हितकर भोजन शरीर को स्वस्थ रखता है : प्रो डॉ. सोहनराज तातेड़

खाद्य संयम...

लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़ 

पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्वविद्यालय, राजस्थान

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खाद्य का अर्थ होता है खायी जाने वाली वस्तु या पदार्थ। संयम का अर्थ है- नियन्त्रण। खाद्य संयम का अर्थ हुआ खाद्य सामग्री पर नियन्त्रण। भारत एक बहुत बड़ा आबादी वाला देश है। यहां पर विभिन्न जातियों धर्मों और मत-मतान्तररों के लोग रहते है। अपनी जीवन चर्या का निर्वाह करने के लिए लोग कुछ न कुछ कार्य करते है और जीविका का निर्वाह करते है। यहां पर खाद्य संयम को बहुत महत्व दिया गया है। शरीर का संचालन करने के लिए खाद्य पदार्थ आवश्यक होता है। खाद्य पदार्थ शरीर के अन्दर रसों में परिवर्तित होकर शरीर को शक्ति प्रदान करता है। शरीर को संचालित होने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से मिलती है। हितकर भोजन शरीर को स्वस्थ रखता है। भोजन हित, मित और रित होना चाहिए। हित का अर्थ है- ऐसा भोजन जो शरीर के लिए हितकर हो और स्वास्थ्य वर्धक हो। मित का अर्थ है- शरीर की मात्रा के अनुकुल हो। रित का अर्थ है- ऋतुओं के अनुकूल। 

अर्थात् भारत में छः ऋतुएं होती है। गर्मी में ऐसा भोजन करना चाहिए जो शरीर को शीतलता प्रदान करें। सर्दी में ऐसा भोजन पथ्य होता हैं जो शरीर को गर्मी प्रदान करें। इसी प्रकार सभी ऋतुओं के अनुकूल ही भोजन करना चाहिए। भारत कृषिप्रधान देश है। यहां पर आधी से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है। कृषि करने के लिए जल की आवश्यकता होती हैं, यदि वर्षा समयानुकूल होती है तो अन्न अधिक उत्पन्न होता है और लोगों को खाने के लिए पर्याप्त अन्न उपलब्ध हो जाता है। अन्न जल से उपजता है जिसे मानव खाता है। उस अन्न में जो अन्न जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है उसी अनुसार मानव की मानसिकता बनती है। 

इसीलिए सदैव भोजन शांत अवस्था में पूर्ण रूचि के साथ करना चाहिए और कम से कम अन्न जिस धन से प्राप्त हो वह धन भी श्रम का होना चाहिए। आज विश्व में अनेक देशों में धर्म के नाम पर अत्याचार किये जा रहे हैं। वहां के निवासियों के द्वारा ग्रहण किया गया अन्न ही दूषित है। वहां मांस, मदिरा, कुधान्य का सेवन होता है। ऐसा भोजन तामसिक वृत्ति को बढ़ाता है। तामसिक वृत्ति वाले लोगों का मन सदैव क्रूरतापूर्ण होता है। नरसंहार करने में उनके अन्दर थोड़ी सी भी सहानुभूति या दया का भाव नहीं रहता, क्योंकि तामसिक प्रवृत्ति का यह गुण है कि वह मन को कठोर बना देती है। 

इसलिए मार, काट, हत्या, अपराध, बलात्कार, नरसंहार जैसी घटनाएं विश्व में आम बात हो गयी हैं। अन्न में जो प्रभाव रहता है वह प्रभाव खाने वाले में अवश्य पड़ता है। एक बार एक माता ने क्रोध की अवस्था में अपने बच्चे को दूध पिलाया। परिणाम यह हुआ कि बच्चा अस्वस्थ हो गया। जब बच्चे को डॉक्टरों के पास ले जाया गया तो डॉक्टर ने कहा बच्चे को कोई रोग नहीं है किन्तु इस बच्चे को इसकी माता ने जो दूध पिलाया है उसी का परिणाम है कि बच्चा अस्वस्थ हो गया है। माता का दूध तो अमृत के समान होता है, जिससे बच्चों का पालन-पोषण होता है। किन्तु क्रोध के समय बच्चे को पिलाया गया दूध बच्चे के लिये जहर का काम कर दिया। अतः अन्न जिस भाव से खाया जाता है उसका प्रभाव शरीर पर अवश्य पड़ता है।

 भारत के प्रधानमन्त्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के समय में भारत में अन्न की भारी कमी हो गयी थी। उन्होंने जनता से सप्ताह में एक दिन व्रत रखने की अपील की। जनता ने उनकी अपील को स्वीकार किया और व्रत रखकर धैर्य का परिचय दिया। जिससे भारत में अन्न की कमी दूर हो सकी। भोजन सूर्यास्त के पहले कर लेना चाहिए। सूर्यास्त के पहले किया गया भोजन आसानी से पच जाता है। अग्नि तीन प्रकार की होती हैं- जठराग्नि, दावाग्नि और वडवाग्नि। जठराग्नि का सम्बन्ध मनुष्य के शरीर में स्थित अग्नि से है। जिस व्यक्ति की जठराग्नि तीव्र होती हैं उसके द्वारा खाया गया भोजन शीघ्र पचता हैं और जिसकी जठराग्नि मंद होती है उसका खाना नहीं पच पाता। जठराग्नि का सम्बन्ध सूर्य से भी है। 

इसलिए सूर्य अस्त होने के पहले ही भोजन कर लेना चाहिए। खाद्य पदार्थों का उपयोग उतना ही होना चाहिए, जिससे परिवार का भरण-पोषण हो जाये। खाद्य पदार्थ को बर्बाद नहीं करना चाहिए। प्रायः देखा यह जाता है कि लोग विवाह-शादी और उत्सवों में खाद्य पदार्थ को मात्रा से अधिक बना लेते है और उसका उपयोग भी नहीं हो पाता। अन्त में खाद्य पदार्थ की बर्बादी होती है और उसे व्यर्थ में फेंक दिया जाता है। ऐसे उत्सवों में यह ध्यान रखना चाहिए कि जो अन्न किसी के खाने के लिए है उसकी कैसी बर्बादी हो रही है। परिवार के लिए जो भोजन बनता हैं उसका सम्यक् उपयोग होना चाहिए। 

प्रायः एक परिवार में सात-आठ सदस्य होते हैं। यदि कभी परिवार में कोई अतिथि आ जाये तो यदि लोग एक-एक रोटी कम खाये तो अतिथि का भी संविभाग उस परिवार में हो सकता है और अतिरिक्त भोजन बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। जीवन व्यवहार में खान-पान का असर दिखलाई पड़ता है। अतः हम सभी को आहार का विशेष संयम करना चाहिए। व्यक्ति के खान-पान का उसकी आध्यात्मिक साधना में बड़ा महत्व होता है। हल्का और सरस भोजन ही अभीष्ट होता है। जैन धर्म में पर्युषण पर्व में एक दिन खाद्य संयम का होता हैं। इस दिन व्रत और उपवास रहकर लोग संयम की आराधना करते हैं और आत्मा को निर्मल बनाते है। खाद्य संयम से अन्न की बचत होती ही है, साथ ही साथ स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)