स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)
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आगामी नवंबर में होने जा रहे मध्य प्रदेश सहित विधानसभा आम चुनाव बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। खासकर भाजपा के लिए तो ये चुनाव जीवन मरण का प्रश्न है।यूं तो राजस्थान ,और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारों को भाजपा निर्णायक हो सकने वाली चुनौती देती अभी तक नजर नहीं आ रही ,इसीलिए इस कारण भी मध्य प्रदेश की कुल 230विधानसभा का उक्त चुनाव भाजपा के प्रादेशिक नेतृत्व सहित आला कमान के लिए भी पगड़ी, और मूंछों का सवाल बन गया है।
जान लें कि बीच के करीब 16महीने की कांग्रेस सरकार (मुख्यमंत्री कमलनाथ) को छोड़कर इस सूबे में भाजपा बीस साल से प्रदेश की सरताज रही है, और मुख्यमंत्री के पद पर वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार चार बार मुख्यमंत्री रहे हैं। वैसे, 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को कुल 107, और कांग्रेस को कुल 114 सीटें मिली थीं, लेकिन बहुमत के लिए आवश्यक निर्दलीय, और अन्य पार्टियों के विधायको का समर्थन जुटाकर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व प्रधान मंत्री स्व. इन्दिरा गांधी के तीसरे पुत्र कहे जाने वाले कांग्रेस के बुजुर्गवार नेता कमलनाथ सरकार बनाने में सफल हो गए थे, लेकिन तब के कांग्रेस के स्टॉलवर्ट नेता और भाजपा की वर्तमान केन्द्र सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने निजी सियासी महत्वाकांक्षाओ के चलते अपने समर्थक 22 विधायकों सहित कांग्रेस से बगावत करके कमलनाथ की सरकार गिरवा दी थी, जिसके चलते वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लगातार चौथी बार भाजपा सरकार की कमान सम्हाली थी।
कहने को, तो इन चुनावों में भी उक्त दोनों ही प्रमुख दलों में नेक टू नेक फाइट है, लेकिन कुछ ऐसे कारण इन चुनावों को मध्य प्रदेश के इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण और रोचक बनाने जा रहे हैं। जान लें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इस राज्य की कुल 29सीटों में से भाजपा को 28सीटें मिली थीं और खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया तब कांग्रेस के टिकट पर ही करीब सवा लाख वोटों से गुना सीट से खेत रहे थे, लिहाज़ा भाजपा के लिए लोकसभा के अगले चुनावों के मद्दे नजर हिंदी बेल्ट के इस महत्वपूर्ण सूबे को अपनी जागीर बनाए रखना अनिवार्य है। मध्य प्रदेश में तो भाजपा और कांग्रेस में ही टिकिट वितरण से उपजी नाराजगी अब व्यापक होती जा रही है। उक्त नाराजगी खासकर कांग्रेस में ज्यादा देखी जा रही है। टिकिट वितरण से नाराज इस पार्टी के कुछ बड़े नेताओं ने पिछले दिनों पार्टी के प्रादेशिक अध्यक्ष और पूर्व मुख्य मंत्री कमलनाथ के भोपाल स्थित बंगले के सामने जोरदार प्रदर्शन किया। उनमें से कुछ ने तो सिर मुंडवा लिए और कपड़े तक फाड़ लिए।
भोपाल सूबे की राजधानी है यहां के उत्तरी क्षेत्र से कांग्रेस नेता नासिर इस्लाम एक तरह से बगावती मूड में हैं, क्योंकि वे पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी आतिक अकिल के खिलाफ मैदान में चुनाव में उतरने की घोषणा कर चुके हैं। वे निर्दलीय रूप से चुनाव लडेंगे। सत्ता की चाहत में दिनरात कवायद कर रहे कांग्रेस के बड़े नेताओं ने कदाचित सोचा भी नहीं होगा कि पप्रत्याशियों की घोषणाओं के बाद पार्टी नेतृत्व के प्रति पार्टी के शीर्ष नेता ही विरोध प्रदर्शन के तहत पुतला दहन से लेकर आत्मदाह की कोशिश तक करेंगे।
एक घटना में तो कमलनाथ भी इन उग्र कार्यकर्ताओ के सामने अपना गुस्सा या आपा खो बैठे और कह दिया कि जाओ दिग्विजय सिंह (पूर्व कांग्रेस मुख्य मंत्री) और उनके बेटे वर्तमान विधायक जयवर्धन सिंह के कपड़े फाड़ो। जान लें कि कभी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह में गहरी पटती थी, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा ओ के तहत दोनो नेताओं ने अपने अपने रास्ते अलग कर लिए, जिसके कारण पार्टी संगठन काफी कमजोर हो गया था। महाराष्ट्र की सीमा से लगे बुरहानपुर से कांग्रेस ने वर्तमान निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा को प्रत्याशी बनाया तो कार्यकर्ता अपने आप को विरोध में सड़कों पर उतरने से रोक नहीं पाए।
