तेलंगाना विधान सभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबलों के आसार
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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कुछ महीने पूर्व कर्नाटक विधान सभा के चुनावों में भारी बहुमत से जीतने के बाद अब कांग्रेस पार्टी यही इतिहास दक्षिण के तेलंगाना में दोहराने की तैयारी में जुटी है। पिछले हफ्ते कांग्रेस पार्टी की नव गठित केंद्रीय कार्यसमिति पहली बैठक राज्य की राजधानी हैदराबाद में हुई। इसमें निकट भविष्य में पांच राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनावों में पार्टी की रणनीति पर लम्बा विचार-विमर्श हुआ। मोटे तौर पर इन राज्यों में कर्नाटक विधान सभा चुनावों के मॉडल पर लड़ने का निर्णय किया गया। कर्नाटक विधान सभा चुनाव मुख्य रूप से “मुफ्त रेवड़ियां” बाँटने के रणनीति के आधार पर लड़ा गया था। पार्टी की यह रणनीति पूरी तरह सफल रही। पार्टी ने मतदातायों को पांच गारंटियां दी। जिसमे 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली। प्रत्येक परिवार की मुखिया महिला को दो हज़ार रूपये  मानदेय महिलायों के सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा सुविधा दिया जाना तथा शिक्षित बेरोजगार युवकों को प्रति माह 15,00 रूपये बेरोजगार भत्ता देने का वायदा शामिल था। 

पार्टी की बैठक के बाद राजधानी में एक जनसभा का आयोजन किया गया। पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी इन सभा में मतदाताओं से यह वायदा किया  अगर पार्टी इस राज्य में सत्ता में आती है न केवल यह पांच सुविधाएं देगी बल्कि घरेलू गैस सिलेंडर पर 500 रूपये अनुदान भी दिया जायेगा। उन्होंने इस तरह मतदातायों को पांच के स्थान पर 6 गारंटियां दी। 

2014 में आन्ध्र प्रदेश का विभाजन कर पृथक तेलंगाना राज्य बनाया गया था। तब से यहाँ भारत राष्ट्र समिति (जिसका पूर्व नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति था)  सत्ता में है। वस्तुत  नया राज्य बनाने के लिए इस क्षेत्रीय दल ने बड़ा आन्दोलन किया था। इसके नेता तब से इस प्रदेश में इसी पार्टी का दबदबा है तथा    चंद्रशेखर राव पार्टी के मुखिया के साथ राज्य के मुख्यमंत्री भी है। राज्य विधान सभा के कुल 119 सदस्य है। 2019 के विधान सभा चुनाव लगभग एक तरफ़ा थे। भारत राष्ट्र समिति लगभग 90 सीटें जीतने में सफल रही। कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत मिली थी जबकि बीजेपी को मात्र 4 सीटों पर संतोष करना पड़ा।  इसके अलावा यहाँ के एक क्षेत्रीय दल आल इंडिया मजलिस-ए–इतिहादुल मुस्लिमीन। इसके नेता असदुद्दीन ओवैसी हैं जो लोकसभा के सदस्य है .यह पार्टी भारत राष्ट्र समिति के बहुत नज़दीक है। इसके विधान सभा में सात सदस्य है। 

राज्य में आमतौर पर भारत राष्ट्र समिति की छवि अच्छी है। पार्टी की सरकार अपने कार्यों के बल पर तीसरा चुनाव जीतने के लिए जोर लगा रही है। चूँकि    चंद्रशेखर राव पार्टी के एकछत्र नेता है इसलिए उन्हें पार्टी के उम्मीदवार तय करने में कोई विशेष कठिनाई नहीं आती। पिछले चुनावों में उन्होंने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की सूची चुनावो से दो महीने पहले ही जारी कर दी थी। राजनीतिक विशेषज्ञ यह मानते है है पार्टी को इसका भरपूर लाभ मिला। इस बार भी उन्होंने वही रणनीति दोहराई। उन्होंने एक महीना पूर्व ही पार्टी के सभी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। 

बीजेपी पिछले तीन साल से यहाँ अपने विस्तार में लगी है। लगभग तीन वर्ष पूर्व यहाँ हैदराबाद नगर निगम का चुनाव लड़ा था। चुनावों से पूर्व इस 150 सदस्यों वाली निगम में  समिति के सदस्यों की संख्या 99 थी। जबकि बीजेपी के कुल मिला कर 4 ही सदस्य थे। बीजेपी ने यहाँ चुनावों में सारी ताकत झोंक  दी। केद्रीय गृह मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा तक ने यहाँ आकर चुनाव प्रचार किया। 

इसका फायदा बीजेपी को हुआ। भारत राष्ट्र समिति बड़ी मुश्किल से यहाँ ओवैसी के साथ मिलकर बहुमत जुटा पाई। इसका सदस्य संख्या बल 99 से घटकर 56 रह गई। बीजेपी के सदस्य 4 से बढ़ कर 48 हो गए। 

इस जीत के बाद से ही बीजेपी ने दक्षिण के इस राज्य में अपने विस्तार का रोड माप बनाया शुरू किया। पार्टी के संगठन में बड़े बदलाव किये। कुछ माह पूर्व यहाँ पार्टी की केंद्रीय कार्यकारणी की बैठक भी यहाँ  की गई। कार्यकारणी के सभी सदस्यों को बैठक से तीन दिन पूर्व ही हैदराबाद पहुचने के लिए कहा गया।  इन सभी को अलग-अलग में विधान सभा क्षेत्रों में भेज कर पार्टी की जमीनी स्थिति की जानकारी जुटाने के लिए कहा गया। संभावित उमीदवारों को भी चिन्हित किया गया। ऐसा लग रहा है कि इस बार विधान सभा चुनाव एक तरफा नहीं होगा। मुकाबला समिति, कांग्रेस एंड बीजेपी के बीच त्रिकोणीय होगा।  (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)