देश के विकास में समग्रता एवं रोजगार

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है 

www.daylife.page 

स्वतंत्रता के पश्चात भारत की अर्थ व्यवस्था में तेजी के साथ बदलाव आया। प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने बहुउद्देशिय आधुनिक सिंचाई परियोजनाओं, बुनियादी वृहद कारखानों व उद्योगों की शुरूआत के साथ अर्थ व्यवस्था के बदलाव का उद्घोष किया। कृषि क्षेत्र में प्रथम हरित क्रांति संभव हो सकी। सुनियोजित समंवित विकास की धारणा के अन्तर्गत सार्वजनिक क्षेत्र में अनेक औद्योगिक संस्थान स्थापित हुए। औद्योगिक क्षेत्र सेवा क्षेत्र, दूर संचार, यातायात तथा अन्य व्यवस्थाओं में विकास तेजी से हुआ। औद्योगिक उत्पादन को प्रोत्साहन मिला परन्तु कृषि विकास पिछड़ गया व उपेक्षा का शिकार हो गया। देश की अर्थ व्यवस्था कृषि आधारित थी, कृषि विकास पिछड़ गया, कृषि की देश के सकल उत्पाद में हिस्सेदारी कम हुई, बदलाव दिनो दिन हर क्षेत्र में आया परन्तु उसे अनुपात में रोजगार के क्षेत्र में नहीं आ पाया। अब आर्थिक विकास दर को सर्वाधिक समर्थन अब उद्योग व सेवा क्षेत्र से मिल रहा है।

भारत सरकार के रोजगार एवं प्रशिक्षण निदेशालय ने जो आंकड़े जारी किये है उनके अनुसार संगठित क्षेत्र में रोजगार के आंकड़े घटे है, बड़ी संख्या में औद्योगिक इकाईयां बंद हो गई है। पिछले वर्षो में अर्थ व्यवस्था में गिरावट से मंदी, राज्यों पर बढ़ते कर्ज, औद्योगिकरण दर में कमी व विनिवेश की नीति, रोजगार के अवसरों में निरन्तर हो रही कमी के कारण है। आज भी दो तिहाई आबादी कमी के कारण अपना जीवन बसर कृषि पर कर रही है। किसानों के समृद्धि की योजनाएं केवल कागजों में है। रोजगार वृद्धि, किसानों एवं असंगठित क्षेत्रों की समृद्धि के लिए जमीनी कार्यवाही करनी होगी।

बचतों, रचनात्मक उपायों, पूंजी बाजार में कमी को दूर करने, सेवा क्षेत्र का विस्तार करने, बढ़ते वित्तीय घाटे को कम करने, विदेशी विनिवेश को बढ़ाने, बुनियादी, औद्योगिक और ढांचागत विकास में निवेश में वृद्धि की घोषणाएं केवल कागजी रह गई है। सैकड़ों उद्योग धंधे बंद हो गये, हजारों बंद होने के कगार पर है, रोजगार के अवसर घटे है, राजकोषिय घाटा बढ़ रहा है। मुद्रास्फीति व महंगाई बढ़ी है। बढ़ती जनसंख्या व आर्थिक असमानता के बीच बढ़ती जनसंख्या विकराल रूप धारण कर रही है। देश की विकास रणनीति श्रम व उत्पादकता उन्मुख होनी चाहिए, बेरोजगारी मिटाने के लिए दिखावटी योजनाएं पर्याप्त नहीं हैं।

सरकारी तंत्र निजी हितों का खिलौना बन गया है। शिक्षा, स्वास्थ्य सहित सभी क्षेत्रों में शासकीय सेवाओ ंमें गिरावट आई है। सरकारी आबकारी नीति भी कोई स्टेण्ड नहीं ले रही है। सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में अधिक घाटा हुआ है। इस मुद्दे पर भी गंभीरता से विचार करने में सरकार असफल रही है। समग्र विकास के लिए आवश्यक है कि रोजगार सृजन हो। वर्तमान सरकार ने अपने कार्यकाल में उंची विकास दर अर्जित करने का लक्ष्य रखा है लेकिन रोजगार सृजन की स्थिति अत्यन्त चिंताजनक है। सरकार देश में सर्वाधिक युवा शक्ति होने का दंभ भरती है परन्तु युवाओं को बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ रही है। 

