कर्नाटक में गारंटी स्कीमों के लिए धन जुटाने का संकट

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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मई में हुए विधान सभा चुनावों में अभियान के समय कांग्रेस पार्टी, जो चुनावों के बाद सत्ता में आई, ने मतदातायों को पांच गारंटियां दी थी। ये गारंटियां दी थी। इसमें महिलायों के लिए सरकारी बसों में मुफ्त यात्रा, प्रत्येक परिवार को महीने में दस किलों मुफ्त राशन देना, 200 यूनिट तक बिजली का बिल माफ़ करना, परिवार महिला प्रमुख को प्रतिमाह 2000 देना तथा पढ़े लिखे बेरोजगार युवको को प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ता देने का वायदा किया गया था। यह माना  जाता है कि कांग्रेस पार्टी मुख्य रूप से इन पांच वायदों की वजह से ही सत्ता में आने में सफल रही थी। 

उस समय संभवत कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने यह अनुमान नहीं लगाया था की इन पांचो गारंटियों को पूरी तरह से लागू करने के लिए कितना सरकारी धन जुटाना पड़ेगा। उस समय के सत्तारूढ़ दल बीजेपी के नेताओं ने बार-बार कहा था कि इन पांचो गारंटियों को लागू करना लगभग असंभव सा है क्योंकि राज्य की वितीय स्थिति को देखते हुए कोई भी सरकार इतना धन नहीं जुटा पायेगी। 

जब राज्य में कांग्रेस सत्ता में आई और सिद्धारामिया मुख्यमंत्री बने तो मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही इन गारंटियों को लागू करने का बड़ा फैसला किया गया। सरकारी अधिकारियों को इन स्कीमों का विस्तृत रूप और इन्हें लागू करने की समयावधि तैयार करने के करने का निदेश दिया गया। कुछ दिनों बाद यह बात सामने आई कि अगर इन स्कीमों को पूर्ण रूप से लागू किया जाये तो इसके लिए प्रतिवर्ष लगभग 60,000 करोड़ की जरूत होगी जबकि राज्य सरकार का कुल वार्षिक बजट 3.20 लाख करोड़ के आस पास है। 

मुख्यमंत्री सिद्धारामिया वित्तीय मामले के माहिर माने जाते है। वे पिछली विभिन्न सरकारों के वित्त मंत्री के रूप में एक दर्जन से भी अधिक बजट विधान सभा में पेश कर चुके है। इस बार भी उन्होंने वित्त विभाग अपने पास ही रखा। पिछले महीने बजट पेश करने से पूर्व लम्बी कवायद में यह तय हुआ कुछ ऐसे कर लगाये जायेंगे जिससे आम आदमी प्रभावित न हो और धन भी अधिक जुटाया जा सके। 

जैसा कि अपेक्षित था शराब पर आबकारी कर में 20 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गयी। लेकिन इससे लगभग 6000 करोड़ अतिरिक्त आय का अनुमान है। ऐसा पहली बार हुआ कि शिक्षा, स्वाथ्य सेवाओं तथा जल संसाधन योजनाओं के आवंटन में  5 से 10 प्रतिशत कटौती की गई। बजट में बाद अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन जातियों के लिए तय किये गए कुल 36,000 के आवंटन में से लगभग 12000 करोड़ रुपए गारंटी स्कीमों के मद में स्थान्तरित कर दिए  गए। इससे पहले पद संभालती ही सिद्धारामिया ने बीजेपी के शासन काल में मंजूर की गई योजनायों को रद्द कर दिया था। चल रही योजनायों के लिए ठेकेदारों के भुगतान रोक दिए गए। इसके साथ ही कोई नई योजनायों तुरंत शुरू नहीं करने का निर्णय किया गया। इसको लेकर कांग्रेस पार्टी के विधायकों का एक वर्ग नाराज हो गया। पार्टी आलाकमान को एक संयुक्त पत्र भेज कर नाराजी जताई गई। आलाकमान  की ओर से  मुख्यमंत्री को चेतावनी दी गई। उनसे कहा गया कि वे विधायकों से मिलकर और उनसे फीड बैक लेकर ही इस दिशा में काम करें। 

इसके बाद विधायको से मिलने का सिलसिला शुरू हुआ। विधायकों को कहना था की अगर योजनाओं पर रोक जारी रही तो मतदाता नाराज़ हो जायेगा और  पार्टी को इसका खामियाज़ा लोकसभा के चुनावों में भुगतना पड़ेगा। सिद्धारामिया और उप मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार का तर्क था कि पार्टी को चुनावों में पांच  गारंटियों को लागू करने से अधिक लाभ होगा। राज्य में यह किसी से छिपा नहीं है कि सरकारी योजनाओं में क्षेत्रीय विधायकों को हिस्सा मिलता है इसलिए वे  ऐसी योजनायें बनाने, जारी रखने तथा ठेकेदारों केबिलों के भुगतान में अधिक दिलचस्पी रखते है।

इसलिए विधायकों के दवाब में आकर सिद्धारामिया ने बीजेपी काल में आरंभ की गई योजनाओं में अधिकांश को फिर से चालू करने के निर्देश दे दिए। ठेकेदारों के बिलों के भुगतान करने का निर्णय भी किया गया। इसके साथ इलाके के विधायकों से  विचार विमर्श करके वहां नई योजनाए शुरू करने भी की दिशा में काम शुरू हो गया है।  इसके साथ ही यह तय हुआ कि मुख्यमंत्री हर महीने अलग-अलग ग्रुप में विधायकों से मिला करेंगे। उधर उप मुख्यमंत्री शिवकुमार अभी भी इस बात पर जोर दे रहे है कि पांच गारंटियों को लागू करने में कोई कोताही नहीं की जाये। अगर ऐसा हुआ तो पार्टी को कुछ महीने बाद होने वाले चुनावों में नुकसान उठाना पड़ सकता है।  (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)