स्थानीय पारंपरिक तौर-तरीकों पर अमल की जरूरत : पद्मश्री लक्षमण सिंह


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नई दिल्ली। पृथ्वी दिवस के अवसर पर नयी दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय मार्ग स्थित मालवीय स्मृति भवन के सभागार में नव प्रभात जन सेवा संस्थान द्वारा आयोजित सम्मेलन का उदघाटन करते हुए पद्मश्री राजा लक्ष्मण सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपनी परंपराओं-मान्यताओं और अपने पुरखों के बताये मार्ग का अनुसरण करें। उन्होंने कहा कि इनको बिसारने का दुष्परिणाम हम देख चुके हैं और आज भी उसकी भारी कीमत चुका रहे हैं। पृथ्वी पर आये भयावह संकट का एक अहम कारण यह भी है। जहां तक जल संकट का सवाल है, इसकी भयावहता को हम समझ नहीं रहे हैं। केपटाउन की घटना आसन्न भीषण जल संकट की ओर संकेत कर रही है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि हम अपने जल स्रोतों की रक्षा करें, पानी के संचय के तौर तरीका पर विचार करें। लक्ष्मण सिंह ने गोचर और चौका प्रणाली का उदाहरण देते हुए बताया कि वह चाहे कृषि हो, जल संचय का मामला हो या फिर जीवन जीने के तरीके, यहां तक कि अपने व्यवसाय के तरीके, उसमें हमें पारंपरिक और स्थानीय तौर-तरीकों को अपनाने में प्रमुखता देनी होगी, तभी हम अपनी धरती पर आये संकट से मुक्ति पाने में सफल हो सकते हैं।

सम्मेलन की शुरूआत मां भारती के चित्र पर मुख्य अतिथि राजा लक्ष्मण सिंह, विशिष्ट अतिथि प्रमुख समाजसेवी वेद प्रकाश गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक अतुल्य प्रभाकर, उप जिलाधिकारी बिजनौर मांगे राम चौहान, दूरदर्शन के पूर्व निदेशक अमरनाथ अमर, इंडिया न्यूज उत्तराखंड के प्रमुख अरविंद चतुर्वेदी, संस्थान की प्रमुख श्रीमती सुमन द्विवेदी, सचिव राजकुमार दुबे व समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत द्वारा पुष्पांजलि अर्पण के साथ हुयी। प्रारंभ में संस्थान के क्रियाकलापों व गतिविधियों की जानकारी संस्थान के सचिव राज कुमार दुबे ने विस्तार में दी और उसके उपरांत श्रीमती शैली अग्रवाल के संयोजन में उड़ते पंख नामक संस्था के नौनिहालों द्वारा पर्यावरण रक्षा जागरूकता सम्बन्धी नाट्य प्रस्तुति ने सभी उपस्थित जनों का मन मोह लिया। 

इसके उपरांत बांदा से आये जल योद्धा रामबाबू तिवारी ने जहां तालाबों के पुनर्जीवन अभियान के दौरान आयी दुश्वारियों को बताया, वहीं वन्य जीव संरक्षण अभियान से जुडी़ं कुमारी राधिका भगत ने वन्य जीवों और जैव विविधता के संकट का सिलसिलेवार खुलासा किया। 

उप जिलाधिकारी बिजनौर मांगेराम चौहान ने अपने वक्तव्य में अपने कार्यकाल में पर्यावरण संरक्षण व वृक्षारोपण के तौर-तरीकों पर प्रकाश डाला।  वहीं उन्होंने पर्यावरण संरक्षण जागरूकता कार्यक्रम को परिवार योजना का अंग बनाये जाने की जरूरत पर बल दिया। ग्लोबल इरा यूनिवर्सिटी देहरादून की प्रोफेसर और प्लास्टिक विरोधी अभियान से जुडी़ डा. अनुभा पुंढीर ने कहा कि वर्तमान में प्लास्टिक से प्राणी मात्र ही नहीं समुद्री जीवन भी इतना प्रभावित है जिसकी भयावहता को हम समझ नहीं पा रहे हैं। यह कहना कि सारी धरती मेरा परिवार है, यह मात्र शब्द वाक्य बनकर रह गया है। इसका समाधान प्लास्टिक पर पूर्ण नियंत्रण और अपने दैनंदिन जीवन में सादगी, पारंपरिक विधियों के अपनाने से ही संभव है। अपने सम्बोधन में अलवर से आये एलपीएस विकास संस्थान के राम भरोस मीणा ने जीवन में वृक्षों की महत्ता पर प्रकाश डाला और कहा कि कोरोना काल से हम आक्सीजन की महत्ता भली भांति समझ चुके हैं फिर भी बेरहमी से वृक्षों का विनाश करने पर तुले हैं। अब भी समय है पेड़ों की महत्ता समझें और इनकी रक्षा करो। 

