तेलंगाना और बीजेपी के चुनावी रणनीति

लेखक : लोकपाल सेठी

www.daylife.page 

दक्षिण के कर्नाटक प्रदेश में विधान सभा चुनाव अप्रैल मई में होने हैं। यहाँ सत्तारूढ़ बीजेपी ने एक साल पूर्व ही  चुनावों की तैयारी शुरू कर दी थी। ठीक इसी प्रकार कर्नाटक के पडोसी राज्य तेलंगाना में विधान सभा चुनाव इस साल के अंत में होने है लेकिन बीजेपी ने इस राज्य में अपनी तैयारी पिछले दिसम्बर में ही शुरू कर दी थी। पार्टी के नेताओं को पूरा आत्मविश्वास है कि कर्नाटक में इस बार पार्टी फिर चुनाव जीतेगी। इसका सीधा असर तेलंगाना के विधान सभा चुनावो पर पड़ेगा। वैसे भी पार्टी के रणनीति के अनुसार कर्नाटक में चुनाव होने के बाद पार्टी अपनी सारी ताकत तेलंगाना में झोंक देगी। 

तेलंगाना में पिछले विधान सभा एक तरफ़ा थे। उस समय वहां सत्तारूढ़ दल तेलंगाना राष्ट्र समिति, जिसका नाम बदल कर अब भारत राष्ट्र समिति हो गया है, ने कुल 119 सीटों में से 90 से अधिक सीटें जीती थी। स्थानीय दल आल इंडिया मजलिस –ए–इत्तेहादुल मुसलमीन को 7 सीटें तथा कांग्रेस को 5 सीटे  आईं थी। बीजेपी को केवल 2 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन बीजेपी ने तभी ठान लिया था कि कर्नाटक के बाद दक्षिण के इस राज्य में पार्टी हर हालत में मजबूत होगी। 

जब दिसम्बर 2020 यहाँ हैदराबाद नगर निगम के चुनाव हुए तो बीजेपी ने यहाँ अपना शक्ति प्रदर्शन करने के निर्णय किया। चुनावों से पूर्व इस निगम पर  तेलंगाना राष्ट्र समिति का कब्ज़ा था। 150 सीटों वाली निगम में ओवैसी की मुसलमीन दूसरे नंबर की पार्टी थी। बीजेपी के केवल 4 पार्षद थे। बीजेपी ने  यहाँ चुनाव जीतने की मुहीम चलाई। पार्टी अध्यक्ष सहित इसके कई नेता यह चुनाव प्रचार के लिये आये। माहौल ऐसा बना कि लग रहा था की बीजेपी इस निगम में सत्ता में आ सकती है। लेकिन नतीजों में किसी पार्टी  को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। 

तेलंगाना राष्ट्र समिति को 55 सीट आईं जब कि बीजेपी को 48 सीटें मिली। समिति और और मुसलमीन में समझौते के चलते इन दोनों दलों ने  अपना मेयर चुनने में सफलता पाई . इसके बाद ही बीजेपी नेताओं का विश्वास इतना बढ़ा कि उसने यहाँ विधान सभा चुनावों में पूरी ताकत लगाने का फैसला किया। यहाँ संगठन के नेतृत्व में बदलाव कर बंडी संजय को पार्टी की कमान दे दी। बंडी को प्रधान मंत्री मोदी के अलावा गृह मंत्री अमित शाह  और पार्टी अध्यक्ष जे.पी नड्डा के बहुत नज़दीक माना जाता है। वे एक कुशल संगठक के रूप में जाने जाते है। 

उन्होंने यहाँ प्रजा संग्राम रैलियों का लम्बा आयोजन किया। खुद मोदी ने पिछले वर्ष के दौरान चार बार इस प्रदेश का दौरा किया तथा विभिन्न योजनायों को आरंभ किया। पिछले साल जुलाई में पार्टी की राष्ट्रीय कार्य  समिति की बैठक भी यही रखी गई। इस बैठक के एक विशेषता यह थी कि बैठक से पूर्व समिति के सभी सदस्यों को तीन दिन पहले ही यहाँ पहुंचने के लिए कहा गया। उन सबको प्रदेश के विभिन्न शहरों, कस्बों और और गावों में जा पार्टी  कार्यकर्तायों को मिलने के लिए कहा गया। 

उन्हें विधान सभा चुनावों के लिए पार्टी के संभावित उम्मीदवारों का अंदाज़ लगाने के लिए कहा। कार्यसमिति की बैठक में इन सदस्यों ने प्रदेश में पार्टी की ताकत का आंकलन पेश किया। इसी के आधार पर ही केन्द्रीय नेताओं ने 2023 के विधान सभा चुनावों की रणनीति बनाने की तैयारी शुरू की। पिछले दिसम्बर में यहाँ के मुनुगोड़े क्षेत्र से विधान सभा का उप चुनाव होना था। पार्टी ने यह चुनाव पूरी ताकत से लड़ने का निर्णय किया। पार्टी यह उपचुनाव जीत तो नहीं सकी लेकिन इसके उम्मीदवार राजगोपाल रेड्डी, जो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आये  थे, को लगभग 90 हज़ार वोट मिले जबकि 2018 के चुनाव में पार्टी को यहाँ केवल 13 हज़ार वोट ही मिले थे। 

रेड्डी के बड़े भाई  वेंकट रेड्डी भी कांग्रेस में है तथा इस समय वे भवनगिरी इलाके से लोकसभा के सदस्य हैं। दोनों भाईओं का कार्य क्षेत्र नलगोंडा है जहाँ से बड़ी संख्या से विधान सभा सीटें आती है। पिछले कुछ समय से कांग्रेस पार्टी ने इन दोनों नेताओं को हाशिये पर डाल रखा है। इसी के चलते राजगोपाल रेड्डी पार्टी छोड़ बीजेपी में आ गए। सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि विधान सभा या लोकसभा चुनावों से पूर्व वेंकट रेड्डी भी कांग्रेस पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। 

इन दोनों नेताओं की अपने नलगोंडा इलाके पर मजबूत राजनीतिक पकड़ है तथा इसका लाभ बीजेपी को हो सकता है। पार्टी विधान सभा के चुनावों में सत्ता के कितना निकट पहुंचती है यह अभी कहना मुश्किल है लेकिन यह पक्का है जी कि पार्टी इन चुनावो में यहाँ शक्तिशाली रूप में जरूर उभर कर सामने आयेगी। (लेखक का आपने अध्ययन एवं अपने विचार हैं)