गीत : सुनहरी याद के ऩग़मे
लेखिका : डॉ सुधा जगदीश गुप्त

कटनी (मध्य प्रदेश)

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लिखे जो अफसाने तुमने सिरहाने रख के सोते हैं 

लिखा है प्यार, सीने से लगा, ना जगते, सोते हैं 

समंदर आंख में उमड़े गजब तूफा़नी रातें हैं 

सुनहरी याद के ऩग़मे मोतियों से पिरोते हैं 

दिवस तो बीत जाता है खुशी सब देखते चेहरे 

जानती रात है आँसू कुशन कितने भिगोते हैं 

उनकी ऱह़वरी में बढ़ गए थे जो कदम मेरे 

ठहरने अब भी ना देते वो निग़हवार होते हैं 

बिछी है सेज़ फूलों की उतरता चांद धीरे है

बहारें ही बहारें हैं बहकते प्यार सोते हैं

तराने प्यार के बुलबुल बैठकर जब-जब गाती है 

शुक सारिका कुछ प्यार के नव बीज होते हैं

बड़ी प्यारी सुबह है ये प्यार के बीज फूटे हैं 

झरते नेह के महुए ज़ानिसार होते हैं

बरसती चाँदनी जब जब

अजब सी हलचल होती है

बिनाअनुबंध के संबंध नवल रंग में भिगोते हैं

(लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)