मैं संवेदना अभी जीवित हूं...

लघुकथा 

लेखिका : डॉ सुधा जगदीश गुप्त 

कटनी, मध्य प्रदेश 

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कौन कहता है कि मैं मर गई हूं। मुझे यह सुनकर बहुत दु:ख होता है, जो देखो वही कहता है कि मैं इस डिजिटल दुनिया में मर चुकी हूं। 

दिल्ली एम्स में कार्यरत कश्मीरी मुसलमान डॉक्टर कोरोना संक्रमित व्यक्ति का इलाज कर रहे थे, अचानक मरीज को हार्ट अटैक आ गया। डॉक्टर ने तुरंत अपना फेस मास्क उतारा और अपनी जान की परवाह ना करते हुए कोरोना पेशेंट के मुँह में अपने मुंँह से सांस में देने लगा। थोड़ी ही देर में मरीज की हार्टबीट्स ठीक हो गई। डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव हो गया। 

डॉक्टर के पिता को जब यह खबर लगी तो पिता ने कहा कि- यदि कोरोना से संक्रमित मेरे बेटे की मृत्यु हो भी जाती है तो मैं रोऊंगा नहीं क्योंकि मेरे बेटे ने अपना मानव धर्म निभाते हुए किसी को जीवनदान दिया है। यह सुनकर डॉक्टर ने भी राहत की सांस ली। 

यदि मैं मर चुकी होती तो क्या यह आपको देखने सुनने मिलता। मैं संवेदना अभी जीवित हूं दुनिया के कुछ दिलों में जो दुनिया को बचाए हुए है। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)