ये कैसी आज़ादी...!

लेखक : तिलक राज सक्सेना

जयपुर।

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माना हर परिन्दे का हक़ है आज़ादी,

पर आज़ादी का अर्थ हमने ग़लत लगा लिया यारों।

अपनाना था शिक्षा, सदाचार और सद्भावना को,

हमने भृष्टाचार, दुराचार को गले लगा लिया यारों।

करनी थी जिन माँ-बहनों की रक्षा तन-मन से,

उन्हें ही अपनी कुदृष्टि का शिकार बना लिया यारों।

देश के लिए जो कुर्बान हुए उनकी कुर्बानी को भुला,

अपने मतलब ख़ातिर, ज़मीर अपना बेच दिया यारों।

(लेखक का निजी अध्ययन एवं अपने विचार है)