सामाजिक पुर्ननिर्माण के जनक ”राममोहन राय“

22 मई, जन्मतिथि पर विशेष 

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं 

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अठारवीं शताब्दी में भारत में सामाजिक जीवन जटिल प्रक्रिया में था। उन्नीसवीं शताब्दी में पुर्नजागरण की प्ररेणा से सामाजिक प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था तथा मुद्रणालयों की स्थापना ने वैज्ञानिक तथा जनतांत्रिक प्रक्रियाओं में अभिवृद्धि की। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव ने भारतीयों के मन में बौद्धिक परीक्षा की भावना जागृत की। परिणामतः सुधारवादी आन्दोलन प्रारम्भ हुए। सामाजिक जीवन में नवीनतम और प्रगतिशील विचारों का समावेश हुआ। सामाजिक एवं धार्मिक आन्दोलन प्रारम्भ हुये, जिन्होंने सामाजिक व्यवस्था के पुर्ननिर्माण पर जोर दिया तथा सुधारवाद के दर्शन ने राष्ट्रवाद की धारणा विकसित की। 

उन्नीसवीं शताब्दी के महत्वपूर्ण धार्मिक आन्दोलनों में ब्रह्म समाज, आर्य समाज, राधास्वामी समाज, फियोसाफिकल सोसायटी, रामकृष्ण मिशन आदि प्रमुख थे। इन आन्दोलनों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता व सामाजिक समानता पर बल दिया, सामाजिक राजनैतिक चिंतन को प्रभावित किया। सामाजिक नवचेतना के इस काल में राजा राममोहन राय आगे आये और ब्रह्म समाज की स्थापना की। 

राममोहन राय ने भारत की सामाजिक राजनैतिक आर्थिक स्थितियों के मध्य पाश्चात्य ज्ञान, उदार, वैधानिक एवं सामाजिक संस्थाओं और समाज नैतिकता को देखा। भारतीय समाज में व्याप्त बुराईयों को समाप्त कर स्वच्छ वातावरण स्थापित करने का निर्णय लिया। धार्मिक एवं सामाजिक सुधार को राजनैतिक प्रगति के लिए आवश्यक समझकर अन्याय एवं अनौचित्य का विरोध किया। 

हिन्दु समाज अपने धार्मिक कर्मकाण्डों एवं अंधविश्वासों से ग्रसित था। जातिगत भेदभावों ने देश भक्ति की भावना का लोप कर दिया था। सामाजिक नियमों ने उन्हें निकम्मा व डरपोक बना दिया। साहसिक कार्यो को हाथ में लेने के अयोग्य बना दिया था। रूढ़ीबद्ध व्यवस्था, छुआछूत, जातिपांति, निर्थक विचार, चमत्कारों में आस्था ने सामाजिक सुविधा व राजनैतिक प्रगति की राह से अलग कर दिया था। निकृष्ट कोटी के निषेद, निर्योग्यतायें, अपराधों को जन्म दे दिया था। 

राममोहन ने धर्म व समाज के रूढ़ीबद्ध ढांचे पर प्रहार किया, सती प्रथा, बहुपत्नि विवाह, बाल विवाह, की निन्दा की। विधवाओं के पुर्नविवाह पर बल दिया, समुद्र पार करने की यात्रा के निषेद को तोड़ा। राममोहन राय पैतृक पुरोहिताई एंव जाति व्यवस्था के कट्टर विरोधी थे, सामाजिक पुर्ननिर्माण चाहते थे। राममोहन राय प्रथम समाज सुधारक थे जिन्होंने जाति व्यवस्थाओं की सीमाओं को तोड़कर अर्न्तजातिय विवाहों को प्रोत्साहित किया। समाज में व्याप्त रूढ़ीवादी तत्वों से संघर्ष करते हुए, हिन्दु समाज में आवश्यक सुधार लाने का बिगुल बजाया। 

राममोहन राय ने एकता तथा समन्वय का संदेश दिया और क्षेत्रीय, प्रादेशिक, जातिए पृथकता से ऊपर उठने को प्रेरित किया। उन्होंने जाति व मानवता, अन्धविश्वास तथा विज्ञान, निरंकुशता व जनतंत्र, रीतिरिवाज व प्रगति बहुदेववाद व ईश्वर वाद के बीच बन चुकी खाई को पाटने का प्रयत्न किया। 

