घट रही नौकरियां भर्तियां नाकाफ़ी : डॉ. सत्यनारायण सिंह

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं 

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भारत में सरकारी, सार्वजनिक व निजी क्षेत्र में नैाकरियां कम हुई हैं। भर्तियां नाकाफी हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की 7 कम्पनियों के वर्तमान शासन के तहत 3.84 लाख रोजगार खत्म हो गये। केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में 10 साल में 2.7 लाख कर्मचारी कम हो गये। सरकारी नोकरियों में कर्मचारी घट ही नहीं रहे बल्कि सरकारी विभागों में लाखों पद खाली पड़े हैं। एक नई प्रणाली/चलन अनुबंध व दिहाड़ी पर कर्मचारी भर्ती करने का चल पड़ा है।

केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में कर्मचारियों की संख्या लगातार घट रही है। इन उद्यमों में जहां भर्तियां की जा रही हैं उनमें ज्यादातर अनुबंध और दैनिक वेतन के आधार पर की जा रही हैं। इस बात की जानकारी सार्वजनिक उद्यमों की सर्वेक्षण रिपोर्ट से ज्ञात हुई है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक के दौरान इस क्षेत्र में कुल 2.7 लाख से अधिक कार्मिकों की कमी दर्ज की गई है। 

मार्च 2013 में सीपीएसई में कर्मचारियों की संख्या 17.3 लाख थी, जो  मार्च 2022 तक 14.6 लाख रह गई। सरकारी कंपनियां कॉन्टेªक्ट पर कर्मचारियों से काम करा रही हैं। मार्च 2013 में 1.7 लाख कर्मचारियों में से 17 प्रतिशत कर्मचारी अनुबंध पर थे, जबकि 2.5 प्रतिशत कर्मचारी दैनिक वेतन वाले श्रमिकों के रूप में कार्यरत थे। जबकि सन् 2022 में कॉन्ट्रेक्ट पर काम करने वालों की संख्या में 36 प्रतिशत की बढ़त देखने को मिली है, वहीं दैनिक श्रमिकों की हिस्सेदारी बढ़कर 6.6 प्रतिशत हो गई है। 

इन कम्पनियों में कार्यरत 42.5 प्रतिशत कार्मिक अनुबंध या केजुअल श्रमिकों की श्रेणी में मार्च 2022 में आ गये जबकि मार्च 2013 में यह आंकड़ा  19 प्रतिशत था। 10 साल में बीएसएनएल में 181227, सेल में 61928, एमटीएनएल में 34997, स.ई. कोल में 29140, एफसीआई में 28063 तथा ओएनजीसी में 21120 कर्मचारी घटे। नोकरियोें में भर्ती बढ़ने के बजाए घटी। जहाँ 2013 में  17.3 लाख थी वही 2022 में 14.6 लाख रह गयी। 

जिन कंपनियों में हायरिंग पर नई भर्तियां की गई उनमें प्रमुख  इण्डियन ऑयल 79828, महानदी कोलफील्ड 36418, एनपीसीआई 212235 ,नार्दन कोलफील्ड 17674, एचपीसीएल 16422  सन् 2013 से 2022 तक निम्न प्रकार लाखों की संख्या में कर्मचारी घटे और कॉन्ट्रेक्ट वर्कर (संविदा कर्मी) बढे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2013 से 2022 तक क्रमशः वर्षवार कर्मचारी घटे 17.3, 16.9, 15.9, 15.2, 15.2, 14.7, 15.1, 14.7, 13.7 एवं 14.6 (संख्या लाखों में) संविदा कर्मी क्रमशः 19ण्0:ए 20ण्1ःए 18ण्6:ए 18ण्9:ए 25ण्8ःए 25ण्9ःए 31ण्8:ए 37ण्4ःए 37ण्2ः  एवं 42ण्5ः  बढ़े है।

सरकारी विभागों में विशेष कर रेलवे में लाखों पद खाली हैं और इस प्रकार नोकरियों की संख्या घटने से शिक्षित लड़कों में बेरोजगारी बढ़ रही है। बेरोजगारी साधारण पदों में ही नहीं बढ़ रही अपितु आरक्षित पदों में भी बढ़ी । लाखों की संख्या में सरकारी पद एवं उच्च शिक्षण संस्थाओं में लााखों पद खाली पडे हैं। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री द्वारा संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार 45 केन्द्रीय विश्व विद्यालयों  में 3874 पद खाली बताऐं गये हैं पूर्वोत्तर राज्यो में स्थिति और भी खराब है। ओबीसी शिक्षकों में 33.04 पद खाली थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग में सम्मलित कर दिया। आरक्षित वर्ग के मेरिटधारी उम्मीदवारों का सही मूल्यांकन निर्धारित नहीं किया और सदैव यह कहा गया कि आरक्षित वर्ग के योग्य उम्मीदवार नहीं हैं। 

