वो पानी किस काम का जिसे पीकर प्यास ही ना बुझे

लेखक : तिलकराज सक्सेना 

जयपुर 

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वो आग किस काम की जो हमें जलाकर ख़ाक करदे,

आग हो तो ऐसी हो, जो तपा कर हमें सोना करदे । 


वो पानी किस काम का जिसे पीकर प्यास ही ना बुझे, 

पानी हो तो ऐसा हो जो तन-मन तृप्त और शीतल करदे। 


वो हवाएं किस काम की जो हमें अंधकार में उदा ले जाये,

हवाएं हो तो ऐसी हों जिनके झोंके मन को प्रसन्न करदें। 


वो धरती किस काम की जो हमारी ही कब्र खोद हमें ही दफना दे,

धरती हो तो ऐसी हो जो अंकुरित करने के साथ हमारी जड़ें मजबूत करदे।

  

वो आकाश किस काम का जो हमारी बुलंदी का मार्ग अवरुद्ध करदे,

आकाश हो तो ऐसा हो जो हमारी बुलंदी की राह प्रशस्त करदे।