आधुनिक भारत के निर्माता पं. जवाहर लाल नेहरू

 27 मई पुण्यतिथि पर विशेष 

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस.अधिकारी है 

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स्वतंत्रता संग्राम में प्रथम पंक्ति के योद्धा व स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू युग प्रवर्तक थे। उनका व्यक्तित्व एक मजबूत जीवंत व्यक्ति का आदर्श प्रस्तुत करता है। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन्होंने 26 जनवरी 1930 को स्वाधीनता का उद्घोष किया था तभी से 26 जनवरी भारत का राष्ट्रीय पर्व बन गया। जवाहर लाल नेहरू हृदय से भावुक, मस्तिष्क से परम विवेकशील एवं शरीर से पुरूषार्थी थे। उनके व्यक्तित्व में पूर्वी सभ्यता का उच्च आध्यात्म तथा पश्चिमी सभ्यता की वैज्ञानिकता का अभूतपूर्व सम्मीश्रण था। उन्होंने भारत में संसदीय लोकतंत्र की स्वस्थ एवं उच्च परम्पराओं को जन्म दिया। पंडित नेहरू व्यक्ति की गरिमा के साथ सामाजिक, आर्थिक विषमताओं को समाप्त कर भारत को एक स्वस्थ गतिशील समाजवादी देश के रूप में निर्मित करना चाहते थे। वे सच्चे अर्थो में मानवतावादी थे। वे चाहते थे कि भारत न केवल साम्राज्यवाद से मुक्त हो बल्कि रूढ़ीवादी व परम्परावादी जंजीरों से मुक्त हो। उन्होंने देश में लोकतंत्र व संसदीय प्रणाली को मजबूत किया।

पंडित नेहरू ने राष्ट्रवाद के प्रति आधुनिक दृष्टिकोण अपनाया जो व्यवहारिक एवं उपयोगितावादी था। उन्होंने बीसवीं शताब्दी में मानववाद की धारणा का विकास किया। उनका दृष्टिकोण लौकिकवादी व धर्मनिरपेक्षतावादी था। वे धर्मनिरपेक्ष राज्य की धारणा के प्रमुख समर्थक थे। वे ईश्वरवादी नहीं थे परन्तु धर्म विरोधी भी नहीं थे। आध्यात्मवादी नहीं थे लेकिन मानव की स्वतंत्रता में अटूट आस्था थी। मानवतावाद के प्रणेता महात्मा बुद्ध उनकी प्रेरणा के प्रतीक थे।

उन्होंने राष्ट्रवाद को वैज्ञानिक प्रवृति के साथ अन्तर्राष्ट्रवाद के साथ जोड़ने का प्रयत्न किया। नेहरू के अनुसार धर्म केवल वैयक्तिक शुद्धता का ही साधन नहीं है बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रभावशाली माध्यम है। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता व विकासात्मक दृष्टिकोण को अपनाया। हिन्दू संस्कृति के प्रति वे सजग थे परन्तु हिन्दू मुस्लिम एकता में भी पूर्ण रूचि रखते थे। उन्होंने शिक्षा को वैयक्तिक प्रगति तथा सामाजिक पुननिर्माण का माध्यम माना। उनकी दृष्टि में मूल समस्या व्यक्ति और समाज के बीच समन्वय नहीं होना था। 

नेहरू के अनुसार समाजवाद का क्षेत्र व्यापक है। गांधीवाद तथा मार्क्सवाद दोनों के प्रति प्रेम ने उनके सामाजिक आन्दोलन को एक आध्यात्मिक उदारवाद का माध्यम बना दिया जिससे प्रजातांत्रिक समाजवाद की स्थापना हुई। उन्होंने कहा था कि ‘‘गरीबी, बेरोजगारी व दासता का अन्त करने के लिए मुझे समाजवाद के सिवाय कोई मार्ग दिखाई नहीं देता।’’ इसके अन्तर्गत भूमि एवं उद्योगों के निजी हितों का अन्त व सामंतवादी निरंकुश व्यवस्था का उन्मूलन सम्मिलित था। वे रूस की उपलब्धियों से प्रभावित थे परन्तु उनका जनतंत्र में पूर्ण विश्वास था। वे हिंसा के विरूद्ध थे। 

