कविता
लेखक : तिलकराज सक्सेना
जयपुर (राजस्थान)
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वो सारी दुनियाँ से अकेले अपने दम पर लड़ सकती है,
वो माँ है माँ अपने बच्चे के लिए, कुछ भी कर सकती है,
जान कर अकेला कोई गुस्ताख़ी न कर बैठना, उसके लाल से
वो अपने बच्चे के लिए किसी का खून भी कर सकती है,
वो माँ है माँ।
“अब दूसरा पहलू भी देखिए”
वो अपने आँचल के पर्दे में, अपने लाल की हर गलती छुपाती है,
उसकी हर जायज़ और नाजायज़ मांग पर सर अपना झुकाती है,
मोह में वो अंधी है, आँखों पर अंधी ममता की पट्टी है,
अपने लाल की बुराइयों में भी वो अच्छाइयाँ ढूंढा करती है,
माँ इसलिये अपने लाल को दुनियाँ में सबसे अच्छी लगती है,
काश प्यार और ममता के सही अर्थों को हर “माँ” समझपाती,
उपहार से ऊपर संस्कार के महत्व को समझपाती,
तो लाल के बड़े होने पर,वृद्धाश्रम में कोई माँ नहीं पाई जाती।