कैलाश विजयवर्गीय के भरोसे मध्य प्रदेश में भाजपा
लेखक : नवीन जैन 

स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी) 

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पत्रकारिता के मान्य सिद्धांतो के अनुसार दावे से कभी नहीं लिखा जा सकता कि फलां सीट से फलां उम्मीदवार जीत रहा है, लेकिन जब 1984में स्व.अटल बिहारी वाजपाई ग्वालियर से पौने दो लाख से ज़्यादा वोटों से स्व. माधव राव सिंधिया के खिलाफ लोकसभा का आम चुनाव हार गए थे, तब इस लेखक समेत देश भर के कई  संवाददाता ने लिख दिया था कि अब सिर्फ ये देखना होगा कि अटल जी की पराजय कितने वोटों से होती है। हेडिंग डाले गए थे-अटल जी की पराजय अटल?

मध्य प्रदेश विधान सभा 2023 के चुनावों के तहत इस राज्य और इंदौर की सबसे हॉट सीट एक नंबर पर भी यही इतिहास दोहराने जा रहा लगता हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार भाजपा के प्रत्याशी हार नहीं बल्कि जीत रहें हैं और फील्ड में जीरो ग्राउंड से रिपोर्ट करने वाले अधिकांश संवाददाताओं का कहना है कि यहां से चुनाव लड़ रहे भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जीत ही नहीं रहें हैं, बल्कि उन्हें एक तरह से क्लीन स्वीप मिलने जा रही है।इंदौर वैसे ही भारतीय राजनीति में हाई प्रोफाइल्ड सीट रही है ।इसलिए यहां का मतदाता अतिरिक्त रूप से जागरूक माना जाता है। आप किसी राहगीर से भी पूछ लें तो वह भाजपा विरोधी होने के बावजूद यही कहता मिल जाएगा कि कैलाश जी की जीत एक हजार फीसद पक्की है।

एक प्रतिष्ठित और बुजुर्गवार पत्रकार संपादक का तो यहां तक कहना है कि पूरी भाजपा के लिए इंदौर की नंबर एक की विधानसभा का चुनाव पगड़ी की सलामती का चुनाव बन गया है। इन वरिष्ठ पत्रकार महोदय का कहना है कि भाजपा दरअसल कैलाश विजयवर्गीय को मध्य प्रदेश के अगले मुख्य मंत्री के रूप में पेश करना चाहती है ,क्योंकि भाजपा आलाकमान का मानना है कि विजयवर्गीय ही एकमात्र ऐसे जननेता हैं जो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को प्रदेश की कुल 29 में से 28 सीटों पर फिर चुनाव जितवाने का माद्दा रखते हैं।ज्ञात हो कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस को इस सूबे से लोकसभा की मात्र एक सीट मिली थी और वो थी पूर्व मुख्य मंत्री कमलनाथ के बेटे नुकुल नाथ की परम्परा गत छिंदवाड़ा सीट।उक्त चुनावों में और तो और कांग्रेस के टिकट पर लड़े ज्योतिरादित्य सिंधिया तक गुना की परंपरा गत सीट से करीब सवा लाख वोटों से चुनाव हार गए थे।

हिंदी बेल्ट में मध्य प्रदेश को एक तरह से अपनी जागीर बनाए रखना भाजपा के लिए अनिवार्य है, क्योंकि मध्य प्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की वर्तमान सरकारों को जीतने में कोई खास दिक्कत नहीं जाने वाली। माना जाता है कि भाजपा में गृहमंत्री अमित शाह के बाद कैलाश विजयवर्गीय ही एक सफल चुनावी रणनीतिकार है। वे इसका सबूत हरियाणा विधानसभा, पश्चिम बंगाल लोकसभा (कुल 42में से 18 सीट और विधानसभा चुनावों में कुल 294 सीटों में से 73 सीटें) जीत दिलवाकर दे चुके हैं। 

कैलाश विजयवर्गीय ने अभी तक इंदौर की ही अलग अलग 6 विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ें और हर बार जीत दर्ज की। कैलाश जी के खिलाफ शुरूआत में कांग्रेस के सीटिंग एमएलए संजय शुक्ला को दमदार उम्मीदवार माना जाकर उक्त फाइट को नेक टू नेक माना जा रहा था ,लेकिन संजय शुक्ला मैदान में तो पूरी तैयारी से डटे हुए, लेकिन सिर्फ भावनात्मक और धार्मिक मुद्धो के अलावा उनके पास मत दाताओं को आकर्षित करने का कोई ठोस मुद्दा नहीं दिखाई देता। वे गए साल का महापौर का चुनाव भी अपनी इसी सीट से करीब बीस हजार वोटों से हार चुके थे।कैलाश धन और बाहुबल के मामले में भी उनसे बीसे नही बैठते।  

कैलाश की उम्र भी अभी 68 साल है। माना जा रहा है कि भाजपा खुद वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ऊब चुकी है। पहले भाजपा का मूड ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्य मंत्री के रूप प्रोजेक्ट करने का था, लेकिन उनके अपने प्रभाव क्षेत्र ग्वालियर  चंबल संभाग में उनकी पकड़ लगातार कमज़ोर होती जा रही है। नरेंद्र सिंह तोमर भी केंद्रीय मंत्री हैं और उन्हें भी इन विधानसभा चुनाव में उतारने की घोषणा हो चुकी थी लेकिन बताया जाता है कि लगभग तभी से तोमर अंडरग्राउंड हो गए हैं।ग्वालियर चंबल संभाग में नरेन्द्र सिंह तोमर का जलवा भी कोई खास नहीं रहा है।

इसके उलट मालवा निमाड़ की कुल 66 सीटें ही आगामी सरकार का भविष्य तय करती आ रही हैं। ज़ाहिर है कि कैलाश जी के बहाने भाजपा इन सभी सीटों पर एक बार फिर अपना दबदबा कायम रख सकती है,क्योंकि उक्त तमाम सीटें इंदौर के आसपास ही हैं। विजयवर्गीय ने जीत के लिए अपने पुराने नुस्खे भी आजमाने शुरू कर दिए हैं। इनमें भजन, देश प्रेम के गीत गायन, पण्डित प्रदीप मिश्रा जैसे प्रसिद्ध कथा वाचकों से मंच पर जाकर अपार जन समूह के सामने आशीर्वाद लेना आदि प्रमुख हैं।कहा तो यहां तक जा रहा है कि चुनाव की तारीखें आने के पहले तक इंदौर के एक प्रसिद्ध शाकाहारी भोजनालय में कैलाश जी और अन्य भाजपा प्रत्याशियों की जीत के लिए असंख्य लोगों को कई दिनों तक निःशुल्क भोजन करवाया गया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)