जीवन दर्शन : रश्मि अग्रवाल

लेखिका : रश्मि अग्रवाल

नजीबाबाद

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पूरे चाँद की रात, जब सागर की छाती में उतर जाती है तो अहसास की न जाने कैसी इंतहा उसके पानी में लहर-लहर होने लगती है। कुछ इसी तरह का अनुभव तब होता है जब राम से सीखना, कृष्ण को समझना, राधा तक पहुँचना और जानकी को आत्मसात् करने की इच्छा प्रबल होती है। तब अंतर्मन में जाने कितना कुछ भीगने और छलकने लगता है। एक सरसराहट पैदा होती है, जब बहती हुई पवन पेड़ के पत्तों से गुज़रती है, तब हमारी चेतना का सोया हुआ बीज पनपने लगता है, फिर कितने ही रंगों का जो पुष्प खिलता है उसका कोई भी नाम हो सकता है और किसी भी संभावना का सेतु निर्मित हो सकता है क्योंकि जहाँ गति है, वहीं खोज है। मध्य में एक केन्द्र होगा जहाँ कोई गति न होगी। मगर हमारी परेशानी का कारण कि हम एक को पकड़ लेते हैं। अगर हम गति को पकड़ लेते हैं तो केन्द्र को भूल जाते हैं और प्रत्येक प्राणी के अंतस में एक केन्द्र भी है, उसी केन्द्र के ऊपर यह सारी गति है, जिसमें ईश्वर भी है और प्राणी भी। हमें दोनों के मध्य ऐसे पुल का निर्माण करना है जो जीवन की विषय परिस्थितियों में भी अड़िग रहकर जीने की कला सिखाता हो यही है जीवन दर्शन। (लेखिएक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)