योगदान है। 

इसी के चलते अब तेलंगाना में सत्तारूढ़ दल भारत राष्ट्र समिति ने अपने घोषणा पत्र में कई गारंटियां की घोषणा है। यहाँ यह पार्टी  दो बार से सत्ता में है तथा तीसरी बार सत्ता में आने के लिए जोर लगा रही है। कांग्रेस ने यहाँ कर्नाटक वाली पांच गारंटियों को बढ़ाकर छः कर दिया है। इसलिए भारत राष्ट्र समिति ने भी अब तक दी जा रही मुफ्त रेवड़ियों में इजाफा कर दिया है। 2018 विधान सभा चुनावों में पार्टी ने सभी किसानो को प्रति एकड कृषि भूमि पर  प्रति वर्ष दस हज़ार  रूपये अनुदान राशि देने की घोषणा की थी। इसे अब बढ़ाकर 2 हज़ार  कर दिया गया है। इसमें भी प्रतिशत एक हज़ार रूपये का इजाफा किया जायेगा। इसी प्रकार महिलायों को प्रति माह दी जाने वाली तीन हज़ार के राशि को बढ़ाकर साढ़े तीन हज़ार कर दिया है। राजस्थान सरकार की तरह  घरेलू गैस के एक सिलेंडर पर 400 रूपये का अनुदान दिया जायेगा। राज्य में बीजेपी अभी तीसरा बड़ा दल और उसने फ़िलहाल उसने यहाँ अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी नहीं किया है। 

यहाँ पिछले विधान सभा चुनावों में भारत राष्ट्र समिति को 119 में से 88 सीटें मिली थी। कांग्रेस को मात्र 19 सीटों पर  संतोष करना पड़ा था। समिति को कुल 46 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को लगभग 28 प्रतिशत वोट मिले थे। पिछले कुछ महीनो से  कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी पूरे विश्वास से यह दावा कर रहे है कि इस बार दक्षिण के इस राज्य में कांग्रेस सत्ता में वापिसी करेगी। शायद उनके विश्वास का कारण  पिछले माह सामने आये वे आंकडे है जो विभिन्न सर्वे ऐजेंसियों ने गहन सर्वेक्षण के बाद जारी किये थे। इन सर्वेक्षणों के अनुसार कांग्रेस को कुल 38 प्रतिशत वोट मिलने की उम्मीद है जबकि  जबकि सत्तारुद्ध भारत राष्ट्र समिति को केवल एक प्रतिशत अधिक यानि  39 प्रतिशत वोट मिलने का अंदाजा है। इन सर्वेक्षणों में बीजेपी कही दूर-दूर तक  नज़र नहीं आ रही। पिछले  चुनावों में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी। 

राज्य के दो बार से मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, जो पार्टी के मुखिया भी है, लगभग डेढ़ महीने पहले ही पार्टी के सभी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर चुके है। जबकि कांग्रेस और बीजेपी पिछले कुछ दिनों तक उम्मीदवा तय करने कसरत ही कर रहे थे भारत राष्ट्र समिति ने पिछले विधान सभा चुनावों में भी अपने उम्मीदवारों की घोषणा, चुनाव घोषित होने के काफी समय पूर्व कर दी थी। चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि समिति को इसका काफी लाभ भी मिला, पार्टी में चंद्रशेखर राव और उनके बेटे और  बेटी एक छत्र राज सा है। 

पार्टी में किसी प्रकार का असंतोष नज़र नहीं आ रहा। उधर कांग्रेस और बीजेपी में गुटबंदी थमने का नाम ही नहीं ले रही। इसी के चलते उम्मीदवारों के चयन में विलम्ब हुआ। इसी बीच एक विवाद भी सामने आया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य की  राजनीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि चंद्रशेखर राव बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन उनके और उनकी पार्टी के कई अन्य नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी। हालाँकि चंद्रशेखर राव ने खुद इस टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, लेकिन  उनके बेटे तथा पार्टी के महासचिव रामाराव ने साफ़ कहा कि किसी भी समय और किसी भी स्तर पर दोनों दलों में ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)