कर्नाटक चुनाव में अब दूध, दही राजनीतिक मुद्दे

लेखक : लोकपाल सेठी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं

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कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए औपचारिक रूप से चुनाव अभियान आरंभ होने से पहले, राज्य में दूध और दही की राजनीति शुरू हो गई है। राज्य के तीनों राजनीतिक बड़े दल–सत्तारूढ़ बीजेपी, कांग्रेस और जनता दल (स) राज्य में दूध और दही के विपणन को लेकर एक दूसरे के सामने आ गए है। अगर इस मुद्दे को लेकर कोई हल नहीं निकला तो अन्य मुद्दों के साथ साथ दूध, दही भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है।

देश के सभी भागों में गर्मी के शुरुआती महीनों में सामान्य तौर पर दूध और इसके उत्पादों की कुछ कमी हो जाती है, इसमें दही और देसी घी प्रमुख है। इस अवधि के दौरान पशुधन से मिलने वाले दूध में कमी आती है जो मानसून की वर्षा आने तक किसी ने किसी तरह बनी रहती है। ऐसा ही कर्नाटक, जहाँ राज्य विधान सभा के चुनावों के लिए मतदान 10 मई को होना है, में हुआ। 

राज्य में डेढ़ दर्जन सहकारी दूध संगठनों के जरिये दूध, दही, घी तथा अन्य उत्पादों की पूर्ती होती है। इन सब ने मिलकर राज्य स्तर पर कर्नाटक मिल्क फेडरेशन का गठन किया हुआ है जो दूध उत्पादकों की हितों का संरक्षण करता है। यही संगठन दूध उत्पादकों से खरीदे जाने वाले दूध की कीमते निर्धारित करता है। राज्य भर में इसके द्वारा चलाये जाने वाले मिल्क बूथों पर बेचे जाने वाले खुदरा दूध दही, घी तथा कई अन्य उत्पादों के मूल्यों को तय करता है। इन सबका नंदिनी ब्रांड नाम के नीचे विपणन होता है। 

फेडरेशन के अनुसार, जनवरी में राज्य में  सामान्य तौर लगभग 90 लाख लीटर दूध का संग्रहण किया जा रहा था। इसी से दही और देसी घी सहित कई अन्य उत्पाद तैयार किये जाते है। आंकड़ों का अनुसार दही का उत्पादन 10 लीटर तथा घी का उत्पादन 18,00 टन हो रहा था। ये साल के शुरू के यानि जनवरी के आकंडे है। मार्च में इनके उत्पादन में कमी आनी शुरू हुई दूध का संग्रहण घटकर 72लाख लीटर रह गया तथा दही और देसी घी का संग्रहण घट कर लगभग  आधा ही हो गया। इसी किल्लत के समय देश के सबसे बड़े दूध ब्रांड अमूल ने राज्य में दूध, दही और घी बेचने की घोषणा कर दी। कर्नाटक मिल्क फेडरेशन ने इसका डट कर विरोध किया। इसका कहना था कि कर्नाटक एक मिल्क सरप्लस राज्य है तथा अमूल की तुलना में कही अधिक सस्ता दूध तथा इसके उत्पाद    बेचता है। फेडरेशन के नेताओं का कहना था कि अगर अमूल बड़े स्तर पर राज्य में विपणन आरभ करता है तो इससे राज्य के दूध उत्पादकों की हितों पर  असर पड़ेगा। सच्चाई यह भी है कि अमूल पिछले कई सालों से राज्य के गोवा और महाराष्ट्र से सटे इलाकों बेलगवी और हुब्बली में दूध, दही जैसे उत्पादों की बिक्री करता आ रहा है। यह बिक्री बहुत ही कम है। राज्य के राजधानी बंगलुरु और इसके सटे इलाकों में में कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के दूध की बिक्री लगभग 33 लाख लीटर प्रति दिन है, वही दही की बिक्री रोजाना लगभग 3 लाख लीटर है। प्रदेश में वर्तमान दूध के संकट का लाभ उठा कर अमूल यहाँ की दूध बिक्री के एक बड़े भाग को अपने हाथ में कर लेना चाहता है। 

इस घोषणा के साथ ही राज्य में दूध दही की राजनीति शुरू हो गयी। राज्य के दो बड़े दल कांग्रेस और जनता दल (स) के नेताओं को लगा के वे इस मुद्दे को  चुनावों में भुना सकते है। उन्होंने सरकार पर हल्ला बोलते हुए आरोप लगाया कि सरकार राज्य की मिल्क फेडरेशन के नंदिनी नाम के ब्रांड को खत्म करने पर तुली हुई है। बीजेपी इस मुद्दे पर राज्य के दूध उत्पादों के हितों पर कुठाराघात कर रही है। उधर बीजेपी के नेताओं का कहना है कि राज्य में पहले से ही अमूल के उत्पादों के बिक्री हो रही है तथा सरकार के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह अमूल को यहाँ आने से रोक सके। वर्तमान में अमूल देश के सभी भागो में अपने उत्पाद बेच रहा है। दूध और दही सीमित राज्यों में बेची जाती है। अपनी गुणवत्ता के चलते अमूल देश का एक बड़ा ब्रांड बन गया है। पिछले कुछ दिनों से राज्य में समाचार पत्रों अमूल बना नंदिनी के मुद्दे पर जंग सी छिड़ी हुई है। इसी बीच प्रदेश के होटलों के संगठनो ने कहा है कि वे अमूल की बजाये राज्य के ब्रांड नंदिनी का उत्पादों को ही प्राथमिकता देंगे। 

इसी बीच कर्नाटक मिल्क फेडरेशन ने कहा है कि वे इस मुद्दे को राष्ट्रीय दूध बोर्ड के साथ उठाएगी ताकि राज्य के दूध उत्पादकों के हितों को नुकसान नहीं हो।  राजनीतिक क्षेत्रों में यह कहा जा रहा है कि अगर यह विवाद जल्दी ही हल नहीं हो सका तो विधान सभा चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)