नेहरू चाहते थे कि धर्म का उपयोग मानव उत्थान के लिए हो। उनके अनुसार धर्म का सार सत्यता, प्रेम तथा सद्गुणी चरित्र में समाहित है न किस अन्य के प्रति घृणा में देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समस्याओं के प्रति उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिकतावादी था। वे विश्व शांति के कट्टर समर्थक थे। वे गांधी की इस मान्यता को लेकर चले कि नियोजित लक्ष्यों की प्राप्ति नियोजित साधनों के द्वारा ही होनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि भारत में सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक लक्ष्यों की अनुभूति तभी संभव हो सकती है जब हम राष्ट्रीय आदर्श व दर्शन के प्रति आशावान रहते हुए समग्र व शांतिवादी दृष्टिकोण को अपनाये न कि नकारात्मक दृष्टिकोण को।

नेहरू उदारवादी थे। गांधीवाद और मार्क्सवाद के प्रति प्रेम ने समाजवादी आन्दोलन को एक आध्यात्मिक उदारवाद का माध्यम बनाया जिससे प्रजातांत्रिक समाजवाद में सिद्धांतों की स्थापना हुई। नियोजित विकास में सामाजिक सोच व पद्धति को अपनाया गया और साम्यवादी कार्य पद्धति में भी बहुत भारी परिवर्तन आया। प्रजातांत्रिक, धर्मनिरपेक्षतावादी व गैर सामंतवादी सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने के लिए सामाजिक, आर्थिक ओर राजनैतिक न्याय एवं कल्याण की अभिव्यक्ति हुई। 

नेहरू संकीर्ण राष्ट्रवाद से भारत को अशांत नहीं रखना चाहते थे और कहते थे कि आजादी का मतलब देश को बाकी दुनिया से अलग-थलग करने का नहीं है। नेहरू ने रूढ़ीवादी गुटों के विरोध के बावजूद मजदूरों तथा कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारण, पंच निर्णय द्वारा श्रम विवादों का निपटारा करवाने तथा बच्चों के कल्याण व सुधार संबंधी कई कानूनों को पास करवाया। उद्योगपतियों के विरोध के बावजूद 1948 में उद्योग क्षेत्र के लिए नई नीति की घोषणा की। अर्थ व्यवस्था में, सार्वजनिक क्षेत्र के निर्माण का ऐलान हुआ। रेल व शस्त्रास्तों का निर्माण करने वाले कारखाने राजकीय संपत्ति बने, रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया, सार्वजनिक क्षेत्र के साथ मिश्रित अर्थव्यवस्था के लिए निजी क्षेत्र में भी बड़े उद्योगों, धातुओं, ऊर्जा, रसायन उत्खनन आरि परिवहन जैसी बुनियादी सेवाओं पर नियंत्रण कायम किया। 

अमेरीकी दूतावास द्वारा भी नेहरू को कम्यूनिस्ट करार दिया गया परन्तु वे अपने लक्ष्य से नहीं डिगे। ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत कम समय में भारत ने लोकतांत्रिक व नियोजित तरीके से विश्व के प्रथम तीन उन्नत औद्योगिक व विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में अपना स्थान बना अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कर ली। उनकी प्रगतिशील, शांति की समर्थक विदेश नीति विश्व राजनीति की एक महत्वपूर्ण कारक बन गई। यह नेहरू की प्रगतिशील व नियोजित विकास की धर्मनिरपेक्षता व गुट निरपेक्षतावादी विदेश नीति के कारण ही संभव हुआ। 