वेद प्रकाश गुप्ता ने अपने संबोधन में जहां वर्तमान समस्याओं की जड़ प्रकृति , सनातन परंपराओं,संस्कार और पारंपरिक ज्ञान की महत्ता को नजरंदाज किये जाना बताया, वहीं अतुल्य प्रभाकर ने प्रेम का विशद वर्णन करते हुए कहा कि प्रेम से परे कुछ भी संभव नहीं। प्रेम के चलते जीवन में शांति, सफलता सभी कुछ अर्जित की जा सकती है। सम्मेलन में संजीव यादव, हरपाल सिंह राणा, चंदन सिंह नयाल, लाल सिंह चौहान, मनोज सती, जगदीश नेगी, विनय खरे आदि सभी प्रतिभागियों ने अपने विचार रखे और अपने कार्यों की जानकारी दी। 

अंत में अपने प्रमुख सम्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार एवं जल विशेषज्ञ अरुण तिवारी ने कहा कि वर्तमान में धरती की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण हमारा चारित्रिक पतन है। वह चाहे जल प्रदूषण का सवाल है, वायु प्रदूषण हो, समुद्री प्रदूषण हो, दैनंदिन जीवन में उपभोग का सवाल हो, आदि आदि सभी के पीछे हमारे चारित्रिक पतन की अहम भूमिका है।धरती पर दैनंदिन बढ़ रहा बोझ उसी का दुष्परिणाम है। असलियत में हम अपने जीने का तरीका कहें या सलीका, भूल चुके हैं जो हमारे समृद्ध जीवन का आधार था। हम यह नहीं सोचते कि संसाधन सीमित हैं लेकिन हम उनका अंधाधुंध उपयोग करते चले जा रहे हैं। और जब यह नहीं होंगे तब क्या होगा। उन्होंने व्यक्ति की बढ़ती जरूरतों और उसकी तादाद के बारे में सिलसिलेवार खुलासा करते हुए कहा कि इसलिए जरूरी है हम सादगी पूर्ण जीवन जीयें ताकि धरती पर दैनंदिन बढ़ता बोझ कम हो सके। पृथ्वी दिवस पर कम से कम इतना तो संकल्प ले ही सकते हैं। 

सम्मेलन में हरपाल सिंह राणा व संजीव यादव को बाबा आमटे स्मृति राष्ट्रीय सम्मान, मांगे राम चौहान, डा. अनुभा पुंढीर, कुमारी राधिका भगत, अरुण तिवारी, पुष्पेंद्र सिंह, डा. जितेंद्र नागर, डा. जगदीश चौधरी व पंकज चतुर्वेदी को अनुपम मिश्र स्मृति राष्ट्रीय सम्मान, पंकज मालवीय को  सुंदरलाल बहुगुणा स्मृति राष्ट्रीय सम्मान, रामबाबू तिवारी व संजय गुप्ता को सुंदरलाल बहुगुणा स्मृति पर्यावरण भूषण सम्मान, डा. प्रियंका कटारिया, कुमारी नेहा मेहता व कुमारी किंजल पाण्डया को अनुपम मिश्र स्मृति पर्यावरण गौरव सम्मान व चंदन नयाल, लाल सिंह चौहान, मनोज सती व जगदीश नेगी सुंदरलाल बहुगुणा स्मृति वृक्ष मित्र सम्मान से तथा 18 पर्यावरण योद्धाओं को पर्यावरण गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत ने कहा कि अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज धरती विनाश के कगार पर है। विडम्बना यह है कि हम सब इसके बावजूद सब कुछ जानते-समझते हुए भी मौन हैं। दुनिया के अध्ययन-शोध इस तथ्य के जीते-जागते सबूत हैं कि यदि धरती को बचाना है तो सभी देशों को पहले से ज्यादा गंभीरता और तेजी से कदम उठाने होंगे। कारण जलवायु परिवर्तन के चलते विनाश की घड़ी की टिक-टिक हमें यह बताने के लिए काफी है कि अब बहुत कुछ हो गया, अब हमें कुछ करना ही होगा अन्यथा बहुत देर हो जायेगी और उस दशा में हाथ मलते रहने के सिवा हमारे पास करने को कुछ नहीं होगा। उन्होंने आगे कहा कि हम यह कभी नहीं सोचते कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहे हैं और उसे किन हालात में छोड़कर जा रहे हैं। हम यह भी नहीं सोचते कि हम उसके सामने कैसी विषम परिस्थितियां खडी़ कर रहे हैं। इनका मुकाबला कर पाना हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए आसान नहीं होगा बल्कि वह बहुत ही दुष्कर होगा। क्योंकि मानवीय स्वार्थ ने पृथ्वी, प्रकृति और पर्यावरण पर जो दुष्प्रभाव डाला है, उससे पृथ्वी बची रह पायेगी, आज यह सर्वत्र चिंता का कारण बना हुआ है । शोध और अध्ययन सबूत हैं कि अभी तक छह बार धरती का विनाश हो चुका है और अब धरती एक बार फिर सामूहिक विनाश की ओर बढ़ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमने अपने स्वार्थ और सुख-सुविधाओं की अंधी चाहत के चलते धरती को कबाड़खाने में तबदील कर दिया है। 