1 जनवरी, 2022 को केन्द्र सरकार के 72 मंत्रालयों और विभागों में कार्यरत कर्मचारियों व अधिकारियों के विवरण के अनुसार 18.7 लाख         कुल कर्मचारियों की संख्या थी जिसमें अनुसूचित जाति के 17.9 प्रतिशत अनसूचित जनजाति के 7.68 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग के 22.11 प्रतिशत इनमें यदि ’’ग’’ वर्ग को छोड़ दिया जाए तो अनुसूचित जाति 13.1 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति 5.89 प्रतिशत है। दूसरी ओर ईडब्ल्यूसी सहित अनारक्षित वर्ग को कुल 62.81 प्रतिशत सीटें दी गई। इसी प्रकार की स्थितियाँ अधिनस्थ सेवा चयन आयोग में भी रही हैं। 

सरकार जातिगत जनगणना के लिए तैयार नहीं है यद्पि मोहन भागवत ने  कहा है कि जाति ब्राह्मणों की बनाई हुई है। जनगणना अगर होती है तो  क्षमता के आधार पर जनता को ताकत मिलेगी। बहुत से ऐसे तबके हैं जो सख्या के हिसाब से सामाजिक, श्ैाक्षणिक, आर्थिक क्षेत्र व राजनीति में अछूते रह गये उनको मौका मिलेगा और जो लोग चाहे वह किसी भी वर्ग में हो एकछत्र राज करते आ रहे हैं उनका डिमोशन होगा। 

सामाजिक न्याय की राजनीति में महिलाऐं भी बहुत पीछे रह गयी हैं। अभी छुआछूत भेद रहित समाज सेे हम दूर नहीं हो रहे हैं। सामाजिक न्याय से अनेक क्षेत्रों में लोग वंचित है। समाज का खण्डित चरित्र राजनीति में भी खण्डित परिलक्षित होता है। 

भू-मण्डलीकरण का असर ये रहा कि साम्प्रदायिकता को तो उसने समाविष्ट कर लिया। क्रोनिकेपिटलिज्म व कम्यूनिलिज्म को पूंजी का विस्तार चाहिए इसलिए श्रम कानूनों में परिवर्तन किया गया। आज चुनौति ये है कि  क्रोनिकेपिटलिज्म से लड़ें और साम्प्रदायिकता केे चेहरे से भी लडें। देश में नोकरियॉँ सरकारी महकमें में एवं औद्योगिक क्षेत्र में कम होती जा रही है और इसका असर यह हो रहा है कि चाहे आरिक्षत वर्ग हो या अनारक्षित बेरोजगारी सबमें बढ़ रही है। 

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा दी गई सूचना अनुसार गत वर्ष मार्च में देश के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 18924 पद स्वीकृत थे। इसमें 18.44 प्रतिशत पद ओबीसी के लिए थे। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री द्वारा संसद में दी गई सूचना अनुसार 45 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में 3874 पद खाली थे। एससी, एसटी, ओबीसी के लिए ऐसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर के आरक्षित पदों को 10 प्रतिशत से लेकर 17 प्रतिशत तक भरे जा सके। 

मार्च में इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में 69000 सहायक अध्यापक भर्ती में ओबीसी वर्ग के 15931 पदों के नुकसान के संबंध में फैसला सुनाया। फैसले से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आरक्षित वर्ग ओबीसी, एससी, एसटी के साथ अन्याय से संवैधानिक अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन किया गया। होरीजेंटल आरक्षण के नियम को भी सही रूप से लागू नहीं किया गया। 

परिवार कल्याण महानिदेशालय के नियंत्रणाधीन स्वास्थ्यकर्मीयों के 2912 पदों की भर्ती के लिए सीटों का आवंटन में एससी वर्ग के लिए 14.61 प्रतिशत, एसटी के लिए 4.56 प्रतिशत एवं ओबीसी के लिए 18 प्रतिशत सीटों को आवंटन किया गया। अनारक्षित वर्ग को 62.81 प्रतिशत सीटें दी गई। आयोग ने खाली सीटों को नहीं भरा। इस प्रकार संवैधानिक आरक्षण नहीं मिला। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)