सोवियत राष्ट्रपति वेजनेव ने कहा था कि ‘‘नेहरू मानवता, उदार हृदय और महानता की जीती जागती मूर्ति थे। स्वाधीनता और प्रगति उनकी आकांक्षा का साकार रूप था ओर इसी का स्वप्न उन्होंने देखा। इसके लिए उन्होंने अपना सारा जीवन अर्पित किया।’’ नेहरू व्यवहारिक आदर्शवादी कहे जाते है। देश के लिए बुनियादी महत्व रखने वाले सवालों पर अकेले ही फैसला नहीं लेते थे। उनकी विदेश नीति को घर के अन्दर और बाहर समर्थन मिला परन्तु वे इसका श्रेय खुद को नहीं देते थे। वे एक व्यक्ति की भूमिका बढ़ाकर आंकने का विरोध करने से नहीं कतराते थे। उन्होंने संसद में कहा था कि ‘‘हमारी नीतियों को नेहरू की नीति कहना कतई ठीक नहीं है, मैं उसका सिर्फ प्रवक्ता हूं, मैंने उसकी नींव नहीं रखी है, इसे हिन्दुस्तान के सभी देशवासियों की मिसाल और आज के अन्तर्राष्ट्रीय माहौल ने जन्म दिया है। मेरा इससे ताल्लुक यह है कि मैंने प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के तौर पर नुमाइंदगी की है।’’

नेहरू ने बड़े-बड़े कल-कारखानों, बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण को महत्व दिया। उनकी नियोजित विकास की अवधारणा ने भारत का कायाकल्प कर डाला। अ. गोरेव व जिम्पानिन के अनुसार ‘‘गांधी की हत्या के बाद नेहरू ने गहन आत्मविश्वास के साथ गांधी के जनवादी, देशभक्त, मानवतावादी और जन आन्दोलन के संगठनकर्ता का ध्वज थाम लिया है।’’ राजनीति के संबंध में  नेहरू का कथन था कि हमसे हर कोई बड़ी-बड़ी उम्मीदें रखता है लेकिन बदले में हम उसे कुछ नहीं देते है। हम उससे उतना ही पा सकते है जितना कि खुद उसे दे रहे है। हम खुद जैसे होंगे वैसे ही हिन्दुस्तान बनेगा। जैसे हमारे ख्याल और कार्य होंगे हिन्दुस्तान वैसे ही बनेगा। उन्होंने मिलजुलकर और डटकर काम करने का आव्हान किया था।

उनका मत था कि व्यक्ति की स्वतंत्रता और आजादी का अर्थ, वर्तमान असमानता को बनाये रखने के रूप में लिये जाने से कठिनाईयां और बढ़ेंगी तथा देश समानतावादी सामाजिक व आर्थिक विकास की गति को प्राप्त नहीं कर सकेगा। नेहरू समानता व समता के सिद्धांतों के प्रवर्तक थे। उनका स्पष्ट मत था कि ‘‘समानता का अर्थ समान लोगों के बीच समानता स्थापित करना असमानता को ही स्थिर करना है।’’

नेहरू ने क्षेत्रीयता, भाषावाद, जातिवाद, सांप्रदायवादी संकीर्णता से उपर उठकर राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत रहकर कार्य किया। उनके शब्दों में राष्ट्रवाद --प्रजातंत्र की अतीत की उपलब्धि, परम्पराओं और अनुभवों की सामूहिक स्मृति है।’’ उनकी दृष्टि में उग्र राष्ट्रवाद अन्तर्राष्ट्रीय शांति में हमेशा बाधक रहेगा। यदि वैयक्तिक स्वतंत्रता अथवा आजादी व विकास के लिए किसी प्रकार की अपील का अर्थ वर्तमान असमानताओं को बनाए रखने के रूप में लिया जायेगा तो आपकी कठिनाईयां और बढ़ जायेंगी, फिर आप स्थिर और प्रगतिहीन हो जायेंगे और आप न तो परिवर्तन कर सकेंगे और न आप एक समानतावादी समाज के आदर्श को प्राप्त कर सकेंगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)