कविता
लेखक : तिलकराज सक्सेना,
जयपुर।
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बयां दर्द किया जाता नहीं अब,
कुछ कहने से पहले “अल्फाज़”टूट जाते हैं।
“जुबाँ” से निकलने से पहले शब्द,
“अश्क़ों” के “सैलाब” मेंडूब जातेहैं।
लहू जो रिसता है ज़ख्म-ए-दिल से,
आँखों में उसके “निशां” नज़र आते हैं।
जो कहते थे कभी, बिन आपके खुशियां अधूरी हैं मेरी,
उन्हें आज़ सिवा मेरे, सब वफ़ादार, नज़रआतेहैं।