बेवफ़ा ; तिलकराज सक्सेना

लेखक : तिलकराज सक्सेना 

जयपुर।

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छोड़ दिया उसने किसी के कहने में आकर,

ख़ुद को मेरी आदत बनाकर,

यकीं किया था जिसपे ख़ुद से ज्यादा,

तोड़ लिया रिश्ता उसीने रिश्ता बनाकर,

क्या यकीं करें किसी पर,

अब तो यकीं रहा नहीं हमें ही ख़ुद पर,

मौत गले लगा लेती तो अच्छा था,

आसां नहीं होता यूँ जीना भी घुट-घुटकर,

दुआ दी थी जिसे कभी बुलन्दियों से रूबरू होने की,

रुलाया है उसी ने हमें जी भर भरकर,

इश्क़ था इसलिये जाने भी दिया बेवफ़ा को बाअदब,

ना होता तो, क़ायनात भी थर्रा जाती,

अंज़ाम-ए-बेवफ़ाई का खौफ़नाक मंज़र देखकर।