राजस्थान को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए : डा.सत्यनारायण सिंह

लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है 

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देशी राज्यों के विलीनीकरण से बना राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य हैं। राजस्थान का एक बड़ा भूभाग, पश्चिमी क्षेत्र, रेगिस्तान है, दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र का बड़ा भाग बलुआ पत्थरों से बना पठार है। प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियों से जूझते हुए कृषि प्रधान राजस्थान अपना आर्थिक परिदृश्य व अर्थव्यवस्था बदलने का प्रयास कर रहा है परन्तु केन्द्रीय स्तर पर मजबूत राजनैतिक आवाज नहीं होने के कारण राज्य में केन्द्र सरकार व अन्य बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा अपेक्षाकृत कम धन का विनियोग हुआ। जनसंख्या कम होने से संसद की सीटें कम हुई। निर्धारित सीटंे भी राजनैतिक द्वंदों में बंटती रहीं। संसद में जोरदार आवाज नहीं हो पाई। कोई भी ताकतवर केन्द्रीय नेता नहीं बन सका।  

राजस्थान में रेगिस्तानी भूभाग के अलावा पांच जिले आदिवासी बाहुल्य है। आठ जिलों का बड़ा भाग अविकसित दस्यु प्रभावित डांग क्षेत्र है। इन क्षेत्रों में अनूसचित जाति, जनजाति का बाहुल्य है। सामन्ती व्यवस्था के अन्तर्गत ये क्षेत्र विकास से वंचित रहे। जनप्रतिनिधियों की विकास के प्रति दिलचस्पी नहीं होने के कारण तथा पर्याप्त साधनों तथा प्रभावपूर्ण नियोजन के अभाव में आजादी के बाद भी विकास में पिछड़ते गये। जनसंख्या अन्य राज्यों की तुलना मंे तेजी से बढ़ी है। गरीबी की रेखा के नीचे रहने वालों की जनसंख्या का प्रतिशत अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक है, जो लगभग 25 प्रतिशत है। बेरोजगारी, निर्धनता, अशिक्षा व अज्ञानता मुख्यतया ग्रामीण बेरोजगारी विकराल रूप धारण किए हुए है। अशिक्षित व अकुशल क्षेत्र के बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है। 

खनिज सम्पदा की दृष्टि से राजस्थान एक महत्वपूर्ण राज्य है लेकिन पर्याप्त सुविधाओं व नवीन तकनीक के उपयोग के अभाव में विभिन्न खनिज भण्डारों का उपयोग नहीं हो रहा। खनिज उद्योगों में बहुत कम पूंजी विनियोजित हो सकी है। अन्य राज्यों की तुलना में प्रारम्भ से ही विद्युत शक्ति का अभाव है। राजस्थान औद्योगिक दृष्टि से अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ा रहा। रेगिस्तानी पहाड़ी व पथरीले भूभाग में परिवहन के साधनों का विकास नहीं हुआ। धनाभाव के कारण सामाजिक सेवाओं, शिक्षा, पेयजल, चिकित्सा, पोषाहार में अभाव रहा एवं वित्तीय कठिनाईयों के कारण पर्याप्त विकास नहीं हो पाया है।

केवल एक बारहमासी चम्बल नदी हैं। राजस्थान में 10से 125 सेंटीमीटर औसत वार्षिक वर्षा होती हैं और हर तीसरे वर्ष राज्य के बड़े भूभाग पर अकाल की छाया मंडराती रहती हैं। राजनैतिक कारणों व वर्तमान में राज्यों को दिए जाने वाले हिस्से सम्बन्धी नीतियों के कारण विशेष केन्द्रीय सहायता नहीं मिली। राजस्थान अन्य राज्यों के मुकाबले विकास में पिछड़ गया। केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के कारण सिंचाई व पेयजल हेतु भी विशेष सहायता नहीं मिली।

आज स्थिति यह है कि अनेक स्थानों पर पेयजल की कमी है। बिजली जरूरत से कहीं कम, साक्षरता के मामले में देशभर में बहुत पीछे, जनसंख्या वृद्धि में देश के राष्ट्रीय औषत से कहीं आगे, खेती पर अकाल और सूखे की प्रेत छाया, वन क्षेत्रों में लगातार होती चिन्ताजनक कमी, खनिज बनाम पर्यावरण का उलझा हुआ विवाद, प्रति व्यक्ति कर बोझ सामान्य से ज्यादा, मुद्रास्फीति बेरोजगारी, बेकारी, मंहगाई, असमानता यह चेहरा रहा राजस्थान का। 

संसाधनों की कमी, केन्द्र से मिलने वाली अपर्याप्त सहायता, और विकास कार्यो के लिए धनाभाव राज्य के आर्थिक-सामाजिक विकास के लिए किये जा रहे प्रयासों की तस्वीर को उज्जवल नहीं होने दे रहा।

राज्य की स्थापना के समय यहां पांच हजार किलोमीटर छोटी रेल लाइन थी। रेल लाइनों की कमी व छोटी रेल लाइन के कारण देश के ज्यादातर भाग से राज्य का सम्पर्क नहीं था,, अशोक गहलोत के अलावा राज्य का राजनीतिक नेतृत्व आवश्यकतानुसार बड़ी रेल लाइने लापाने में सफल नहीं हो सका। 