यही नहीं आधुनिकीकरण के मोहपाश के बंधन के चलते दिनोंदिन बढ़ता तापमान, बेतहाशा हो रही प्रदूषण वृद्धि, पर्यावरण और ओजोन परत का बढ़ता ह्वास, प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन, ग्रीन हाउस गैसों का दुष्प्रभाव, तेजी से जहरीली और बंजर होती जा रही जमीन, वनस्पतियों की बढ़ती विषाक्तता आदि यह सब हमारी जीवनशैली में हो रहे बदलाव का भीषण दुष्परिणाम है। सच कहा जाये तो इसमें जनसंख्या वृद्धि के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। इसने पर्यावरण, प्रकृति और हमारी धरती के लिए भीषण खतरा पैदा कर दिया है।

असलियत में आज 52 फीसदी कृषि उत्पादन से जुडी़ भूमि विकृत हो चुकी है, 70 फीसदी जैविक नुकसान में खाद्य उत्पादन से जुडे़ कारक जिम्मेवार हैं। 28 फीसदी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए खाद्य प्रणाली जिम्मेवार है। 80 फीसदी वैश्विक वनों की कटाई के लिए हमारी कृषि जिम्मेवार है और 50 फीसदी मीठे पानी की प्रजातियों के नुकसान के लिए खाद्य उत्पादन से जुडे़ कारक जिम्मेवार हैं। यदि अब भी हम अपनी जैव विविधता को संरक्षित करने में नाकाम रहे और मानवीय गतिविधियां इसी तरह जारी रहीं तो मनुष्य का स्वास्थ्य तो प्रभावित होगा ही, विस्थापन बढे़गा, गरीब इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, तकरीब 85 फीसदी आद्र भूमि का खात्मा हो जायेगा, कीट-पतंगों के साथ बडे़ प्राणियों पर सबसे ज्यादा खतरा मंडराने लगेगा और प्राकृतिक संपदा में 40 फीसदी से ज्यादा की कमी आ जायेगी। इसलिए समय की मांग है कि हम अपनी जीवन शैली में बदलाव लाएं, प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करें, सुविधावाद को तिलांजलि दे बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाएं अन्यथा मानव सभ्यता बची रह पायेगी, इसकी आशा बेमानी होगी।

नव प्रभात जन सेवा संस्थान के अनुरोध पर देश के दूर-दराज इलाकों से आकर आप सभी पर्यावरण योद्धाओं जिन्होंने अपने अपने क्षेत्र में पर्यावरण रक्षा की दिशा में कीर्तिमान स्थापित किये हैं, ने इस सम्मेलन में सहभागिता की,इसे सफल बनाया, इस हेतु आप सभी बधाई के पात्र हैं। सम्मेलन के आयोजन हेतु संस्थान की अध्यक्ष श्रीमती सुमन द्विवेदी और सचिव राज कुमार दुबे ने जो अथक श्रम किया है और इतना सफल आयोजन किया, इसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाये, वह कम है। मुझे आशा है कि आप धरती मां की रक्षा की दिशा में कोई कोर कसर नहीं रखेंगे। भारत माता की जय। जय भारत, जय जगत।

सम्मेलन में मुख्य अतिथि पद्मश्री राजा लक्ष्मण सिंह जी व अध्यक्षता का दायित्व निर्वहन कर रहे पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत को विगत दशकों में उनके उल्लेखनीय योगदान हेतु राष्ट्र रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया।सम्मेलन के संचालन का दायित्व संस्थान की अध्यक्ष श्रीमती सुमन द्विवेदी व सुश्री राज कुमारी ने बखूबी निर्वहन किया तथा सुमन द्विवेदी ने अंत में सभी आगंतुकों का सम्मेलन में सहभागिता व सफल बनाने हेतु आभार व्यक्त किया।