राय ने हिन्दु धर्म के मूल सिद्धान्तों का विरोध नहीं किया, उनका उद्देश्य निकृष्ट व्यवहार, पक्षपात, अन्ध विश्वास, निषेध व निर्योग्यतायें को बुद्धिवाद की अपील के माध्यम से मुक्त करना था। राय के विचारों में पाश्चात्य संस्कृति के उतम विचारों का सम्मिश्रण था। राममोहन राय जाति व्यवस्था को अजनतांत्रिक, अमानुषिक तथा राष्ट्र विरोधी मानते थे। राममोहन राय ने न्यायप्रियता एवं सामान्य जन के लाभ पर बल दिया। कानून के पालन व नैतिक सिद्धान्तों के अनुपालन, स्त्री पुरूष समान अधिकार, सुरक्षा व समानता, नागरिको के मौलिक अधिकारों पर जोर दिया। 

स्वतंत्रता के कट्टर समर्थक राय ने सामाजिक जीवन में सहिष्णुता के वातावरण को बनाये रखा। बाल विवाह, शिशु हत्या, अनिवार्य विधवापन, सत्ती प्रथा, जाति व छुआछूत, निरक्षता, शोषण जैसी सामाजिक बुराईयों का अन्त करने की जिम्मेदारी समाज के साथ सरकार पर डाली। इन सामाजिक बुराईयों को रोकने पर अत्यधिक बल दिया। निर्थक रीति रिवाजों के विरूद्ध बौद्धिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल दिया। परन्तु राममोहन राय भारत की प्रगति और समृद्धि के हित मे ंब्रिटिश शासन की निरन्तरता चाहते थे। 

राय ने भारत की सामाजिक प्रक्रिया में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। पाश्चात्य शिक्षा व विज्ञान को स्वीकार करते हुए सामाजिक एवं वैयक्तिक स्वतंत्रता पर बल दिया, जिसने परोक्ष रूप से राष्ट्रवाद की प्रगति मे योगदान दिया, अपने प्रहार को स्त्रियों के प्रति दुर्व्यवहार एवं विवाह सम्बन्धी रीति रिवाजों पर केन्द्रित किया। लोगों को स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अन्तर जातिए खान पान पर अनोपचित्यपूर्ण जातिए प्रतिबन्ध, विदेशी यात्राओं पर प्रतिबन्ध, मन्दिरों के प्रबन्ध में भ्रष्टाचार, धर्म द्वारा प्रेरित वैश्यावृति, निम्न जातियों के लोगों व अछूतों के प्रति अनैतिक व्यवहार, शिशु हत्या के प्रति सजग रहते हुए विरोध के लिए प्रेरित किया। 

राममोहन राय व ब्रह्म समाज के अन्य नेता पाश्चात्य संस्कृति, विज्ञान, एवं शिक्षा, से प्रभावित थे व भारत में संचालित करना चाहते थे साथ ही हिन्दु पारम्परिक आदर्शो व मूल्यों को भी परित्याग नहीं करना चाहते थे। इस प्रकार परम्परावाद व आधुनिकवाद के बीच संघर्ष के कारण उनकों पूर्ण सफलता नहीं मिली। सिद्धान्त में वे परिवर्तन के पक्ष में थे व्यवहार में परम्पराओं और मूल्यों को छोड़ना नहीं चाहते थे। वे सामाजिक नियतिवाद एवं ईश्वरवादी भाग्यवाद को नहीं छोड़ सकें परन्तु भारत की सामाजिक प्रक्रिया में उनके महत्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। 

ब्रह्म समाज व राय ने जाति के परित्याग, विधवा पुर्नविवाह, स्त्री शिक्षा प्रोत्साहन, बाल विवाह का अन्त करने में सराहनीय योगदान किया। समाज सुधार हेतु स्थापित प्रार्थना समाज, देव समाज आदि संस्थाओं मूल रूप से इन्हीं सिद्धान्तों पर चली। इन संस्थाओं ने वर्णाश्रम व्यवस्था केा स्वीकार नहीं किया तथा निस्वार्थ सामाजिक सम्बन्धों पर बल दिया। इन आन्दोलनों से सामाजिक नियतिवाद की शक्तियों के स्थान पर सामाजिक गत्यात्मवाद को समर्थन मिला। राममोहन राय का महत्वपूर्ण पहलू उनके सार्व भौमवाद, एकता व समन्वय के संदेश में मिलता है जिसने आदमी को क्षेत्रीय, प्रादेशिक, पृथकता, शत्रुता आदि की सीमाओं से ऊपर उठने के लिए प्रेरित किया तथा ऐसे समाज बनाने के लिए खड़ा किया, जिसका मूलाधार बुद्धि सहिष्णुता एवं सद्भावना हों। 

भारत में मौलिक समाज परिवर्तन तो नहीं हुआ परन्तु उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक चिन्तन को प्रभावित किया, व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा सामाजिक समानता पर बल दिया और राष्ट्रवाद का पक्ष लिया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)