वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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राजनीति में न तो स्थाई मित्र होते हैं और न ही स्थाई दुश्मन। यही कहावत अब दक्षिण के कर्नाटक राज्य में पिछले दिनों बीजेपी और जनता दल (स) बने चुनावी गठबंधन के बारे कही जा सकती है। पिछले डेढ़ दशक से दोनों दल एक दूसरे के घोर विरोधी रहे है। अब वे लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पूर्व एक ही मंच पर आ गए हैं। कभी कांग्रेस नीत संयुक्त लोकतान्त्रिक मोर्चा का हिस्सा रहा जनता दल (स) अब बीजेपी नीत राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक मोर्चे में शामिल हो गया है।
दोनों दलों का यह गठबंधन मई के महीने में राज्य में हुए विधान सभा चुनावों में दोनों दलों को हुए भारी नुकसान के चलते बना है। 2019 से राज्य में सत्ता में रही बीजेपी की न केवल हार हुई बल्कि 225 सदस्यों वाली विधानसभा में इसकी सीटें घट कर मात्र 66 रही गई। इसी प्रकार जनता दल (स) को भी भारी नुकसान हुआ। इसकी सदस्य संख्या 37 से घटकर केवल 19 ही रह गई। पार्टी के अध्यक्ष तथा देश केपूर्व प्रधान मंत्री एचडी देवेगौडा शुरू से बीजेपी के विरोधी रहे है। लेकिन विधान चुनावों के बाद खुद उन्होंने ही बीजेपी के साथ हाथ मिलाने के निर्णय किया। उनका लगा कि अगर वे बीजेपी के साथ नहीं गए तो राज्य में पार्टी का राजनीतिक अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।
पिछले हफ्ते, देवेगौडा और उनके पुत्र तथा राज्य के दो बार मुख्यमंत्री रहे एचडी कुमारस्वामी दिल्ली में जाकर बीजेपी के केंद्रीय नेताओं से मिले तथा दोनों दलों ने राज्य में लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ने का निर्णय किया। हालाँकि कुमारस्वामी ने दावा किया है कि यह गठबंधन बिना किसी शर्तों के हुआ है लेकिन ऐसा माना जाता है कि बीजेपी उनकी पार्टी को 5 से 6 सीटें देने को तैयार है। पिछले लोकसभा चुनावों में, जब यहाँ बीजेपी सत्ता में थी, बीजेपी को 28 में से 25 सीटें मिली थी. कांग्रेस और जनता दल (स) को एक एक सीट मिली जब कि एक सीट पर निर्दलीय जीतने में सफल रहा था। क्योंकि इस बार संभवत विरोधी दलों के गठबंधन इंडिया और एनडीए की बीच सीधा मुकाबला हो, इसलिए बीजेपी यहाँ पिछले चुनावों जैसी जीत फिर दोहराने की कोशिश कर रही है।
राज्य में लिंगायत और वोकालिंगा दो ऐसे सामाजिक समुदाय है जिनका राज्य की राजनीति में बड़ा दबदवा है। पिछले लगभग तीन दशकों से लिंगायत समुदाय बीजेपी का साथ देता आ रहा है। बीजेपी के चार बार मुख्यमंत्री रहे येद्दियुरप्पा इस समुदाय के एक छत्र नेता माने जाते है। इसी प्रकार एच डी देवेगौडा, न केवल खुद इस समुदाय के हैं बल्कि इसके सर्वमान्य नेता भी है। एक समय रियासत रहे मैसूरू इलाके में कुल 89 विधान सभा सीटें आती है। यह एक वोकालिंगा बहुर इलाका है। जनता दल (स) अपनी अधिकाश सीटें इसी इलाके से जीतता रहा है। चूँकि जनता दल अपने नाम के आगे सेक्युलर लगता है इसलिए इस पार्टी को कुछ मुस्लिम वोट भी मिलते रहे है। कांग्रेस पार्टी के बाद केवल यही ऐसा दल है जहाँ कई बड़े मुस्लिम नेता है।
बीजेपी और जनता दल (स) नेताओं को लगता है दोनों समुदायों, जो आम तौर पर एक दूसरे के विरोधी रहे हैं, के एक साथ आ जाने से कांग्रेस पार्टी राज्य में लोकसभा को कोई भी सीट नहीं जीत पायेगी। लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षक इससे सहमत नहीं है। उनका कहना कि कांग्रेस और जनता दल (स) ने पिछला लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था लेकिन इसके बावजूद दोनों को कोई लाभ नहीं हुआ। दोनों दल अपने प्रभाव वाले वोट अपने चुनावी साथी को हस्तांतरित नहीं कर पाए। इस बार भी यह कहा जा रहा है की जनता दल (स) अपने प्रभाव वालें इलाकों के वोट बीजेपी के उम्मीदवारों को नहीं दिलवा पायेगा। बीजेपी के भी कई बड़े नेता इस चुनावी समझौते से सहमत नहीं है। उनका मानना है कि बीजेपी को इससे विशेष लाभ नहीं होगा। उनका विश्लेषण यह है कि अगर राज्य में कांग्रेस, बीजेपी और जनता दल (स) का त्रिकोणीय मुकाबला होता है तो बीजेपी को अधिक लाभ मिलेगा।
जनता दल (स) में मुस्लिम नेता पार्टी को बीजेपी से जोड़ने से सहमत नहीं है। कुछ नेताओं ने तो पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी है। आने वाले दिनों पार्टी के और भी मुस्लिम नेता त्यागपत्र दे सकते है। कर्नाटक के पड़ोसी राज्य केरल में जनता दल (स) वहां के सत्तारुद्ध वाम मोर्चे का हिस्सा है। वहां पार्टी के ईकाई ने अपने आप को इस निर्णय से अलग लिया है। उनका कहना कि केरल में अब यह पार्टी एक स्वतन्त्र ईकाई है और इसका अब केंद्रीय जनता दल (स) से कुछ लेना देना नहीं हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)