सांभर का ऐतिहासिक नंदीकेश्वर का मेला पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र

सांभर में धुलंडी के रोज निकाली गई सवारी का विहंगम दृश्य फाइल फोटो


शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील (जयपुर)। कई दशकों से धुलंडी के रोज निकलने वाली भगवान नंदीकेश्वर की सवारी लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। विगत कुछ वर्षों से मेले की प्रसिद्धि प्रदेश स्तर तक पहुंचने के कारण पर्यटकों का रुझान भी इस ओर बढ़ने लगा है। पर्यटन व कला संस्कृति विभाग की ओर से भी इसे प्रधानता दी गई है। मेले की भव्यता को लेकर इसके लिए खास इंतजाम भी किए गए हैं। सांभर में होने वाले तमाशे व नवमी को छोटे नंदकेश्वर की घेर के बाद यहां पर लोगों का उल्लास और  दोगुना हो जाता है  सांभर की सांस्कृतिक परंपरा का निर्वहन करते हुए यहां पर अनेक प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन को देखने के लिए भारी जनसैलाब उमड़ता है।   होली का जुनून यहां पर लोगों के सर इस कदर चढ़कर बोलता है कि बाहर रहने वाले लोग चाहे अन्य किसी पर्व पर यहां आए या ना आए लेकिन होली व धुलंडी के पर्व पर कभी आना नहीं भूलते हैं। सैकड़ों साल पुरानी परम्परा के तहत धुलंडी के दिन ढोल व चंग की थाप पर लावणियां गाते हुए भगवान नन्दीकेश्वर की सवारी पूरे हर्षोल्लास के साथ निकाली जाती है। 

जानकारों का कहना है कि यह परम्परा चौहान शासक गोगराज के समय से प्रारंभ होने का प्रमाण जयपुर में स्थित म्यूज़ियम में धरोवर के रूप में रखी गई हस्तलिखित पुस्तक चौहानो के राजवंश नामक पुस्तक में विस्तार से इसका वर्णन बताया गया है। भगवान नन्दीकेश्वर की सवारी पूरी रस्मो रिवाज के साथ पूजा अर्चना के बाद नन्दीकेश्वर सेवा समिति एवं प्रशासन व पुलिस प्रशासन की देखरेख में व्यवस्थित रूप से निकाली जाती हैं। नन्दीकेश्वर का रूप धारण करने वाले नंगे पांव ही सांभर में भ्रमण करते हैं। भगवान नन्दीकेश्वर की सवारी छोटे बाजार से रवाना होकर कस्बे के  सूर्यनारायण मन्दिर, छोटा बाजार, मालियों का चौक, किला, पीर का कुआ, हथाई, धानमण्डी, लम्बीगली, लालबाबा का अखाड़ा व हरदेव उस्ताद का अखाड़ा पर नन्दकेश्वर की सवारी के अलौकीक रूप के दर्शन तथा नृत्य देखकर जनसमूह अभिभूत हो जाता है। 

मेले की वापसी में छोटे बाजार में मेला विसर्जन से पूर्व का माहौल मस्तीभरा होता है, सवारी के साथ हजारों लोग ढोल, मंजीरे, झांझरे, चंग बजाते तथा लावणियां गाते, नाचते, विचित्र वेशभूषा में गुलाल उड़ाते चलते हैं व अलग - अलग टोलियों में होली के गीत गाते हुए नाचते हुए मेला की शोभा बढ़ाते है। स्थानीय नागरिको के साथ ही आस पास के ग्रामीण भी अपने अपने ढोल लेकर नाचते गाते मेले में शरीक होते हैं वहीं अनेक युवा, बुजुर्ग विचित्र मनमोहक रूप धारण कर झांकियों की प्रस्तुती से भरपूर मनोरंजन भी करते है। सांभर नगरी इस दिन विभिन्न रंगो की गुलाल से अटी रहती है। इस मेले में सभी वर्ग के लोग बिना भेदभाव के मिलजुलकर भाग लेते है तथा सामाजिक सौहार्द का परिचय देते है। सवारी को भगवान शंकर का रूप मानकर जगह जगह स्वागत सत्कार कर, लोग पूजा अर्चना कर आरती उतारते हैं, मनौतियां मांगते है।

सांभर नंदकेश्वर मेले में होते हैं अनेक कार्यक्रम : सांभर नंदकेश्वर मेले में रंग बिरंगे विभिन्न कार्यक्रम जिसमे भगवान नृसिंह व नीलकंठ महादेव की सवारी, छोटे नंदकेश्वेर की गैर, विभिन्न तमाशे, नटवा -नटवी लावणी संगम, फागोत्सव में फूलों की होली, विचित्र वेशभूषा में मनमोहक संजीव झांकियां, ढोल झांझीया दंगल प्रतियोगिता, फोटोग्राफी वीडियोग्राफी प्रतियोगिता, कलर शॉट, कलर ब्लास्टर, कलर स्मोक, कलर चकरी, फायर बैलून, रात्रि कालीन लाइटिंग और आतिशबाजी, सांस्कृतिक कार्यक्रम, ढोल और चंग की थाप पर भगवान नंदकेश्वर की सवारी, पुष्प वर्षा सहित विभिन्न रंग बिरंगे अद्भुत कार्यक्रम देशी विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।

पधारो म्हारे देश 'होली के रंग सांभर के संग' :

सांभर होली महोत्सव 5 से 7 मार्च में शामिल होने के लिए सांभर पहुंचने वाले सभी अतिथियों के लिए चाय नाश्ते, रहने खाने ठहरने की व्यवस्था, आवागमन व्यवस्था के साथ सांभर में नंकेश्वर मेले के सभी आकर्षण को दिखाने के साथ शाकंभरी माता दर्शन एवं भगवान श्री जागेश्वर नाथ, देवयानी सरोवर तथा अन्य देवस्थानों का भ्रमण कराया जाएगा। आने वाले मेहमानों को किसी प्रकार से परेशानी ना आए और नगरी से एक खास संदेश लेकर वह लौटे, इसके लिए भी व्यवस्था को अंजाम दिया गया है।