रोजगार श्रेणी को प्राथमिकता प्रदान करने से ही विकास लक्ष्य के अंतिम छोर तक पहुंच पायेगा। रोजगार सृजन ग्रामीण क्षेत्रों तक हो व आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से अर्द्धकुशल व अकुशल तक पहुंचे। लघु एवं कुटीर उद्योगों का अधिक महत्व है परन्तु उनको जिंदा रखने के लिए एवं आगे बढ़ाने के लिए प्रयासों का अभाव है। किसानों के साथ-साथ मजदूरों की भी अपनी गंभीर समस्याएं हैं। मजदूरों के लिए न्यायसंगत सम्मानीय रास्ता निकालना आवश्यक है। रोजगार गारंटी के साथ शिक्षा व स्वास्थ्य की गारंटी देना आवश्यक है।

समग्र आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है कि समंवित प्रयास के साथ आगे बढ़ा जावे जिससे विकास का लाभ प्रत्येक नागरिक को समान रूप से प्राप्त हो सके। जो आर्थिक विकास आज देखने में आ रहा है वह देश के कुछ उद्योगों के लिए उत्कृष्ट उपलब्धि है। परन्तु असमानता तेजी के साथ बढ़ रही है। तेज गति के साथ ग्रामीण, बुनियादी ढांचे के विकास के साथ विद्युत उत्पादन व सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास आवश्यक है। सड़क व दूर संचार के विकास को भी अब ग्रामीण क्षेत्रों की ओर मोड़ा जाना आवश्यक है। विदेशी निवेश व विदेशी व्यापार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हवाई अड्डे, बंदरगाह, रेल व सड़क विकास, सुचारू कानून व्यवस्था स्थापित करना आज आवश्यक है।

वर्तमान दौर में लोगों के सपने धराशाई हो रहे है। महंगाई, नोटबंदी व जीएसटी से आमजन में निराशा व्याप्त हो रही है। आम जनता महंगाई की मार से दब गई है। रेल किराये में वृद्धि, पैट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दामों में वृद्धि ने दूसरी चीजों के दाम बढ़ा दिये है। सीमेंट, स्टील महंगे हो गये है। माल भाड़ा बढ़ने से परिवहन लागत बढ़ गई है। सरकार ने चीनी पर आयात शुल्क बढ़ाया है। प्याज उपभोक्ता को रूला रहा है तो आलू किसानों को। जमाखोरों पर कोई नियंत्रण नहीं है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली चरमरा गई है। दुर्घटनाएं, अपराध व भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। 

सरकार को नीतियों में बदलाव कर समग्र विकास के लिए औद्योगिक विकास के साथ कृषि विकास दर को बढ़ाना होगा। गरीबी निवारण कार्यक्रमों में बृद्धि एवं असमानता को कम करने से ही भारत संपन्न राष्ट्र की श्रेणी में आ सकता है। सरकार को किसानों की चिंता करनी होगी, किसान आत्महत्या कर रहे हैं। भूमिहीन किसान बंधुआ मजदूरों की तरह रह रहे है। सभी प्रदेशों में किसानों के हालात बदतर होते जा रहे है। आये दिन किसानों की खुदकशी करने के समाचार आ रहे है। उपभोक्ता बाजार में कृषि उत्पादकों की कीमतें भले ही दिन-ब-दिन बढ़ रही हो परन्तु इसका लाभ मझोले और छोटे किसानों और असंठित मजदूरों को नहीं मिल रहा है। किसानों व मजदूरों की बदहाली में सुधार के लिए सरकार नहीं सोच रही है वह तो देश के उच्च मध्यम वर्ग व आम आदमी को उसके जीवनस्तर में वृद्धि के आंकड़ों का सब्जबाग दिखाने में मशगूल है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)