सांभर में सरसों का ताजिया बना हिंदू-मुस्लिम सौहार्द का प्रतीक

मातमी धुन के साथ निकाले ताजिए

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

www.daylife.page 

सांभरझील। सांभर में इमाम हुसैन की शहादत पर मुस्लिम भाइयों ने शनिवार को यहां के प्रमुख स्थानों से ढोल ताशों की मातमी धुन के साथ ताजिए निकाले। अलमपुरा, बरडोटी, सुधाबाड़ी, पांच पीरों का मोहल्ला, खारडा मोहल्ला व बंजारों की मस्जिद से अलग-अलग ताजिए निकाले गए। ताजियों के साथ भारी संख्या में मुस्लिम भाइयों के अलावा सभी वर्ग के लोगों ने भाग लिया। कानून व्यवस्था के मद्देनजर जगह जगह पुलिस जाब्ता भी तैनात रहा। कई वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते हुए कयाल परिवार की ओर से सरसों का ताजिया बनवाया गया। 

सरसों का ताजिया बनाने के लिए प्रक्रिया करीब दस रोज पहले से ही शुरू की जाती है। बास बांस की खपच्चियों से ढांचा तैयार कर इसके ऊपर रुई लपेटी जाती है और उसमें सरसों के दाने भी लगा दिये जाते है, इसकी सिंचाई की जाती है, धीरे-धीरे इसमें सरसों के दाने अंकुरित होने लग जाते हैं और उसके पश्चात ताजिए के एक दिन पहले यह पूरा हरा भरा सरसों का ताजिया लोगों के लिए खास आकर्षण का केंद्र भी रहता है। यह सरसों का ताजिया सांभर में विगत कई दशकों से हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की एकता का प्रतीक माना जाता है। इसके पश्चात इमाम चौक पर आकर रेलवे स्टेशन के पीछे स्थित कर्बला लेकर जाते हैं जहां सभी ताजियों को कर्बला में दफनाया गया।