दुनिया पर मंडराता वायु प्रदूषण का खतरा : ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत

वरिष्ठ पत्रकार एवं जानेमाने पर्यावरणविद हैं 

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आज समूची दुनिया वायु प्रदूषण की चपेट में है। महानगरों की बात छोडि़ए अब छोटे-छोटे शहर, कस्बे और गांव भी वायु प्रदूषण के चंगुल से अछूते नहीं हैं। तेज अर्थ व्यवस्था और विकास की गतिविधियों कीअंधी दौड़ के चलते वायु प्रदूषण को थामना आसान नहीं है। इसे यदि यूं कहें कि यह बेहद मुश्किल है तो गलत नहीं  होगा। नेशनल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, नीरी के विशेषज्ञों की भी एकमुश्त राय है कि तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था के दौर में वायु प्रदूषण को पूरी तरह नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। 

असलियत में यह स्थित दुनिया में हर विकसित देश की है। इस सबके बावजूद भी हमें सचेत रहना होगा अन्यथा हालात बेकाबू हो सकते हैं। इस दिशा में हर स्तर पर सतर्कता, निगरानी और जागरूकता बेहद जरूरी है। इसके चलते ही बेलगाम वायु प्रदूषण पर थोड़ी मात्रा में ही सही, काबू पाया जा सकता है। 

हकीकत यह है कि अब वायु प्रदूषण किसी खास दिन, महीनों में दिखाई और महसूस होने वाला नहीं है। अब तो वह पूरे साल अपनी मौजूदगी दर्ज कराने लगा है। यही नहीं अब समूची दुनिया में एक वर्ष के करीब सत्तर फीसदी दिनों में लोगों को खतरनाक वायु प्रदूषण झेलना पड़ रहा है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि अब वायु प्रदूषण ने बड़े शहरों से भी आगे बढ़कर छोटे शहरों-कस्बों और गांवों तक को अपनी चपेट में ले लिया है। हालात की भयावहता का जीता जागता सबूत यह है कि लगभग हरकोई पी एम  2.5 वाले छोटे वायु प्रदूषण के कणों के सम्पर्क में है। इसका तात्पर्य यह है कि दुनिया में वायु प्रदूषण से कोई भी सुरक्षित नहीं है। ए क्यू आई का कमोवेश हर जगह लगभग दो सौ के पार रहना इसका जीता जागता सबूत है। 

आस्ट्रेलिया के मोनाश विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस तथ्य को प्रमाणित किया है। शोधकर्ताओं के अध्ययन प्रमुख यूमिंग गुओ ने इसका खुलासा करते हुए कहा है कि आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि दुनिया के लगभग सभी हिस्सों में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित वायु गुणवत्ता दिशा निर्देशों की तुलना में वार्षिक औसत पी एम  2.5 सांद्रता अधिक है। यदि हाल के वर्षों का आंकड़ा देखें तो पाते हैं कि अकेले वर्ष  2019 में दुनिया में वायु प्रदूषण से मरने वालों की तादाद कम से कम 70 लाख है। असलियत में वैश्विक  भूमि क्षेत्र का केवल  0.18 फीसदी और वैश्विक आबादी का  0.001 फीसदी पी एम. 2.5 के संपर्क में है। जबकि प्रति घनमीटर पांच माइक्रोग्राम से अधिक वार्षिक सांद्रता खतरनाक है। 

देखा जाये तो वायु प्रदूषण बढ़ने के प्रमुख स्रोतों में एक बड़ा स्रोत वाहन प्रदूषण है। यह पूरे साल रहने वाला प्रदूषण है। दूसरा धूल और कचरा जलाने से होने वाला प्रदूषण है जो बेहद गंभीर और खतरनाक है। इसे अधिकांशतः लोग गंभीर नहीं मानते। वे तो इसे प्रदूषण भी मानने को तैयार नहीं हैं। ये लोग बिना किसी रोकथाम के उपाय या प्रयास के भवन निर्माण और खुदाई जैसे कामों को अंजाम देते हैं। वे खुलेआम कचरा भी जलाते हैं। तीसरा कारण कहें या स्रोत औद्योगिक प्रदूषण है। तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में दैनंदिन बढ़ती उद्योगों के लगने की रफ्तार के साथ प्रदूषण के कम हो पाने की उम्मीद ही बेमानी है। 

