लघु कथा : शॉल

लेखक : नवीन जैन

स्वतंत्र पत्रकार इंदौर (एमपी)

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सर्दियां ऐसी थीं, कि जैसे आरियां बदन पर चल रही हों। बस के ड्राइवर को ऐसी सितमगर रात में बस को उड़ाने में ही मज़ा आता है। शायद ,ऐसा करने से उसके हाथ पैरों में आने वाली गर्माहट ही उसके लिए आखिरी उपाय होता हो, लेकिन बस में नीम नींद में बैठे अधिकांश मुसाफ़िर उस युवक को ही बार-बार आश्चर्य की निगाहों से देख रहे थे। क्या ये लड़का कहीं से भागकर आया है या इसे मालूम नहीं है कि  आगरा के रास्ते में करीब दो-ढाई महीने तक दिन में उजाला कम, और अंधेरा  चीखता पुकारता रहता है। 

यात्रियों ने यह भी सोचा हो , कि हो सकता है इस लड़के के पास एक भी गर्म कपड़ा न हो ,लेकिन वे भी  बेचारे क्या करते, ठंड से सिकुड़े जो जा रहे थे। बड़ी कातिल रात थी, मगर वो लड़का अपनी मौज में ऊंघ रहा था। आगरा अभी मीलों दूर था। बीच में ग्वालियर, भिंड, मुरैना आदि छोटे बड़े मकाम आने थे। उक्त इलाका चंबल का बीहड़ कहलाता है, जिसके कथानक पर कभी वैसी ही फिल्में बनती रहीं, जैसी तवायफों पर सिनेमा बनाने की आज भी अटूट परंपरा है, लेकिन आगरा आते ही माहौल बड़ा रोमांटिक, रसीला और नशीला होने लगता है। एक तो ताजम हल, फिर आगरा का भूरे कोले का पेठा, साथ में जलेबी। 

बस में रात जैसे ठहर गई थी। वक्त की सुई मानों एक जगह आकर अटक गई थी। इन सबसे वह लड़का बेखबर था।इतने में एक महिला पीछे की सीट से उठी। वे प्रौढ़ रही होगी। उनके हाथ में कुछ था। बस के अंधेरे में कैसे दिखता कि वो क्या था? और, फिर लगभग सभी मुसाफ़िर ऊंघ रहे थे या सो गए थे। वो महिला धीरे से उक्त युवक के पीछे आई और उस लड़के को कुछ ओढ़ाकर अपनी सीट पर चली गई। जैसे ही उक्त युवक ने गरमाहट महसूस करनी शुरू की, उसे पता ही नहीं चला, कि नींद ने उसे कब जकड़ लिया है। 

सारी दुनिया से वो बेखबर था और दुनिया उससे। लंबी अवधि के बाद जैसे ही बस में हलचल हुई, उस लड़के की नींद भी होशियार होने लगी। उसने ज़ोर से अंगड़ाई ली। वो तरो ताज़ा हो चुका था। बस का ड्राइवर तय जगह पर गाड़ी लगा रहा था। उधर, किसी ने जोर की आवाज़ लगाई आगरा आ गया है। सभी यात्री तो उतर गए। उस लड़के ने ओढ़े हुए अनजान गर्म कपड़े को टटोला। 

उसे याद पड़ा कि बीच रास्ते में एक महिला की आवाज़ आई थी बेटा ! इसे ओढ़ लो। कितनी सर्दी पड़ रही है। उस लड़के ने उक्त महिला को ढूंढने के लिए बस की अन्तिम सीट तक नजरें दौड़ाई, लेकिन किसी यात्री ने बताया कि तुम्हें ये शॉल ओढ़ाने वाली महिला ,बीच रास्ते में ही किसी स्टेशन पर उतरकर चली गई है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)