मानव सभ्यता बचाने के लिए सुविधावाद का खात्मा ज़रुरी

लेखक : राम भरोस मीणा 

प्रकृति प्रेमी एवं समाज विज्ञानी है।

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पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के साथ ही  स्वच्छता सुंदरता को ग्रहण लग गया, शुद्ध हवा पानी खत्म होने के कगार पर पहुंच गए, सुविधावाद पूंजीवाद ने प्रकृति तथा प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक मात्रा में विनाश किया नतिजा यह है कि मानव सभ्यता को बचाएं रखना बड़ा मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता जा रहा, समय रहते  मौजूद सम्पदा को आमजन द्वारा संरक्षण नहीं दिया गया तो पारिस्थितिकी अनुकूलता गड़बड़ाना स्वाभाविक है। पृथ्वी पर बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र के चलते हमारी जैव सम्पदा नष्ट होने की ओर चली जा रही ऐसे में हमारी प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा नहीं हो सकती वर्तमान में इसका प्रभाव मानव पर  दिखाई देने लगा है नकारा नहीं जा सकता। 

यह आम आदमी भी जानता है कि हमारी प्राकृतिक सम्पदा के साथ जैव सम्पदा खत्म हो जाएगी तब हमारे पास क्या बचेगा और यदि बचेगा तों प्राकृतिक आपदाएं, महामारी, शारीरिक व मानसिक बीमारियां, प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से बढ़ रहें पर्यावरणीय प्रदुषण का प्रभाव सभी जीव जंतुओं वनस्पतियों मानव स्वास्थ्य पर साफ़ दिखाई देने लगा है, वर्तमान में जिस तरह मानवीय गतिविधियों के साथ जो शोषण हो रहा है उससे 30 से 35 प्रतिशत सम्पदा नष्ट हो चुकीं जो आने वाले समय में इसी प्रकार से बढ़ते मानवीय दखलन से विनाश के साफ़ संकेत देती है।

पृथ्वी पर बिगड़ती पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति आम जन को जागरूक करने के साथ साथ प्राकृतिक गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए आम जन को तैयार होना होगा, जिससे हरा भरा वातावरण बनाएं रखा जा सके, 50 वर्ष पुर्व स्टाॅकहोम सम्मेलन का विषय "केवल एक पृथ्वी" था जो आज भी लागू होता है। 1970 से पहले पर्यावरण रक्षा के लिए कोई कानून या नियामक नहीं थे लेकिन आज ईपीए, स्वच्छ वायु अधिनियम, स्वच्छ जल अधिनियम, वन सुरक्षा अधिनियम जैसे सभी नियम कानून बने हैं लेकिन निजी स्वार्थ या कानून के लचीलेपन के चलते वायु की गुणवत्ता खत्म हो चुकीं, प्रदुषण माॅनिटरिंग स्टेशनों के एक्यूआइ के आंकड़े खतरनाक बनते जा रहे हैं, पीने योग्य स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं हो रहा, ग्रामीण व गरिबों की पहुंच से बहार होता जा रहा है रसायन घुले हुए हैं वहीं जल स्त्रोतों पर बढ़ते अतिक्रमणों से उनके अवशेष नष्ट होते जा रहे हैं, वन सम्पदा नष्ट हो रही है सामाजिक वानिकी के वन क्षेत्र मात्र क्षेत्र रह गये है। आस्ट्रेलिया के एक रिसर्च समुह की रिपोर्ट के तहत भारत के आधे राज्यों पर जलवायु परिवर्तन का ख़तरा मंडरा रहा है। जलवायु परिवर्तन ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी संकटों में डाला है।

धरती की स्वच्छता व सुंदरता के लिए वन वनस्पतियों का पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक है, इनसे भूमि में नमी बनतीं है वातावरण में आर्द्रता पैदा होती है स्वच्छ वायु प्राप्त होता है, प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने का काम करें नदियां जोहड़ तालाब झरनें अतिक्रमण मुक्त रखें जिससे भूगर्भीय जल स्तर को बढ़ावा मिले, वर्तमान विकास की परिभाषा बदलते हुए प्रकृतिप्रदत्त सभी संसाधनों को विनाश से बचाने के साथ स्वयं मानव को सुविधावादी सोच को बदलना होगा। पृथ्वी पर बढ़ती आपदाएं हम सब को समृद्ध जीवन बनाने के लिए हरित समृद्धि के लिए एक साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित करता है जो हमें प्रारम्भ करने का सही समय है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं उनके अपने निजी विचार है)