इस दिशा में इस सच्चाई को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि मौसम में बदलाव के साथ साथ प्रदूषण के कारकों की हिस्सेदारी में भी काफी बदलाव आया है। सर्दियों की तुलना में गर्मियों के दौरान स्थानीय कारकों से ज्यादा प्रदूषण होता है। इसमें खुले में आग,कचरा,गोबर के उपले,सूखे पत्ते और लकड़ी जलाने की भी अहम भूमिका है। गौरतलब है कि छोटे वायु कण जो  2.5 माइक्रोन या उससे कम चौड़ाई में होते हैं या मापे जाते हैं, वह मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा जहरीले वायु प्रदूषक में से एक हैं। इनको पी एम  2.5 के रूप में जाना जाता है। छोटे वायु प्रदूषक तत्व मनुष्य के बाल की चौडा़ई के एक तिहाई हिस्सा होते हैं। ये हमारे फेफड़े तक आसानी से पहुंच जाते हैं और सांस लेने में परेशानी पैदा करते हैं। ये कण हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर सहित बहुतेरी बीमारियों के कारण बनते हैं।

सबसे भयावह खतरा यह है कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्राकृतिक आपदायें लाखों लोगों को विस्थापित तो कर ही रही हैं, वहीं इसके चलते बिगड़ता पर्यावरण स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। दुनिया में आने से पहले ही बच्चों की सेहत पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। वायु प्रदूषण से जहां अजन्मे बच्चे पर भी बुरा असर पड़ रहा है, वहीं हड्डियों का तेजी से क्षरण भी होता है और अल्जाइमर का खतरा भी बढ़ जाता है। डब्ल्यू एच ओ और यूनिसेफ़ के मुताबिक वर्ष  2020 में बीस फीसदी नवजात बच्चों की मौत वायु प्रदूषण से हुयी। हाल ही में डब्ल्यू एच ओ, यूनिसेफ़ और मातृ नवजात शिशु तथा बाल स्वास्थ्य की ओर से जारी " बोर्ड टू सून: डिकेड आफ एक्शन आन प्रीटरम बर्थ" नामक रिपोर्ट में जिसमें जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रभागों पर प्रकाश डाला गया है, में कहा गया है कि मीथेन और ब्लैक कार्बन से न सिर्फ हवा खराब हो रही है बल्कि इससे नवजातों की मौत के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। यह भी कि कम और मध्य आय वाले देशों में वायु प्रदूषण से समय से पहले पैदा होने वाले  91 फीसदी शिशुः की मौतें होती हैं। इनमें भारत शीर्ष पर है और उसके बाद पाकिस्तान, नाईजीरिया, चीन और इथियोपिया जैसे देश आते हैं। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के नये शोध इसके सबूत हैं कि हवा में नाइट्रीक आक्साइड जैसे प्रदूषकों का स्तर बढ़ने से रजोनिवृत्ति वाली महिलाओं में हड्डियों के क्षरण की गति तेज हो जाती है। इसका सबसे ज्यादा असर मेरुदंड के निचले हिस्से में हड्डियों के क्षरण की गति सामान्य एजिंग की वजह से होने वाले क्षरण की तुलना में दोगुना होती है। गौरतलब है कार और ट्रक जैसे वाहन तथा बिजली उत्पादन संयंत्र से निकलने वाला धुंआ नाइट्रस आक्साइड के प्रमुख स्रोत हैं। यह भी कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं आस्टियोपोरोसिस से ज्यादा प्रभावित होती हैं। उसमें भी रजोनिवृत्ति वाली महिलाओं को ज्यादा जोखिम रहता है। पचास साल की ऊपर की उम्र वाली महिलाओं को होने वाले बोन फ्रैक्चर के आधे मामले आस्टियोपोरोसिस के कारण होते हैं। अल्जाइमर के बढ़ते मामलों के लिए भी वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। ताजा अध्ययन प्रमाण हैं कि याददाश्त खोना व संज्ञानात्मक गिरावट का संबंध अल्जाइमर की शुरूआत है। इसका कारण यातायात के दौरान होने वाला वायु प्रदूषण है जो मस्तिष्क को कमजोर कर देता है। सबसे चिंता का विषय यह है कि वायु प्रदूषण का जहर भारतीयों की जिंदगी औसतन चार वर्ष ग्यारह महीने तक कम कर रहा है। सीएसई की रिपोर्ट ने इसका खुलासा किया है।  वैसे रिपोर्ट के अनुसार यह आंकड़ा अलग अलग है। रिपोर्ट की मानें तो तीस फीसदी भारतीयों की उम्र में एक से तीन साल, तकरीब 25.7 फीसदी की उम्र में तीन से पांच साल, 21.2 फीसदी की उम्र में पांच से सात साल,  22 फीसदी की उम्र  में सात साल  से अधिक  और  0.9फीसदी की उम्र  में एक साल से कम की कमी आ रही है। यह है वायु प्रदूषण से होने वाले खतरे की जीती जाती तस्वीर जो हमें सचेत करती है कि अब समय आ गया है कि इस दिशा में हमें उन सभी उपायों पर तेजी से काम करना बेहद जरूरी है जिससे प्रदूषण की बढ़ती दर को कम किया जा सके। इसके सिवाय दूसरा कोई चारा नहीं है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)