शिक्षा से ही बालिकाओं का सर्वांगीण विकास संभव : शबनम अजीज

सुनील जैन की रिपोर्ट 

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जयपुर। द गर्ल्स नॉट ब्राइड्स राजस्थान एलायंस ने अपने 5 सहयोगी संगठनों एवं हितधारकों की एक दिवसीय कार्यशाला शनिवार को राजधानी जयपुर स्थित एक होटल में आयोजित की गई। कार्यशाला में स्वैच्छिक संगठनों के प्रतिनिधि, किशोरी बालिकाएं व मीडियाकर्मियों सहित 45 सम्भागियों ने हिस्सा लिया। महिला जन अधिकार समिति प्रतिनिधि इन्दिरा पंचोली ने सभी का स्वागत करते हुए कहां कि गर्ल्स नॉट ब्राइड्स द्वारा एक अध्ययन "री-जॉइनिंग टू स्कूल्स आफ्टर कोविड-19 क्लोजर" शीर्षक से किया गया है। 

यह अध्ययन राजस्थान के 14 जिलों के 24 ब्लॉकों में आयोजित किया जा चुका है और इसका उद्देश्य लड़कियों की शिक्षा, विशेष रूप से माध्यमिक विद्यालयों (9वीं से 12वीं कक्षाओं) में लड़कियों पर महामारी के कारण स्कूल बंद होने के प्रभाव को मापा। पंचौली ने बालिकाओं का विद्यालयों में अनुपस्थिति होनें के दुष्परिणामों पर भी प्रकाश डाला। वहीं कल्प संस्थान के ओम प्रकाश कुलहरी उपाध्यक्ष द गर्ल्स नॉट ब्राइड्स ने बैठक का समन्वयन किया। शबनम अजीज-अध्यक्ष द गर्ल्स नॉट ब्राइड्स जो वर्तमान में एजुकेट गर्ल्स में सीनियर लीड जेंडर हैं, ने वर्तमान में राजस्थान में बाल विवाह की स्थिति को दर्शाते हुए बताया कि बाल विवाह की दर को कम करने के लिए शिक्षा ही सबसे बड़ा कारक हो सकता है। उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे शिक्षा के साथ जुड़ाव बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों में सकारात्मक बदलाव आएगा। 

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) से हमें इस बात की पुष्टि भी होती है,जब एनएफएचएस-4 में राजस्थान में स्कूली शिक्षा के 10 या अधिक वर्षों वाली महिलाएं 25.1 प्रतिशत थी, जब यहाँ की बाल-विवाह की दर 35.4 प्रतिशत थी, वहीं जब एनएफएचएस 5 में महिलाओं के शिक्षा का स्तर बढ़कर 33.4 प्रतिशत हुआ तो बाल विवाह की दर में अपेक्षित सुधार हुआ और वह गिरकर 25.4 प्रतिशत पर आ गई। शबनम अजीज ने बताया कि अध्यन का उदेश्य कोविड-19 के बाद बालिकाओं की शैक्षणिक स्थिति पर पड़े प्रभाव का आकलन करना था। उन्होंने बताया कि सर्वे में सामने आया कि लगभग एक चौथाई 26 प्रतिशत बालिकाएं कोविड के दौरान शिक्षा से छूट गई। शिक्षा के छूटने के मुख्य कारण, जो कि इस अध्ययन से निकल कर आए, उसमें शिक्षा में कम रूचि, विवाह और गृहकार्य का बढ़ जाना है। शिक्षा से छूट गई 94 प्रतिशत बालिकाओं ने यह भी कहा कि वे सीखने के अवसरों से वंचित हो गई है। 

लगभग आधी बालिकाएं, जो कि फिर से शिक्षा से जुड़ना चाहती हैं, उनका यह भी कहना है कि शिक्षा की मुख्यधारा में आने के लिए परिवारजन का सहयोग बहुत जरुरी होगा। साथ ही 15 प्रतिशत बालिकाओं की ये भी मांग है कि शिक्षा से पुनः जुंडने के लिए स्कॉलरशिप प्रदान की जाए। जो बालिकाएं शिक्षा के साथ निरंतर बनी रहीं, उनके जुड़ाव में शिक्षकों द्वारा होम विजिट्स ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। कार्यशाला में चर्चा के दौरान यह बात निकलकर आई कि जेंडर एवं समाज से जुड़े प्रचलित मानदंडों को बदलने के लिए नवाचार करना इस समय की महत्ती आवश्यकता है। शिव शिक्षा समिति के प्रतिनिधि शिवजीराम ने गांव और पंचायत स्तर पर बाल विवाह को रोकने के लिए उठाए गए आवश्यक कदम और प्रयासों की जानकारी दी। इस कार्यशाला में राज्य के सभी 33 जिलों में बालिकाओं के शिक्षा में जुड़ने की तत्काल आवश्यकता पर विशेषज्ञों और पत्रकारों ने चर्चा की। 

विभिन्न मीडिया के पत्रकारों ने भी विषय की गंभीरता को समझते हुए कहा कि बालिकाओं की शिक्षा में भागीदारी के बिना हम एक विकसित प्रदेश की परिकल्पना नहीं कर सकते। वर्तमान में कोविड-19 से उत्पन्न परिस्थितियों के चलते, बालिकाओं की शिक्षा पर होने वाले दुष्परिणामों को लम्बे समय तक देखा जाएगा। इसलिए इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। वहीं यह भी समझना महत्वपूर्ण है कि इसके लिए समुदायों के साथ समन्वित रूप से कार्य करने की आवश्यकता है। एसआरकेपीएस के प्रतिनिधि राजन चौधरी ने कार्यशाला में आभार प्रकट करते हुए कहा कि शिक्षा के अभाव में बालिकाओं के जीवन चक्र पर अनेक प्रतिकुल प्रभाव पड़ते हैं। चौधरी ने वर्तमान में कोविड-19 के दौरान आई कठिनाईयों और बढ़ती घटनाओं पर जमीनी अनुभवों को विस्तार से बताया। उन्होंने गरीबी व बाल विवाह की चुनौती के बीच आपसी संबंध पर भी प्रकाश डाला।