ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दों को उठाना भारत के लिए जरूरी
लेखक : राम भरोस मीणा 

पर्यावरणविद् व स्वतन्त्र लेखक हैं

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जी 20 ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों को उठाना भारत के लिए बढ़ा अवसर है, तार्किक आधार के साथ तर्कसंगत मुद्दा रखा जाएं जिससे सभी मेजबान देशों को इस पर काम करने के साथ भविष्य में प्राकृतिक संकटों से बचा जा सकता है।

भारत वैश्विक स्तर पर अपनी मजबूती के साथ हाल ही विश्व की सर्वाधिक आबादी वाला देश बन गया है वहीं विश्वशक्ति के रूप में उभरते हुए अन्य साथी देशों के साथ अपनी मजबूत पकड़ बनाते हुए अपनी छाप छोड़ रहा है। आत्म निर्भरता के साथ दुसरे देशों की मेज़बानी करने लगा, लेकिन जीवाश्म ईंधन के बढ़ती खप्त, वनस्पतियों के विनाश, अरावली व हिमालय पर्वतमाला के साथ हों रहीं छेड़छाड़, रुग्ण औधोगिक इकाईयों द्वारा कार्बन उत्सर्जन देश में ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु संकट पैदा कर दिया है यह भारत में ही नहीं विश्व भर के सभी देशों के सामने समस्या बनीं हुईं हैं, जी 20 में सामिल सभी देशों के साथ भी ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं है। समस्या किसी व्यक्ति, राज्य, देश या महाद्वीप विशेष की नहीं यह आम समस्या सभी के लिए एक संकटों का जाल बिछा रही है जिसमें वनस्पतियों का स्वरूप व स्वभाव बदलना, पक्षियों की प्रजातियों का लुप्त होते जाना, जलीय जीवों, वन्य जीवों के साथ स्वयं मानव भी इस में फंसकर अपने आपकों सहमा सा देखने लगा है।

आज भारत के पास जी 20 का बढ़ा अवसर मिला है जहां जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिंग जैसे प्रभावों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रखते हुए मुद्दे को लेकर सभी देशों के सामने दावा पेश कर मजबूर कर सकता है। उपायों पर विचार के साथ अमल करने को मजबुर कर सकता है पर्यावरण संरक्षण एवं सुरक्षा के लिए, आज भारत में दिल्ली जैसे शहर जो देश की राजधानी के साथ राज्य भी है मैं बहुत से प्रयास पिछले तीन चार दशकों से चलें आ रहें हैं लेकिन हाल ही शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान द्वारा वायु की गुणवत्ता को लेकर किय गए सर्वे के साथ दिल्ली भारत का ही नहीं विश्व का सबसे बड़ा दूषित शहर पाया गया है। 

शिकांगो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान के द्वारा जारी रिपोर्ट में वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के मुताबिक भारत के 1.3 अरब लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां डब्ल्यूएचओ की निर्धारित कणीय प्रदुषण पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सीमा से काफी ज्यादा है। भारत में हवा में मौजूद सुक्ष्म कणों से होने वाला प्रदुषण औसत भारतीय के जीवन को 5- 6 साल कम कर रहा है। अध्धयन में यह भी पाया गया कि 65 प्रतिशत आबादी उन क्षेत्रों में रहतीं हैं जहां प्रदुषण का राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक है जों ख़तरे के संकेत देते हैं। अध्ययन में बताया कि विश्व के वायु प्रदुषण का तीन चौथाई प्रभाव 6 देशों भारत, चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नाइजीरिया, और इंडोनेशिया पर सर्वाधिक पड़ा है तथा प्रदुषण के बढ़ते प्रभाव से मानव शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ने लगें हैं विभिन्न प्रकार की बिमारियों ने घेरा है जो आगामी समय में और अधिक बढ़ने की सम्भावनाओ से नकारा नहीं जा सकता जो बड़ी चिंता का विषय है।

ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते हुए अंटार्कटिका के कुछ हिस्सों में बढ़ा दुष्प्रभाव पड़ने लगा है वहां के  प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ाने लगा जिससे पिघलती बर्फ से वहां पक्षियों की प्रजातियों के प्रजनन तथा पालन पोषण पर प्रभाव पड़ने लगा, समुद्री बर्फ के पिघलने के दुरगामी प्रभाव होंगे जो हमें भुगतनें पड़ सकतें जो चिंता के साथ चिंतनीय विषय है क्योंकि प्रकृति लेखक रैशेल कार्सन अपनी पुस्तक 'साइलेंट स्प्रिंग' में लिखते हैं की - वसंत ऋतु में हवा में पक्षियों की चहचहाहट के बिना दुनिया फीकी और नीरस जगह है।  हिमालय तथा हिमाचल में बढ़ रही प्राकृतिक आपदाएं ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन के प्रभाव है। अरावली पर्वतमाला जो प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में सक्षम थी आज स्वयं सांसें गिनने लगीं हैं, कहीं बाढ़, कहीं तुफ़ान, कहीं सुखा सभी पर्यावरण में बढ़ते कार्बनिक पदार्थों से उपजे ग्लोबल वार्मिंग के नतीजे है इन्हीं के साथ साथ मानवीय गतिविधियों, औधोगिक इकाईयों, औधोगिक क्षेत्रों के बढ़ते जाल से जलवायु परिवर्तन का ख़तरा बढ़ा।

आज सही समय है जहां हम अपनी बात को मजबूती से रखते हुए देश दुनिया को पर्यावरणीय हालातो से रुबरु करा सकते हैं, कार्बन उत्सर्जन में कमी ला सकते हैं, प्रत्येक देश दुनिया को वर्तमान हालातो पर काम करने को मजबुर कर सकते और यह सही समय है देश दुनिया को पर्यावरणीय ख़तरों से बचाने का। लेखक के अपने निजी विचार है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)