अन्नाद्रमुक और बीजेपी का गठबंधन टूटा
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं 

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जब से बीजेपी की आला कमान ने के. अन्नामलाई को तमिलनाडु में राज्य पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया है तब से प्रति के अपने सहयोगी दल अन्नाद्रमुक  में कुछ खटपट होनी शुरू हो गई थी। अन्नामलाई एक पूर्व आईपीएस अधिकारी है तथा पडोसी राज्य कर्नाटक के कैडर के थे। वहां विभिन्न पदों में रह कर   बहुत अच्छा काम किया था। जिन जिन जिलों में वे रहे वे वहां काफी लोकप्रिय अधिकारी रहे। दो ढाई  वर्ष पूर्व उन्होंने पुलिस अधिकारी की नौकरी छोड़  राजनीति में में कूदने का फैसला किया। वे तमिलनाडु के रहने वाले है। अपने राज्य में वापिस लौटने के बाद वे बीजेपी शामिल हो गए। बीजेपी काफी लम्बे समय से दक्षिण के इस राज्य में अपने पैर ज़माने में लगी है लेकिन अधिक सफलता नहीं मिल पाई। यहाँ जयललिता के काल से अन्नाद्रमुक एनडीए का हिस्सा रही है। 

बीजेपी के केंद्रीय नेताओं को लगा  कि अन्नामलाई के रूप में उन्हें ऐसा नेता मिल गया है जो इस राज्य में पार्टी को आगे बढ़ा सकता है।  उन्होंने जल्दी ही राज्य पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया। अन्नामलाई को लगता था कि जब तक पार्टी अन्नाद्रमुक का दुमछल्ला बनी रहेगी तब तक वह राज्य में अपनी पैठ नहीं जमा पायेगी। हालाँकि पार्टी के केंद्रीय नेता उनके इस आंकलन से पूरी तरह सहमत नहीं थे फिर भी उसे अपनी सोच के अनुसार  आगे बढ़ने दिया गया। कुछ महीने पूर्व उन्होंने राज्य की लम्बी पदयात्रा की थी जिसमे काफी भीड़ जुटी। इससे उनका उत्साह और बढ़ गया। उन्हें जब भी मौका मिलता अन्नाद्रमुक के नेताओं की आलोचना करते। उनको लगता था कि वे अपनी लोकप्रियता के चलते पार्टी को आगे बढ़ा सकते है। 

उधर अन्नाद्रमुक के नेता बार-बार बीजेपी के केंद्रीय नेताओ को जताते थे कि अन्नामलाई के चलते राज्य में दोनों पार्टियों में मनमुटाव बढ़ रहा है। पार्टी के स्थानीय स्तर के नेता लगातार उन्हें अन्नामलाई के बारे में शिकायत भेजते आ रहे है। अन्नाद्रमुक के नेताओं को यह लगने लगा था कि अगर अन्नामलाई  के रथ को रोका नहीं गया तो तो बीजेपी उनकी राजनीतिक जमीन पर कब्ज़ा करती जाएगी। बीच बीच में बीजेपी के केंद्रीय नेता अन्नामलाई को यह कहते रहते थे वे अन्नाद्रमुक की आलोचना को कम करें। अन्नामलाई कुछ दिन चुप रहते और फिर वही अन्नाद्रमुक की आलोचना  पर लौट आते। एक अच्छे वक्ता  होने के साथ साथ अन्नामलाई एक अच्छे संगठनकर्ता है। इसके चलते जिला स्तर पर पार्टी का संगठन मजबूत हो रहा था। पार्टी राज्य के पश्चमि इलाके में   पैठ बढ़ा रही थी। यह एक-एक गौंदर समुदाय का इलाका है। अन्नामलाई इसी समुदाय से आते है। उधर अन्नाद्रमुक के पूर्व मुख्यमंत्री पलानिस्वामी भी इसी समुदाय के है। इस समय वे पार्टी के सबसे बड़े पद,  महासचिव, पर हैं। पार्टी में उनका अच्छा खासा दबदबा है। कुछ राजनीति पर्यवेक्षक यह मानते है कि   गौंदर समुदाय में अन्नामलाई के बढ़ते कद से पलानिस्वामी कुछ परेशान हो रहे थे इसलिए वे नहीं चाहते कि बीजेपी के नेता रूप में अन्नामलाई का कद उनके समुदाय  में और बढ़े.

धीरे-धीरे इन दोनों नेताओं में टकराव बढ़ता चला गया। पलानिस्वामी ऐसा मौका ढूंढ रहे थे जिससे अन्नामलाई और  बीजेपी को आगे बढ़ने से रोका जा सके. कुछ सप्ताह पूर्व अन्नामलाई ने अन्नाद्रमुक के मसीहा कहे जाने वाले और राज्य में अविभाजित द्रमुक पार्टी को पहली बार सत्ता में लाने वाले अन्नादुराई पर सार्जनिक रूप से कुछ ऐसी टिप्पणियाँ की जो पार्टी नेताओ को नहीं भाईं। पलानिस्वामी ने आनन-फानन में पार्टी की कार्यकारणी के बैठक बुलाई, इसमें पार्टी ने बीजेपी के साथ अपने गठबंधन को खत्म करने का फैसला किया। 

उधर दिल्ली में बीजेपी के नेताओ  यह सब होता अच्छा नहीं लगा। यह तय किया गया कि इस गठबंधन के टूटने पर कोई केंद्रीय नेता कोई टिप्पणी नहीं करेगा। राज्य पार्टी के नेताओं को भी यह निदेश दिया कि वे भी इस मामले पर चुप रहे। ऐसा माना जाता है कि बीजेपी के केंद्रीय नेता अन्नाद्रमुक से पूरा नाता खत्म करने के पक्ष में नहीं। अगले छः महीने बाद देश में लोकसभा चुनाव है। पार्टी को केंद्र में फिर सत्ता आने के लिए एन डी के घटक दलों की जरूरत हो होगी। ऐसी स्थिति में अन्नाद्रमुक पर निर्भर किया जा सकता है।  2014 लोकसभ चुनावों में बीजेपी को पहली बार इस पार्टी के सहयोग से एक सीट मिली थी। पिछले विधान सभा चुनावों में बीजेपी के चार विधायक जीतने में सफल रहे थे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)