कैलाश विजयवर्गीय के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं
लेखक : नवीन जैन

स्वतंत्र वरिष्ठ पत्रकार, इंदौर (एमपी)

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अच्छा से अच्छा से लड़ाका भी लड़ाई जब आधे मन से लड़ता है, तो उसकी हिम्मत वैसे ही टूट जाती है, और उसके साथ कोई भी अनहोनी के अवसर बढ़ जाते हैं।उसके फौजी भी मैदान में उतरते तो हैं, लेकिन उन्हें ही अपनी जीत का यकीन नहीं होता। मतलब यह नहीं कि इन्दौर की बहुचर्चित एक नंबर विधनसभा सीट से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव, जो छह विधान सभा चुनावों में से एक भी चुनाव कभी नहीं हारे और पार्टी में  गृह मंत्री अमित शाह के बाद दूसरे टसल के ज़मीनी हुनर मंद नेता माने जाते हैं।इसका गवाह है कभी हरियाणा में डूबती पार्टी को उनके श्रम से प्रदेश की सत्ता दिलवाना, फिर पश्चिम बंगाल में 2019में हुए लोकसभा आम चुनावों में उन्हीं की रात दिन की मेहनत के बाद कुल 42 सीटों में से 18 सीटों पर कब्ज़ा दिलवाना। उसके तत्काल बाद हुए विधानसभा चुनावों में कुल 294सीटों में से भाजपा को 71 सीटें दिलवाना, जबकि उसके पहले इस पार्टी के खाते में तीन विधायक ही थे। सही है, कि पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह आदि भाजपा के अन्य खां साहब नेताओं ने उन दिनों उक्त सूबे को ही जुमले में कहें, तो अपना दूसरा अस्थाई पता बना लिया था, और कैलाश जी ने तो एक-एक सीट पर दो-दो बार घर-घर प्रचार किया था, लेकिन ममता बैनर्जी की मुख्यमंत्री वाली पार्टी ने लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल कर ली थी, लेकिन कुल मिलाकर भाजपा की इस हार को भी बिटविन द लाइंस जीत ही माना गया था, क्योंकि पूरे विपक्ष के खिलाफ वास्तव में अकेले कैलाश विजयवर्गीय किले लड़ा रहे थे। 

दरअसल मध्य प्रदेश में कैलाश विजयवर्गीय और प्रदेश के गृह मंत्री डाक्टर नरोत्तम मिश्र घोर रामवादी और कट्टर हिंदुत्व वादी होने के बावजूद अपनी बॉडी लैंग्वेज से ही दिखा देते है कि उन्हें अपने पद और प्रतिष्ठा का इतना घमंड और मद है। इसका ताजा प्रमाण है कैलाश जी को टिकिट दिए जाने के तत्काल बाद दिए गए कुछ सार्वजनिक बयान जो देश भर के मीडिया के माध्यम से  चर्चित होकर घर घर पहुंच गए। 

कैलाश विजयवर्गीय इन बयानों में कहते सुने जा रहे है कि मैं तो ये चुनाव लडना ही नहीं चाहता था। मेरा माइंड सेट चुनाव के लिए तैयार ही नहीं था। मैं तो अब बड़ा नेता बन चुका हूं। सोच रहा था कि हेलीकॉप्टर और कार से एक दिन में सात आठ रैलियां करूंगा और फिर अपने बेटे आकाश विजयवर्गीय के लिए भी उसकी राजनीतिक जमीन और मजबूत करूंगा, क्योंकि तीन नंबर सीट पर उसने बहुत अच्छा काम किया है। जान लें कि दुनिया भर में आकाश विजयवर्गीय का इंदौर नगर निगम के एक उच्च अफसर के साथ बल्ला कांड इतना मशहूर हो गया था कि पीएम नरेंद्र मोदी तक उन्हें (आकाश) पार्टी से अलग करवाने के मूड में आ गए थे। और उन्होंने यहां तक कह दिया कि एक विधायक पार्टी में नहीं भी रहा तो पार्टी का कोई बहुत बड़ा नुकसान नहीं हो जाएगा।

इन्हीं आकाश विजयवर्गीय के उक्त बल्ला कांड को लेकर अभी भी कोर्ट में मुकदमा चल रहा है, लेकिन लगता हैं कि कैलाश जी इन सब तथ्यो के विपरीत अपने बेटे को निर्दोष मानते है और इसीलिए उन्हें अपनी राजनीतिक विरासत सौपना चाहते है। कैलाश जी अब अड़सठ बरस के होने को आए है। उन्हें साधन सम्पन माना जाता है, लेकिन उनके खिलाफ़ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के सिटिंग विधायक संजय शुक्ला के बारे में तो कहा जाता है कि इस मामले में  वे भी इक्कीसे नहीं बैठते। और, हाथ खुला रखना भी जानते हैं। 

