किसानों की खुशहाली के बिना आजादी अधूरी है

खुशहाली के दो आयाम, खेत को पानी - फसल को दाम

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जयपुर। 2018 के बाद मुख्यमंत्री और उसकी सरकार किसानों को हुए घाटे के लिए उत्तरदायी-रामपाल जाट- राष्ट्रीय अध्यक्ष, किसान महापंचायत कृषि एवं किसान कल्याण के संबंध में कानून बनाने  के लिए भारतीय संविधान ने राज्यों को अधिकार दिए हुए हैं । इस दृष्टी से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है।  इसी के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2000 से कृषि सुधारो के लिए विचार मंथन के उपरांत “आदर्श कृषि उपज एवं पशुपालन” (सुविधा तथा  सरलीकरण)अधिनियम 2017 का प्रारूप तैयार कर क्रियान्वयन हेतु वर्ष 2018 में राज्यों को प्रेषित कर दिया गया। उसके आधार पर राजस्थान आदर्श कृषि उपज एवं पशुपालन” (सुविधा तथा  सरलीकरण) अधिनियम 2018 का प्रारूप तैयार किया गया, जो अभी सरकार की अलमारी में बंद है।

 इसके प्रावधान आज्ञापक होने के कारण इस अधिनियम को पारित करने से किसानों को अपनी उपजे घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में  बेचनी नहीं पड़ेगी। अभी खरीफ की फसलों में घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से मूंग 1700 बाजरा 500 रुपए प्रति क्विंटल कम दामो में बेचने को किसान विवश है। यही स्थिति खरीफ की कपास जैसी अन्य उपजो की भी है। इसी वर्ष सरसों एवं चना की उपजो में भी  1000 से लेकर 1300 ₹ प्रति क्विंटल का घाटा उठाना पड़ा था। राज्य सरकार द्वारा भावांतर भुगतान का विकल्प का चयन नहीं  करने के कारण किसानों को सरसों की घाटापूर्ति के लिए केंद्र द्वारा दी जाने वाली अंतर राशि का भुगतान भी प्राप्त नहीं हो सका था।

पिछले 13 वर्षों में किसानों को अपना बाजरा एक  क्विंटल पर ₹1000 से अधिक का घाटा उठाकर बेचना पड़ा। राजस्थान आदर्श कृषि उपज एवं पशुपालन (सुविधा तथा सरलीकरण) अधिनियम 2018 का राज्य द्वारा प्रारूप तैयार कर लिया गया था, किन्तु विधानसभा में पारित नही होने के कारण किसानो को न्यूनतमसमर्थन मूल्य की प्राप्ति सुनिश्चित नही हो सकी । परिणामत: किसानों को अपने उपजो को कम दामो पर बेचने को बाध्य होना पड़ा । इससे हुए घाटे के लिए वर्ष 2019 से मुख्यमंत्री तथा उनके मंत्रिमंडल के सदस्य दोषी है। 

इस  विफलता का नैतिक उत्तरदायित्व लेते हुए इस घाटे की भरपाई अंतर राशि देकर करनी चाहिए अन्यथा किसान हितेषी होने का राग अलाप बंद करना चाहिए। इस प्रस्तावित कानून के विकल्प के रूप में कृषि उपज मंडी अधिनियम 1961 की धारा 9 (2) (xII) में may को shall में परिवर्तित करने तथा इसके क्रियान्वयन की दिशा में राजस्थान कृषि उपज मंडी नियम 1963 के नियम 63 (3) में “नीलामी बोली न्यूनतम समर्थन मूल्य से आरंभ होगी” संशोधन द्वारा जोड़नी चाहिये। इसके लिए किसानो की और से निरंतर 4 वर्षों से निरंतर अनुनय विनय किया जा रहा है। इसके संबंध में मुख्यमंत्री स्तर तक की वार्ताएं भी आयोजित हो चुकी है इसी क्रम में संबंधित प्रमुख शासन सचिव एवं मुख्य सचिव स्तर पर भी चर्चा हो चुकी है। 

इतना ही नहीं तो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के समय कांग्रेस के सुप्रीमो श्री राहुल गांधी के बुलावे पर उनके साथ हुई चर्चा में उनके द्वारा भी सकारात्मक संकेत दिए गए थे। तदोहम राज्य सरकार अभी तक भी इस प्रकार का संशोधन लाकर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने की  दिशा में कोई कार्यवाही नहीं कर सकी है। राज्य के  मुख्यमंत्री एवं उनका मंत्रिमंडल न्यूनतम समर्थन मूल्य से किसानों को वंचित करने के लिए अपराधिक षड्यंत्र के दोषी है। आचार संहिता के पूर्व अध्यादेश के द्वारा अभी भी किसानों को घाटे से बचाने का विकल्प उपलब्ध है और यह कार्य मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर एक दिन में किया जा सकता है। किसानो की और से यह चेतावनी मुख्यमंत्री एवं उसके मंत्रिमंडल व सहयोगियों को आचार संहिता के पूर्व इस प्रकार का अध्यादेश लाकर सार्थक कार्यवाही करने के लिए चेताया जा चुका है। आचार सहिता के पूर्व इस प्रकार का अध्यादेश नही लाये जाने पर राज्य के किसान उनको सबक सिखाने के लिए सत्ता से बाहर करने का उद्घोष करेंगे।

मुख्यमंत्री एवं उनकी सरकार द्वारा राज्य के किसानों के हितों की रक्षा के लिए इस प्रकार का अध्यादेश पारित कर दिया जाता हैं तो राज्य सरकार के कारण अब तक हुए अरबो रूपये के घाटे जैसे 100 अपराधों को भी भूल कर उनकी सरकार की पुनरावृत्ति के लिए अपना मत एवं समर्थन देते हुए पूरे प्राणपण के साथ चुनाव में उनके साथ खड़े रहेंगे। दोनों में से मुख्यमंत्री एवं उनकी सरकार जिस भी विकल्प को चुनेगी उसी अनुसार किसान भी अपना विकल्प का चयन करेंगे । यानि सरकार जिस मात्रा में किसानों का सहयोग करेगी, किसान भी उसी मात्रा में उनका  सहयोग करेंगे।