कम नहीं हैं आर्टीफिशियल इंटैलीजेंस के खतरे :ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं

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आजकल आर्टिफिशियल इंटैलीजेंस यानी एआई के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल को लेकर चिंताएं बेवजह नहीं हैं । सबसे बडी़ चिंता इसको लेकर जो सबके सामने आज बेहद गंभीर रूप से मौजूद है,वह यह है कि यह संपूर्ण मानवता के लिए भीषण खतरा है। एक सर्वे में इस बात का अंदेशा व्यक्त किया गया है कि आने वाले पांच से दस सालों के बीच एआई समूची मानवता को ही खत्म कर देगी। येल सीईओ समिट में किया गया सर्वेक्षण इस बात को साबित करता है कि 42 फीसदी सीईओ का यह स्पष्ट मानना है कि अगले पांच से दस सालों में एआई संपूर्ण मानवता को खत्म कर देगी। सर्वेक्षण में यह भी खुलासा हुआ है कि एआई से जुडे़ जोखिम कम नहीं हैं। 

सर्वेक्षण के मुताबिक 34 फीसदी का मत है कि कि ए आई एक दशक के भीतर ही विनाशकारी हो सकता है और तो और आठ फीसदी यह मानते हैं कि ऐसे हालात आने वाले पांच सालों में ही सामने आ जाएंगे। जबकि 58 फीसदी का मानना है कि उनकी राय में ऐसे हालात कभी नहीं आएंगे। गौरतलब है कि यह सर्वे रिपोर्ट तब आई है जबकि इस खतरे के बारे में पहले से ही उद्योग जगत हो या शिक्षा या फिर सार्वजनिक क्षेत्र की जानी-मानी हस्तियां लगातार चेता रहीं हैं। कुछ तो इसके विकसित होने की स्थिति में विलुप्ति का अंदेशा भी जाहिर कर चुके हैं। यहां ओपेन ए हाई के सीईओ सैम आल्टमैन व ज्योफ्री हिंटन की मानें तो यह बेहद जरूरी है कि एआई के खतरों से खुद को बचाने के लिए समय रहते सुरक्षात्मक कदम उठा लिए जायें।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का भी इस दिशा में चिंतित होना स्वाभाविक है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस का भी यह मानना है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई को नियंत्रित करने के लिए सामूहिक प्रयास करने की बेहद जरूरत है क्योंकि एआई के सैन्य और गैर सैन्य उपयोग से विश्व शांति और सुरक्षा को खतरा है। एआई के खतरों की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार एआई के खतरों और उनपर नियंत्रण के मुद्दों पर विचार के लिए विगत दिनों एक बैठक की। इस बैठक में यूएन महासचिव का यह कहना है कि तकनीक को नियंत्रित करने के प्रयासों का समर्थन करने के लिए नये निकायों की जरूरत है। यह समय की मांग है। 

असलियत में यह सही समय है जब इस तकनीक की निगरानी और विनियमन के लिए उन नियमों को तय कर लिया जाना चाहिए जिन पर  दुनिया के अधिकांश देश सहमत हैं। वह यह भी मानते हैं कि 2026 तक युद्ध के स्वचालित हथियारों में एआई के उपयोग पर प्रतिबंध के लिए कानूनी समझौते को लागू किया जाये। साथ ही इस तकनीक को सीखने की मानसिकता के साथ अपनाये जाने को भी जरूरी बताया और इस पर जोर दिया कि इस तकनीक की पारदर्शिता, जबावदेही और निगरानी के उपायों की दिशा में मिलजुल कर काम करना होगा तभी कुछ अच्छे परिणाम की उम्मीद की जा सकती है।

अब यहां सबसे ज्यादा पेचीदा सवाल यह है कि दुनिया के सभी देश एआई को अपने-अपने लाभ-हानि के हिसाब से देखते हैं और उसी के हिसाब से अपना रुख तय करते हैं। इस बारे में दुनिया के विशेषज्ञों के भी अपने-अपने मत हैं। इस बारे में आई टी के प्रख्यात उद्यमी एन आर नारायण मूर्ति यह मानते हैं कि मनुष्य के पास दिमाग की अप्रतिम शक्ति है जिसका मुकाबला कोई कंप्यूटर नहीं कर सकता लेकिन कम्प्यूटर ने जहां हमारे जीवन के कुछ क्षेत्रों को और अधिक आरामदायक, तकनीक ने सुविधा संपन्न और एआई ने सहायक बना दिया है। जबकि गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई कहते हैं कि यह आग और बिजली से भी अधिक गहरा है। 

