आँध्रप्रदेश की अपनी राजधानी, अभी भी एक सपना ही

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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लगभग एक दशक पूर्व जब आंध्रप्रदेश का विभाजन हुआ और इसके एक हिस्से को अलग कर तेलंगाना बनाया गया, उस समय कहा गया था कि अविभाजित आँध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद तेलंगाना को मिलेगी। यह भी तय हुआ था कि जब तक आंध्रप्रदेश की अपनी राजधानी नहीं विकसित होती तब तक आँध्रप्रदेश की सरकार हैदराबाद से ही प्रशासनिक कामकाज चलायेगी। यही बात विधान सभा और हाईकोर्ट के लिए लागू होगी। 

विभाजन के समय राज्य में चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में तेलगु देशम पार्टी की सरकार थी। उस समय नायडू ने कहा था कि उनकी पार्टी की सरकार अधिक समय तक हैदराबाद से शासन नहीं चलाएगी तथा पांच वर्ष की भीतर राज्य की नई राजधानी का निर्माण हो जायेगा। अपने वायदे के अनुसार उन्होंने नई राजधानी के लिए विजयवाड़ा-गुंटूर क्षेत्र में नई राजधानी के रूप में अमरावती का चयन किया। नई राजधानी के निर्माण के लिए युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दिया गया। उनका लक्ष्य था कि राज्य में 2019 में होने वाले विधासभा चुनावों से पूर्व ही नई राजधानी का उद्घाटन हो जाये ताकि चुनावों में इसका लाभ पार्टी को मिल सके उन्हें उम्मीद थी कि नई राजधानी के निर्माण के लिए केंद्रीय सरकार आर्थिक रूप से सहायता करेगी। 

विश्व बैंक से भी क़र्ज़ लेने की कोष की जायेगी लेकिन कतिपय कारणों से ऐसा हो नहीं पाया। राजधानी के लिए जमीन का अधिग्रहण तेजी से हुआ किसानों को बाज़ार भाव से मुआवजा दिया गया। तेजी से नए प्रशासनिक और हाईकोर्ट के भवनों का निर्माण शुरू हुआ। बड़े अधिकारियों और अन्य सरकारी कर्मचारियों के लिए आवास भी बनने लगे। राज्य की नई राजधानी का इतना आकर्षण था कि बड़े स्तर पर निजी क्षेत्र भी सामने आया। बड़े बड़े माल तथा बहुमंजिला भवन भी बनने शुरू हो गये। इसके चलते इस क्षेत्र में जमीनों के भाव आसमान को छूने लगे। यहाँ के किसान जमीन बेच कर पहले लखपति बने बाद में कई तो करोड़पति तक बन गए। 

लेकिन 2019 के विधानसभा चुनावों में तेलगु देशम पार्टी सत्ता में नहीं आ सकी। जनता ने जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस को प्रचंड बहुमत से सत्ता की लगाम सौंप दी। आम मतदाता को लगा राज्य की नई सरकार पहले से भी अधिक तेजी से राजधानी का निर्माण करवाएगी। लेकिन हो नहीं सका। नए मुख्यमंत्री रेड्डी पद संभालते ही नई राजधानी के लिए चल रहे काम काज को रोक दिया। उन्होंने कहाँ कि उनकी सरकार नई राजधानी के निर्माण कार्यों की समीक्षा करेगी। पर कुछ दिनों के बाद ही उन्होंने घोषणा कि वे राज्य में शासन और सत्ता का विकेंद्रीकरण करेगे। राज्य की एक नहीं  बल्कि तीन राजधानियां होगी। राज्य विधान सभा में एक विधेयक लाया गया जिसमें अमरावती को राजधानी बनाने को निरस्त कर दिया तथा यह तय हुआ  कि राज्य की प्रशासनिक राजधानी विशाखापत्तनम होगी। अमरावती न्यायपालिका की राजधानी होगी। करनूल को राज्य की विधायिका की राजधानी   बनाए जाने का प्रस्ताव पेश किया गया। चूंकि उनकी पार्टी के पास प्रचंड बहुमत था इसलिए इस आशय के विधेयक विधान सभा से पार्टी हो गए। 

तीन राजधानियों के कानून के बनते ही एक साथ कई याचिकाएं आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में दाखिल की गई। इन पर सुनवाई अधिक लम्बी नहीं चली। अदालत ने तीन राजधानियों वाले कानून को निरस्त कर दिया। कोर्ट का कहना था कि चूँकि अमरावती को राजधानी के रूप में विकसित करने का काम काफी आगे बढ़   चुका है इसलिए इस योजना को रोकने का कोई औचित्य नहीं है। जैसा अपेक्षित था राज्य की नई सरकार ने हाई कोर्ट के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में   चुनौती दी जहाँ अभी इस पर सुनवाई चल रही है। सुनवाई की अगली तारीख 11 जुलाई है। इससे पहले वाईएसआर कांग्रेस के कुछ नेताओं ने हाईकोर्ट के फैसले पर कड़ी टिप्पणियाँ की थी। यहाँ तक कहा गया कि अमरावती इलाके की जमीनों में कोर्ट के कुछ जजों ने निहित स्वार्थ है इसलिए ही वे नहीं चाहते कि   राज्य की राजधानी कहीं और जाये। 

हालांकि मामला सर्वोच्च न्यायालय में  लंबित है फिर भी मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी बीच-बीच में कहते रहते है कि उनकी सरकार का प्रशासन जल्दी ही विशाखापत्तनम से शुरू जायेगा। लेकिन फ़िलहाल ऐसा होता नहीं दिखता। उधर अमरावती में सभी काम रुके पड़े है। जिन माल और बहुमंजिला भवनों पर काम तेजी से चल रहा था वहां सब गतिविधियाँ बंद पडी हैं। जमीनों के दाम अर्श से फर्श पर आ गए है। जिन निजी कम्पनियों ने यहाँ बड़ा निवेश किया था  उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे कहाँ जाएँ। जो परिस्थितियां अभी चल रही उसको देखते हुए राज्य की नई राजधानी का सपना निकट भविष्य में पूरा होता  नहीं दिखता। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)