कोरोना काल में उनके द्वारा की गई मदद का पूरे देश ने सोशल मीडिया के द्वारा नोटिस लिया था और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के अलावा  संजय शुक्ला को ही मीडिया फ्रेंडली माना जाता है। उधर ,हमारे कैलाश जी  के तेवर ऐसे हैं कि कब पत्रकारों के माजने उतार दें ,यह कह नहीं सकते। और, एक खास  समुदाय के खिलाफ़ उनके बयान! तौबा। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि उक्त नंबर एक सीट में मुस्लिम मतदाताओं का फीसद करीब 30 माना जाता है और इसी समुदाय के खिलाफ़ जहर बुझे बयान देना कैलाश विजयवर्गीय की खास राजनीतिक पूंजी है। माना जाता है कि उक्त समुदाय कैलाश जी से उतना ही फासला रखने में अपनी भलाई समझता है, जितनी प्रदेश के गृह मंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्र, और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से। पुरानी विडियो क्लिपिंग्ज से पता चलता है, कि  कैलाश जी एक बार पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ भी अप्रत्यक्ष रूप से बोल चुके हैं।नंबर एक सीट से प्रसिद्ध कवि ,पूर्व भाजपा विधायक, पार्टी के बुजुर्ग नेता सत्य नारायण सत्तन (गुरु) और संजय शुक्ला के खिलाफ 2018 का चुनाव हार चुके सुदर्शन गुप्ता भी इसी चुनाव में फिर से उतरना चाहते थे। इन दोनों नेताओं को कैलाश जी के साथ लिस्ट की घोषणा के बाद विभिन्न  तस्वीरों में देखा गया है, लेकिन खासकर ऐसी  तस्वीरों में हरदम असलियत तो होती नहीं न। फिर ये चर्चा भी आम रही है कि सुदर्शन गुप्ता को चुनाव हरवाने में जो पार्टी के जिन लोगों ने ही सेबोटेज किया, वे दरअसल कैलाश जी के ही गुड लिस्ट में थे।अब मौका सुदर्शन गुप्ता के हाथ लगा है। 

बस, एक बड़ी बात कैलाश जी के खास हक में जाती है, और वो यह कि महापौर के पिछले चुनाव में संजय शुक्ला पुष्य मित्र भार्गव से जो अपनी ही उक्त विधायकी की सीट पर करीब बीस हजार मतों से  हारे थे। दिलचस्प यह जानना होगा कि कैलाश विजयवर्गीय उक्त लीड को  कितना मेंटेन कर पाते हैं। कैलाश विजयवर्गीय को अगले मुख्यमंत्री के रूप में पेश करना भी आसान नहीं है । ठीक है कि मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान ने सोशल मीडिया की ख़बरों के अनुसार राज्य के अफसरों की बैठक में अलविदा कह कर अपनी विदाई के संकेत दे दिए हों, लेकिन कैलाश जी के बारे में जानकारों का कहना है कि उन्हें अगले मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करना पार्टी को रिस्क ज़्यादा, और फायदा कम मिलेगा।  माना जा रहा है कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी के पद पर किसी भड़काऊ बयान देने के लिए चर्चित नेता को प्रोजेक्ट किया जाए, क्योंकि अगले ही साल लोकसभा के चुनाव होने है और पिछले लोकसभा चुनाव में  भाजपा को क्लीन स्विप मिली थी। इस पार्टी ने कुल 29 में से कमलनाथ के पुत्र मुकुल नाथ की छिंदवाड़ा की सीट को छोड़कर बची सभी 28 सीटों पर फतह दर्ज की थी। यदि केंद्र में भाजपा वापस लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटने का करिश्मा दिखाना चाहती है तो उत्तर प्रदेश,गुजरात,बिहार और मध्य प्रदेश की भी उसमें निर्णायक भूमिका होगी। 

माना यह भी जा रहा है कि संजय शुक्ला तो नाम के उम्मीदवार है उनकी जगह तो अपरोक्ष रूप से कमलनाथ ही चुनाव लड़ रहे है।संजय शुक्ला से कमल नाथ की नजदीकियां जगजाहिर है और कमलनाथ को कांग्रेस एक मत से फिर अगला मुख्य मंत्री प्रोजेक्ट कर चुकी है।वैसे कमलनाथ ने घोषणा कर दी है कि कांग्रेस यह चुनाव अपने दम पर ही अकेले लड़ेगी लेकिन ख्याल रहे कि इंडिया अलायन्स का कांग्रेस मुख्य दल है और पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री और फायर ब्रैंडेड नेता ममता बनर्जी भी इंडिया अलायन्स का एक अहम हिस्सा है। माना जा रहा है कि कमलनाथ जरूरत पढ़ने पर ममता बनर्जी की सेवाएं भी ले सकते है। वैसे भी ममता बनर्जी और कैलाश विजयवर्गीय के राजनीतिक विरोध को कौन नहीं जानता। फिर भाजपा के पास ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे कुशल और लगभग विवादहीन केंद्रीय मंत्री भी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)