हमारी खुशियों का पासवर्ड क्या है...?

वर्ल्ड हैप्पीनेस डे (मार्च 20) के अवसर पर विशेष

हमारी जिंदगी की खुशी और प्रसन्नता का पासवर्ड स्ट्रांग हो 

लेखक : नवीन जैन 

स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)

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अंग्रेजी साहित्य के विद्वान, और देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति स्व.डॉक्टर सुरेंद्र चंदेल ने करीब चालीस बरस पहले ही इन्दौर के एक प्रतिष्ठित अखबार में एक आलेख लिखा था, जिसका टाइटल था, अमेरिका में हर आदमी अकेला है। डॉक्टर चंदेल ने चूंकि अमेरिका के विभिन्न राज्यों की तीन माह तक यात्राएं की थी, इसलिए उन्होंने अपने ढंग से अमेरिकी समाज की बुनियादी संरचना की पड़ताल संवेदना के गहरे स्तर पर जाकर हर कोण से करने की कोशिश की थी। दरअसल, अकेलेपन के कुछ अस्थाई या स्थाई कारण भी हो सकते हैं, जिनमें निश्चित रूप से पैसा भी शामिल होता ही है, क्योंकि लक्ष्मी की प्रचुरता के कारण ही तो 48 राज्यों का महादेश अमेरिका आज भी जगत चौधरी बनने के फेरे में है, जबकि 33/34 करोड़ की आबादी वाले इस देश की पर केपिटा (प्रति व्यक्ति) इनकम भारतीय मुद्रा में 67 लाख रु. है, जबकि खुश रहने, और लंबा जीवन जीने के मामले में स्वीडन, फिनलैंड नेडरलैंड, नार्वे, इसराइल, और भूटान दुनिया में सबसे आगे माने जाते है। जहां तक सवाल भारत का है हमारी सांख्यिकी बोर्ड की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार सन 2015/16 के आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान प्रति भारतीय व्यक्ति की आय दो गुनी हुई है। 

यदि उक्त आंकड़े सिर्फ सरकारी बाबू गिरी का कमाल नहीं है, तो सवाल है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वे के अनुसार आज भी भारत में रोजाना लगभग 19 करोड़ लोग भूखे क्यों सोते हैं, और मध्य प्रदेश के साथ बिहार में पौष्टिकता के अभाव में शिशु मृत्यु दर इतनी ज्यादा क्यों है? खुश रहने का बड़ा संबंध पैसे से भी है। भारत में तो एक सनातन कहावत है कि जीवन के ग्यारह सुख होते हैं, जिनमें से पहला सुख है निरोग काया, और दूसरा सुख है घर में हो माया यानी पैसा। जब कोरोना की अल्प प्रलय की बेला पूरे पीक पर थी, तब आंकड़ा आया था, कि बीमारियों के इलाज के लिए अमूमन हर चौथा भारतीय परिवार विभिन्न कर्जों में डूबा हुआ है। भारत में सभी बातें बुरी नहीं है। मान लिया कि हमारा देश खुश रहने के मामले में इतना पिछड़ा हुआ है कि दुनिया में उसका नम्बर,138 वां है, लेकिन यह जानकर आपके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहेगा कि सिटी ब्यूटी फुल चंडीगढ़  भारत में खुशहाली के मामले में सबसे आगे है। इसके मुख्य कारण यहां के लोगों की जिंदादिली, मस्त हवा मान या पर्यावरण, खान पान, रहन सहन, कल्चर, शारीरिक, और मानसिक स्थिति माने जाते हैं। इसके बाद लखनऊ, बेंगलरू,और चेन्नई आदि के नाम आते हैं। वर्ष 2009 की यूके की ऑनलाइन मार्केट एडवाइजरी की जो रिपोर्ट आई थी उसके अनुसार खुद का घर खरीदने के लिए दुनिया के जिन बीस शहरों को चुना गया था उनमें भी चंडीगढ़ पांचवे नंबर पर था। किसी भी आम आदमी को सामान्य सी जिज्ञासा हो सकती हैं कि स्वच्छता के मामले में मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर जब लगातार छठे नंबर पर टिका रह सकता है और इसका अनुकरण करने के लिए पूरे साल देश विदेश से कई टीमें आती है तो प्रसन्न रहने के मामले में चंडीगढ़ मॉडल को धीरे धीरे ही सही पूरे देश में लागू किए जाने के गंभीरता से प्रयास क्यों नहीं होते? क्योंकि जो समाज जितना ज्यादा खुश रहेगा उसकी उतनी ही प्रगति निश्चित होती है। शायद यही सोचकर मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने एक बार बकायदा आनंद मंत्रालय का गठन भी कर दिया था। देश में यह अपनी तरह का अनूठा प्रयोग था, लेकिन विडंबना यह रही कि इस प्रयास ने अपनी पहली जयंती भी नहीं बनाई। जान लें कि प्रत्येक वर्ष बीस मार्च को प्रसन्नता दिवस मनाने का प्रस्ताव 2013 में संयुक्त राष्ट्र ने पारित किया था। इसे पास करवाने में प्रसिद्ध समाजसेवी जेसी एलियन की निर्णय भूमिका थी। 

