याद तुम्हारी महक उठी....

एक गीत 

लेखिका : डॉ सुधा जगदीश गुप्त

कटनी, (मध्य प्रदेश)

www.daylife.page 

पृष्ठ पृष्ठ जीवन किताब के पलट -पलट हिय चहक उठी 

पारिजात के फूलों जैसी, याद तुम्हारी महक उठी। 

वह पूनम का चांद चांदनी देख तुम्हारा मुस्काना 

बादल बरखा सावन झूला झूल अलक फिर झटकाना                        

सदियां बीत गई तेरे बिन, आज याद क्यों लहंक उठी। 

लाख मनाया चंदा चोरी चोरी से अब ना आना

दिल दरवाजे बंद कर लिए, मन खिड़की से ना आना, 

पलक बंद कर सोई तो फिर, मन की टुईयां टहंक उठी...

खत निकालकर फिर लगी बांचने अक्षर-अक्षर छू-छू कर 

स्पर्श तुम्हारा अंतरतम को लगा जलाने धू-धू कर 

शीत लहर है एकाकी मैं अंगारों सी दहक उठी 

पारिजात के फूलों जैसी याद तुम्हारी महक उठी....