इस पर बिना एक वैश्विक ढांचे के एक देश या उन देशों के समूह द्वारा काम कर लेने से सुरक्षा नहीं हासिल हो सकती है। क्योंकि यह सबसे गहरी चीजों में से एक है। आई टी विशेषज्ञ एन्ड्र्यू एनजी के अनुसार वह चाहे स्वास्थ्य ,सेवा, शिक्षा, परिवहन, संचार, खुदरा व्यवसाय हो या कृषि, कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसे एआई बदल नहीं पाएगा। एआई के पास सभी क्षेत्रों में बदलाव के लिए आश्चर्यजनक रूप से बहुत से रास्ते हैं।तात्पर्य यह कि इससे कुछ भी अछूता नहीं है। वहीं जान हेगल का कहना है कि अगर इसे हम सही तरीके से कर पाते हैं तो हम काम का ऐसा रूप विकसित करने में समर्थ हो सकते हैं जो मानवीय क्षमताओं के साथ मानवीयता की पुनः स्थापना  में कामयाब हो सकते हैं। इस बारे में अमेरिका का यह स्पष्ट मत है कि लोगों का दमन करने व सैंसर करने में इसके इस्तेमाल के भयावह खतरे हो सकते हैं।

इनके खिलाफ लड़ना होगा। ब्रिटेन के यूएन में दूत जेम्स क्लेवर्ली कहते हैं कि एआई तकनीक दुनिया में मानव के जीवन के हर पहलू को बदल कर रख देगी। यह दुष्प्रचार के साथ - साथ हथियारों की तलाश में देशों को मदद कर सकती है। यूएन में चीनी राजदूत झांग जून इसे दोधारी तलवार मानते हैं। उनके अनुसार इसे बेलगाम भगोडा़ घोडा़ नहीं बनने देना चाहिए। विकास को विनियमित करने के साथ इस पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए अन्यथा परिणाम आत्मघाती होंगे। ब्रिटिश खुफिया एजेंसी के प्रमुख मूर की मानें तो ब्रिटिश जासूस तो पहले से ही इसका इस्तेमाल रूस के खिलाफ हथियारों की आपूर्ति में बाधा डालने के लिए कर रहे हैं। जबकि रूस का इस बाबत कहना है कि हमें इस बात की पूरी जानकारी थी जिससे कि रूस को दुनिया में वैश्विक अस्थिरता के लिए खतरे के रूप में पेश किया जा सके। यह एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है।

गौरतलब है कि साइबर की दुनिया में किसी भी देश के लिए एआई की प्रधानता कहें या उससे लैस होना बेहद जरूरी है। जहां तक भारत का सवाल है, वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी एआई पारिस्थितीय तंत्र के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण की जरूरत है। उस स्थिति में जबकि हमारा देश कौशल पैठ के मामले में शीर्ष पर है। इस विकास यात्रा के पथ पर एआई प्रतिभा को नयी पीढी़ की ओर ले जाना समय की मांग है। क्योंकि इसके सहारे हम ऐसी नागरिकों की कुशल पीढी़ तैयार कर सकते हैं जो इस तकनीक का जिम्मेदारी के साथ उपयोग कर पाने में समर्थ होगी। यदि इसके परिप्रेक्ष्य में नजर डालें तो इसमें संदेह नहीं है कि भारत दुनिया को 16 फीसदी से ज्यादा एआई प्रतिभा देता है और 3.9 गुना से ज्यादा भारतीय एआई प्रतिभा से संपन्न हैं। लेकिन इसके साथ 51फीसदी से ज्यादा हमारे देश में एआई क्षेत्र में मांग व आपूर्ति में अंतर भी है। 

वह बात दीगर है और इसमें भी दो राय नहीं है कि देश में इस सबके बावजूद एआई साक्षर नागरिकों की जरूरत है ताकि वह जीवन को और उन्नत बनाने की दिशा में मूलभूत ज्ञान की क्षमता का सदुपयोग कर सकें। साथ ही इसकी भी जरूरत है कि वे एआई एप्लीकेशन,सुरक्षा, जागरूकता आदि की ईमानदारी और कर्तव्य बोध सहित दायित्व निर्वहन की शिक्षा से परिपूर्ण हो लोगों को इसके खतरे और चुनौतियों के प्रति जागरूक कर सकें। उसी दशा में जहां लोग लाभान्वित होंगे,वहीं वह इससे ठगी के शिकार होने से भी बच सकेंगे। निष्कर्षतः इन सभी उपलब्धियों के बावजूद हमें एआई जोखिमों और वैश्विक अस्थिरता के खतरों से सचेत रहना होगा और चुनौतियों के मुकाबले के लिए हर समय सजग भी रहना होगा। तभी हम कुछ सार्थक बदलाव की आशा कर सकते हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)