जापानी भाषा में एक बहुत गहरा, लेकिन छोटा सा शब्द है_इकीगाई। इकी का मतलब है जीवन और गाई का अर्थ है कीमत या मूल्य। इस तरह इस पूरे शब्द युग्म का अर्थ हुआ जीवन का मूल्य या जिंदा रहने की वजह। करीब पांच साल से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इकिगाई नाम की पुस्तक लगातार हॉट सेल में है। इस किताब के अनुवाद भारत सहित दुनिया की कई भाषा में उपलब्ध है। इसे दो लोगों ने लिखा है जिनके नाम है सॉफ्टवेयर इंजीनियर हेक्टर गार्सिया और लेखक नीरोलेस फ्रांसिस। इन दोनों ने जापान के उजीमा कस्बे का सर्वेक्षण किया। उन्होंने उजीमा को प्यारा सा निक नेम दिया द विलेज ऑफ़ लॉन्जेविटी। गार्सिया और निरालेस की इस किताब में विस्तार से बताया गया है कि हम सब इकेगाई है। जीवन यात्रा में मुश्किल तो आएगी। रास्ते भी टेढ़े मेढे होंगे। माना यह भी जाता है कि आपकी जिंदगी के मालिक चूंकि आप खुद हैं, इसलिए आप ही अपनी जिंदगी के अंतिम फैसले की सुप्रीम कोर्ट हैं। आप ही चीफ जस्टिस हैं। इसलिए आपको ही तय करना होगा कि आपके जीवन खुशियों की कीमत आखिर क्या, और कितनी है? हम अक्सर ही अपने से असली, और बहुत सारी खुशियों का पता ठिकाना पूछते रहते हैं। ये बुरा विचार तक हमारे मन में आ जाता है कि किसी पॉश कॉलोनी में हमारा ऐसा हवेली जैसा बंगलो हो कि हमारे अपने सगे संबंधी हमसे ईर्ष्या करने लगे। हमारी हैसियत महंगी विदेशी कार, ज्वेलरी, बैंक बैलेंस, से नापी जाए। ऐसे में हमें निश्चित करना पड़ेगा कि क्या हम जिंदगी भर प्रीमियम भरने के लिए जी तोड़ मेहनत करके दवाओ से अपने पेट को दवाओ की दुकान या गोदाम बनाते रहेंगे? पैसा बहुत कुछ है, लेकिन सब कुछ नहीं है। यह हमने खासकर कोरोना के वक्त, और दूसरी बीमारियों के समय देखा ,और देखते ही हैं। एक मुकाम पर आकर हम सभी को तय करना पड़ सकता है कि हमारी जिंदगी की खुशी, और प्रसन्नता का पासवर्ड क्या है। प्रसिद्ध उद्योग पति बंधु मुकेश अंबानी, और अनिल अंबानी के पिता स्व. धीरूभाई अंबानी, जिन्होंने अंबानी कारोबार की नीव रक्खी, कहा करते थे कि जो व्यक्ति धनोपार्जन करने वाले को कोसता है, वह खुद दरिद्री में जीता है। आगे चलकर हुआ ये कि खुद धीरू भाई गंभीर बीमारियों की गिरफ्त में आ गए। मुकेश अम्बानी  भी कई विवादों में घिरे हुए हैं, और अनिल अंबानी तो दिवालिए घोषित किए जा चुके हैं। एक बार किसी भारतीय पर्यटक ने भूटान के एक टैक्सी ड्राइवर से पूछ लिया कि आपके देश की जी डी पी तो इतनी कम है, फिर भी आप इतने खुश कैसे रह लेते हैं? टैक्सी चालक ने जवाब दिया हमारी खुशी हमारी जीडीपी की दबेलदार नहीं है, बल्कि हमारी जमी के ये सर सब्ज नजारे हमें खुश रखते हैं। इन्हें ही देखने तो आप लोग आते हैं। जान लें कि भूटान देश का करीब 60 फीसद भू भाग हरियाली से आच्छादित है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)