महिला शिक्षा प्रेरक ज्योतिराव फुले :डाॅ. सत्यनारायण सिंह

जन्मदिन पर विशेष

लेखक : डाॅ. सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं 

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19 वीं शताब्दी में, अग्रेजी शासनकाल में, जब संपूर्ण देश में जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता, संकीर्णता, रूढ़ीवादिता, अशिक्षा, किसानों पर जमीदारों के अत्याचार, सामाजिक व आर्थिक असमानता व्याप्त थी। अत्याचारों, निषेधों व निर्योग्यताओं तथा विषमताओं को दूर करने का किसी में हौसला नहीं था। विरोध में खड़े होने को कोई तैयार नहीं था उस समय में महात्मा ज्योतिराव फुले ने समग्र क्रांति का शंख फूंका।

महात्मा फुले ने कहा था ‘‘मनुष्य जाति से नहीं, कर्म से श्रेष्ठ बनता है।’’ उन्होंने कई अहम् प्रश्न उठाये थे। ‘‘महिला बच्चा पैदा कर सकती है, उसे दूध पिलाकर बड़ा कर सकती है परन्तु अपवित्र है, पढ़ नहीं सकती, उसे जबरन चिता में धकेल दिया जाता है। शूद्र कहलाने वाला मजदूर मंदिर बना सकता है परन्तु उसमें बैठे भगवान के दर्शन नहीं कर सकता।’’ उन्होंने धर्म परिवर्तन नहीं किया, न ही उसकी वकालात की। उन्होंने लोगों से प्रश्न किया था कि जाति प्रथा को कैसे समाप्त किया जाय? उपजातियों को कैसे समाप्त किया जाय? कैसे जीवन के ऐसे नियमों को समाप्त कर दिया जाये जो भेदभाव पैदा करते है।

महात्मा फुले जाति, धर्म संप्रदाय के नाम पर होने वाले भेदभाव के प्रबल विरोधी थे। उन्होंने जोर दिया कि शिक्षा पुरूष एवं नारी दोनों के लिए समान रूप से आवश्यक है। धर्म का उद्देश्य मानवता की सेवा करना है। उन्होंने बालिका विद्यालय की स्थापना की, अपनी धर्मपत्नी को पहली अध्यापिका बनाया। उन्होंने गरीब, मजदूर, पिछड़े लोगों को संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

ज्योतिराव फुले ने वर्ण एवं जाति भेद पर आधारित व्यवस्था को अतार्किक मानते हुए परंपरागत सामाजिक व्यवस्था को बदलने, अंधविश्वास, आडंबर, पाखंडों को समाप्त करने, स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए शिक्षा के बंद दरवाजे खुलवाने, अमानवीय कुप्रथाओं को समाप्त करने, मिल मजदूरों व किसानों को मिल मालिकों, जमींदारों व जागीरदारों के शोषण से मुक्त कराने, आदिवासी, दलित, पिछड़े, भूमिहीन मजदूरों तथा महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने हेतु सफल संघर्ष किया। उनके विचार व कार्यो से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने उनको महात्मा व अंबेडकर नेे प्रमुख सामाजिक, आर्थिक चिंतक व समाज सुधारक की संज्ञा दी।

आज राजस्थान में ही नहीं उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार जैसे बड़े राज्यों में महात्मा फुले को डा. भीमराव अम्बेडकर के अग्रज व गुरू के रूप में माना जाता है। देश की प्रथम अध्यापिका उनकी धर्मपत्नी सावित्री बाई का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है।

ज्योतिराव फुले ने समाज-नीति, राजनीति, अर्थ-नीति, धर्म-नीति, शिक्षा, स्त्री-पुरूष समानता, सामाजिक न्याय के क्षेत्र में नये विचार, नई अनुभूति, नई प्रेरणा व नये मूल्यों को स्थापित किया। शिक्षा के क्षेत्र में शक्तिशाली आन्दोलन खडा किया। महिलाओं, शूद्रों, अतिशूद्रों के लिए विद्यालय स्थापित कर मानसिक एवं सामाजिक गुलामी से उनको मुक्त करने हेतु संघर्ष किया व जन-जन को प्रेरित किया। इसके लिए उन्होंने अत्याचार सहे, लोगों से अपमानित होना पड़ा परन्तु वे अपने मार्ग पर चलते रहे। उन्होंने बाल विवाह का विरोध किया। विधवा विवाह व अंतरजातीय विवाह करने को प्रेरित किया। उनको घरबार तक छोड़ना पड़ा परन्तु वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए।

महात्मा फुले ने किसानों को भूस्वामियों के अत्याचारों से लड़ने व उनको शोषण से मुक्त करने हेतु संघर्ष किया। भ्रष्टाचार, सरकारी कर्मचारियों/अधिकारियों व भूस्वामियों के आपसी गठजोड़ का पर्दाफाश किया। शोषण की मुक्ति के लिए शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। जाति बंधनों को समाप्त कराने में उनको अपमान सहन करना पड़ा परन्तु उनके दिमाग में मानव कल्याण व मानव सेवा का जज्बा था। उन्होंने निषेधों व पाबंदियों को तोड़ा। उस समय अस्पृश्यों को पीठ पर झाडू, गले में थूकने का बर्तन व घंटी, सिर पर मोर पंख लगाकर चलना पड़ता था।

उन्होंने कट्टरपंथी परम्पराओं को तोड़ने हेतु संघर्ष किया। उन्होंने सामाजिक व्यवस्था व बुराईयों को दूर करने के लिए सर्वाधिक जोर शिक्षा, विशेषकर महिला शिक्षा पर दिया। उन्होंने कहा था ‘‘शिक्षा के अभाव में बुद्धि गई, बुद्धि के अभाव में नीति गई, नीति के अभाव में गति गई, गति के अभाव में धन गया, धन के अभाव में शूद्र हताश हुए और गुलाम होकर रह गये।’’ महात्मा गांधी ने येवरदा जेल से महात्मा फुले को अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था कि ‘‘फुले एक बड़े सामाजिक आन्दोलन के अग्रदूत थे, उन्होंने शूद्रों को शिक्षा रूपी कवच दिया, उनकी मानसिक दासता पर बड़ा प्रहार किया। उनके क्रांतिकारी विचारों से पक्षपात व शोषण को समाप्त करने का मार्ग खुला। ९लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)