हैदराबाद रियासत के पूर्व राज घराने में कलह

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

www.daylife.page 

दक्षिण की पूर्व रियासत हैदराबाद के राज परिवार, जिसे निज़ाम-उल-मालिक कहा जाता था, के आठवां और आखरी निज़ाम मुक्कर्रम जाह का इस साल   के शुरू में इंतकाल हो गया था। हालाँकि रियासतों के राजा, महाराजाओ मिलने वाले न केवल प्रीवीपर्स बल्कि उनके पद भी 1971 समाप्त कर दिए गए थे। इसके बावजूद इन पूर्व राज परिवारों में उनके वंशजों में अभी भी ताज पोशी की रस्म होती है। इन पूर्व राज परिवारों के वंशजों में पद और सम्पति को लेकर विवाद होते रहते है। 14 जनवरी को हैदराबाद के 8वें निज़ाम का निधन होने के बाद जब उनके बड़े बेटे अस्मत जाह को गद्दीनशीं किया गया तो इसको लेकर परिवार में कलह शुरू हो गई। रियासत के सातवें और छठे निज़ाम के कुछ वंशंजों ने अलग से एक समारोह करके रौनक यार खां को रियासत का नौवां निज़ाम घोषित कर दिया। इसी बीच इन वंशजों के एक तीसरे वर्ग ने नजफ़ अली खां को गद्दी का सही हकदार बताया। 

वस्तुतः यह झगडा आज़ादी से पूर्व तथा 1967 तक रहे हैदराबाद के सातवें निज़ाम मीर उस्मान अली द्वारा पीछे छोड़ी गई पार सम्पति को लेकर है। इसमें न केवल आधा दर्ज़न महल और हवेलियों हैं बल्कि उनके द्वारा बनाये गए वक्फ की संपतियां है जिनकी कीमत करोड़ों  में आंकी गई है। इन महलों के फर्नीचर, साजों सामान तथा तैल चित्रों की कीमत का अंदाज़ा ही नहीं लगाया जा सकता। मीर उस्मान अली ने अपने जीवन काल में कई ट्रस्ट बनाये थे जिसमे बड़ी  राशियाँ रखी गई थी। उन्होंने उनके खुद के अलावा कई पिछले निज़मों के वंशजों को पेंशन देने का प्रावधान किया था। हाल ही में इस पूर्व राज परिवार के हीरे और जवाहरातों के मालिकाना हक़ को लेकर जो फैसला आया है वह भारत सरकार के पक्ष में है। इनकी कीमत लगभग 325 करोड़ है तथा इसमें कुछ हिस्सा  निज़ाम परिवार को भी मिलना है। 

सातवें निज़ाम ने अपने जीवनकाल में यह कह दिया था कि उनके इंतकाल के बाद उनका बड़ा बेटा रियासत का अगला या आठवां निज़ाम नहीं होगा। इसके स्थान पर उन्हें अपने पोते मुक्कर्म जाह को अपना अगला वारिस घोषित किया था। इसका लेकर निज़ाम परिवार के भीतर कुछ विवाद भी हुआ था।  उनके बेटों ने इस फैसले का गलत बताया था लेकिन आखिर में उनके निर्णय को स्वीकार कर लिया गया था। मीर उस्मान अली का निधन 1967 में हुआ था।  निधन के बाद मुक्कर्म जाह की ताजपोशी कर दी गए। निज़ाम बनने के बाद स्वतः ही वे राज परिवार की सम्पतियों और ट्रस्ट आदि का मुखिया हो गए यानि सब पर उनका मालिकाना हक़ हो गया। लेकिन ताजपोशी के कुछ समय बाद वे हैदराबाद छोड़ तुर्की में ही जाकर बस गए। अपने जीवनकाल में शायद ही वे  हैदराबाद आये हों। आये भी हो तो उनकी ओर किसी की अधिक तवजो नहीं गई। अपने निधन से कुछ समय पूर्व ही उन्होंने अपने बड़े बेटे अस्मत जाह को अपना वारिस घोषित कर दिया था। अपने पिता की तरह अस्मत जाह, जो लंदन में रहते है, शायद ही कभी हैदराबाद आये हो। मार्च के शुरू में जब हैदराबाद  में उनकी ताजपोशी की गई तो कोई बड़ा जश्न नहीं किया गया। 

नजफ अली खां हैदराबाद के छठे निज़ाम के वंशज बताये जाते हैं। सातवें परिवार के कुछ वशजों को मिलकर इस निज़ाम परिवार के सीधे वंशज माने जाने वालों की कुल 195 सदस्य हैं उनका कहना है कि न तो आठवें निज़ाम मुक्कर्म जाह और न ही नौवें निज़ाम अस्मत जाह का हैदराबाद से  कोई नाता रहा है।  इस पूर्व रियासत का नया निज़ाम यहाँ रह रहे वशजों में से ही होने चाहिये। इस मामले में स्वयं नजफ अली खां अपने आपको निज़ाम के पद का सही हक़दार मानते है। 

इस पूर्व रियासत के सभी निजामों के वशंजों, जिनकी संख्या लगभग 4500 है, की एक संस्था मजलिस-ए-शहजादा है। इस संस्था के लोगों ने ही रौनक यार खा को अगला यानि नौवां निज़ाम घोषित कर उनकी फटा फट ताजपोशी कर थी। इस संस्था के सभी सदस्यों को मीर उसम अली खां दावरा बनाये गए ट्रस्ट से पेंशन मिलती है। यह पेंशन 20 रूपये से लेकर 150 रूपये तक है। जब यह राशि निर्धारित की गई थी तो इसका मूल्य ठीक ठाक था लेकिन अब यह राशि  नहीं के बराबर लगती है। ये वंशज बड़े गर्व से अपने को राज परिवार के सदस्य बताते है लेकिन लेकिन छोटा मोटा काम करके अपने जीवन चला रहे। इनमें से तो कई पेंशन की राशि लेने तक नहीं आते क्योंकि ट्रस्ट ऑफिस आने के लिए वहां का वहां भाडा इस पेंशन से अधिक होता है। इनके सिर पर गोल लाल टोपी  इनके राज परिवार का होने की एक मात्र पहचान है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)