संसद सदस्यों की संख्या कम होने के कारण केन्द्र का राजनैतिक नेतृत्व इस राज्य के विकास को लेकर उदासीन रहा है। राज्य के विकास के वास्तविक अवरोधों को दूर कर विकास के एक बुनियादी ढांचे की कार्य योजना तैयार करने का कहीं कोई संकल्प नहीं दिखा, ठोस इच्छा शक्ति के साथ कोई सघन अभियान कभी चलाया ही नहीं गया।

राजस्थान की आबादी का करीब तीस प्रतिशत हिस्सा ऐसी ढाणियों (घरों का बहुत छोटा समूह) में रहता है जो गांवों से ही बहुत दूर बसी है। देश में प्रतिवर्ग किलोमीटर आबादी का घनत्व 257 था वहीं राजस्थान में यह केवल 129 रहा। इस विरल बसावट के कारण एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक बिजली, सड़क आदि आवश्यक सुविधाओं का विस्तार जहां काफी खर्चीला पड़ता है, वहीं इसमें जरूरत से ज्यादा समय भी लगता है। राज्य की बसावट का पैटर्न राज्य के विकास के मार्ग में खासा बड़ा रोड़ा रहा है। केन्द्रीय सरकार मौन साधे है। 

केन्द्र की यही उदासीनता सभी मोर्चो पर स्पष्ट दिखती है। राज्य की वार्षिक योजना को प्रारूपों में स्वीकार किया गया है कि राजस्थान को देश के कुल जल संसाधन का केवल एक प्रतिशत भाग मिलता है। राज्य के दो तिहाई हिस्सों में जलस्तर या तो बहुत नीचे है या फिर जल स्रोत बहुत दूर है या फिर उनका पानी पीने लायक नहीं है। इस विकट समस्या के स्थायी समाधान के कोई केन्द्रीय उपाय नहीं हुए।

शिक्षा, स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा के मोर्चे पर भी यही स्थिति है। साक्षरता के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले राजस्थान का आंकड़ा काफी पीछे है और देश भर में केवल बिहार से ही इस मामले में आगे है। लड़कियों की साक्षरता के मामले में तो स्थिति और भी खराब है। जहां लड़कियों का राष्ट्रीय साक्षरता औसत लगभग पचास प्रतिशत हैं, वहीं राजस्थान में यह उसका करीब आधा रहा है। राज्य में पुरूष साक्षरता भी राष्ट्रीय औसत के मुकाबले कम है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में महिला साक्षरता अत्यन्त कम है। अब भी राज्य के हजारों राजस्व गांवों और छोटी बसावटों में प्राथमिक विद्यालय नहीं है। प्राथमिक स्तर पर बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने वाले छात्रों का प्रतिषत अधिक है। इसके पीछे जहां एक कारण पर्याप्त शिक्षा सुविधाओं का न होना है और आम आदमी की आर्थिक तंगहाली भी है। बहुत से मामलों मं बच्चों की पढ़ाई इसलिए छुड़ा दी जाती है कि बच्चे किसी काम धन्धें में लगकर कुछ कमाई करें।

जनसंख्या नियंत्रण और बाल विवाह को निरूत्साहित करने के अब तक के कथित सरकारी अभियानों का आज तक सकारात्मक नतीजा सामने नहीं आ सका है। शिक्षा व स्वास्थ्य पर व्यय एवं अशोक गहलोत सरकार के प्रयासों के बावजूद स्थिति में कोई गुणात्मक अन्तर आने की बहुत आशा नहीं है। महिला विकास कार्यक्रमों की स्थिति दयनीय है। सामाजिक मोर्चे पर महिलाओं की स्थिति बदतर है। आबादी में महिलाओं का अनुपात लगातार गिर रहा है। 

आज भी राज्य की महत्वाकांक्षी सिंचाई व विद्युत परियोजनाएं जिस गति से चल रही है, इनके पूरा होने तक इनकी लागत इतनी बढ़ जायेगी कि विशेष वित्तीय सहायता के बिना पूरा नहीं हो सकेगी। सिंचाई च पेयजल के सीमित संसाधनों और विभिन्न क्षेत्रों में भूगभर्ग जलस्तर के निरन्तर नीचे जाने के कारण कृषि क्षेत्र के विस्तार की संभावनाएं अत्यन्त सीमित हो रही है। सिंचाई की सुविधा केवल 29 प्रतिशत कृषि जोत में ही उपलब्ध है। रिफाइनरी व ईआरसीपी परियोजना को केन्द्र की ओर से स्वीकृति व सहायता नहीं मिली है। अशोक गहलोत सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा हेतु सराहनीय कार्य किया है परन्तु केनद्रीय सहायता व सहयोग नहीं मिल रहा।

राजस्थान की सरकार राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर रही है परन्तु भाजपा की केन्द्रीय सरकार  प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक कारणों से पिछड़े राजस्थान राज्य के लिए, राजनैतिक कारणें से विशेष राज्य का दर्जा नहीं दे रही है। केन्द्र में इस राज्य के विकास का मुद्दा नहीं बनाया। यह प्रान्त के लिए अत्यन्त दर्दनाक हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)