समान नागरिक संहिता पर जनमत का ध्यान रखा जाए : डाॅ. कुसुम

मुक्त मंच की समान नागरिक संहिता के औचित्य पर संगोष्ठी


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जयपुर। मुक्त मंच की 71वीं मासिक संगोष्ठी समान नागरिक संहिता का औचित्य विषय पर हुई। परमहंस योगिनी डॉ. पुष्पलता गर्ग के सानिध्य, भाषाविद डॉ. नरेंद्र शर्मा कुसुम की अध्यक्षता और अरुण ओझा आईएएस (से.नि.) के मुख्य आतिथ्य में संपन्न संगोष्ठी का संयोजन शब्द संसार के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने किया। 

डॉ. नरेंद्र शर्मा कुसुम ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि विविधता में एकता वाले इस देश में समान नागरिक संहिता का निर्वहन जटिल समस्या है। हमारे यहां प्राचीन काल से एकता, बंधुत्व और समरसता का भाव रहा है और एकरूपता को कभी स्वीकार नहीं किया गया। ऐसे में निर्णय लेते हुए जनमत का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। मुख्य अतिथि अरुण कुमार ओझा आईएएस (से.नि.) ने कहा कि समान नागरिक संहिता हमारी संस्कृति की विरुपता को बढ़ा देगी। संगोष्ठी के संयोजक श्रीकृष्ण शर्मा ने संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के विविध उद्धरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस बारे में संयम के साथ विचार-विमर्श होना चाहिए। 

मुख्य अभियंता (से.नि.) दामोदर चिरानिया ने कहा कि विविधता के बावजूद देश में एकता बनी हुई है। यह प्रभावित नहीं होनी चाहिए। शिक्षाविद सुभाष गुप्ता ने कहा कि समान नागरिक संहिता अवांछनीय है। सत्ताधारी दल इसे वोट प्राप्ति का साधन मान रहा है। आईएएस (से.नि.) रामस्वरूप जाखड़ ने कहा कि समान नागरिक संहिता की बजाय रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के समान अवसरों पर विचार करने की जरूरत है। भ्रष्टाचार गरीबी और बेरोजगारी उन्मूलन पर ध्यान दिया जाए। 

पूर्व बैंकर इंद्र भंसाली ने कहा कि गोवा में तो यह पहले से लागू है। अन्य राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं। आईएएस (से.नि.) ए.आर. पठान ने कहा कि लोकतंत्र में तंत्र महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में लोकतंत्र के नाम पर नौटंकी बंद होनी चाहिए। प्रगतिशील चिंतक-पत्रकार सुधांशु मिश्र ने कहा कि अमेरिका में 50 राज्य हैं और सबके अपने-अपने कानून हैं। समान नागरिक संहिता से देश में शांति और विश्वास में अवरोध पैदा होगा। 

संगोष्ठी में वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ यशवंत कोठारी और फारूक अफरीदी, समाजसेवी आरसी जैन, वित्तीय सलाहकार राजेंद्र कुमार शर्मा, अरुण ठक्कर, स्तंभकार ललित शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए। विष्णु लाल वर्मा ने सभी का आभार व्यक्त किया।