बताया जाता है कि इन विरोधी कार्यकर्ताओ को प्रमुख रूप से पूर्व विधायक हमीद काज़ी और इस जिले के कांग्रेस अध्यक्ष अजयसिंह की शह मिली थी। पिछले चुनाव में काज़ी को ही टिकिट मिला था, लेकिन उनका विरोध होते देख रवींद्र सिंह को टिकट दिया गया था, लेकिन तब शेरा बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप चुनाव जीत गए थे। इस बार हर्षवर्धन सिंह के निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरने के कारण बुरहनापुर सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय होने से दिलचस्प हो गया है। हर्ष वर्धन सिंह चौहान भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्वर्गीय नंदकुमार सिंह के बेटे हैं।
सिंगरोली सीट से आम आदमी पार्टी ऊर्फ आप पार्टी की रानी अग्रवाल ने भी चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है। रानी अग्रवाल सिंगरोली की महापौर तो है ही साथ ही आप पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। इस सीट से भाजपा ने विधायक राम लल्लू वैश्य का टिकिट काटकर रामनिवास शाह को प्रत्याशी बनाया है, जबकि कांग्रेस ने रेणु शाह को टिकट दिया है। सीधी शहर की सीट पर भी इसी तरह का मंजर बनने के संकेत मिल रहे हैं, क्योंकि वर्तमान भाजपा विधायक केदार शुक्ला अपना टिकिट कटने से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। यहां से भाजपा ने रीति पाठक को टिकिट दिया है,जबकि कांग्रेस ने ज्ञान सिंह को चुनाव में उतारा है। सुमावली की सीट पर विधायक कांग्रेस के टिकट पर वर्तमान विधायक अजब सिंह कुशवाह जीते थे, लेकिन इस बार टिकिट कटने से वे बसपा में चले गए हैं।
उन्होंने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि वे चुनाव लडेंगे ही। उनके समर्थक भी उनके समर्थन में उग्र प्रदर्शन पर उतर आए हैं। इसलिए सूत्रों का कहना है कि उन्हें कांग्रेस फिर से टिकिट दे सकती है लेकिन इन्हीं सूत्रों का यह भी कहना है कि यदि ऐसा ही हुआ तो कांग्रेस का सिरदर्द कम नहीं होने वाला, क्योंकि कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी बागी होकर चुनाव लड़ सकते है। अटेर विधानसभा सीट से भाजपा के वर्तमान मंत्री और प्रत्याशी अरविंद सिंह भदौरिया और कांग्रेस के हेमंत कटारे के लिए मुन्ना सिंह भदौरिया ने चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है। वे दो बार इस सीट से विधायक रह चुके है,और इस बार समाजवादी पार्टी से चुनाव में उतरने के मूड में हैं।
पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत दिलवाने में आदिवासी सीटों ने अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन इस बार माहौल अलग दिखाई दे रहा।इन आदिवासी बहुल सीटों पर जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन उर्फ जयस ने त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बना दी है। मैहर, बंधा ,मुरैना, चाचौड़ा, लहार,पथरिया,और नागोद ऐसी सीटें हैं जहां त्रिकोणीय संघर्ष हो सकता है। उज्जैन की बड़नगर सीट से कांग्रेस विधायक मुरली मोरवाल ने भी निर्दलीय रूप से भाग्य आजमाने के संकेत दे दिए हैं।
नामांकन वापसी में फिलहाल काफी समय बचा होने के कारण माना जा रहा है कि भाजपा ,और कांग्रेस के कुछ नाराज़ प्रत्याशी गम खा लें।वैसे भी दोनों ही पार्टियों ने विधान परिषद के गठन का लॉली पाप भी दिया है। फिर भी खासकर भाजपा के लिए 2024के आम चुनावों को देखते हुए मध्य प्रदेश की ये कुल 230सीटों के चुनाव आर _पार की लड़ाई बन गए हैं। कांग्रेस के पास खोने को तो कुछ है नहीं । बस पाने को ही है। भाजपा को इस चुनाव में इतना महत्व देने का संकेत इस तथ्य से ही मिल जाता है, कि उसने तीन केंद्रीय मंत्रियों ,चार सांसदों ही नहीं कैलाश विजयवर्गीय को भी इंदौर की हाई प्रोफाइल एक नंबर सीट से मैदान में उतारा है।
पीएम नरेंद्र मोदी पिछले छह माह में मध्य प्रदेश की कुल आठ बार यात्राएं कर चुके हैं ,और इस दौरान उन्होंने इस सूबे के लिए करोड़ों रु की घोषणाएं की है। लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)