गांव यदि समृद्ध, स्वावलंबी और सुविधाओं से लैस हों तो देश समृद्ध होगा

लेखक : डॉ.सत्यनारायण सिंह

लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं 

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महात्मा गॉधी ने कहा था-’’हमारे देश की आत्मा उसके गांवों में बसती है और मैं इसमें दृढता से विश्वास रखता हॅू।’’ ‘‘‘यदि गॉव समृद्ध, स्वावलंबी और अच्छी सुविधाओं से लैस हों तो देश समृद्ध होगा। इससे भारत के आत्मनिर्भर की अर्थव्यवस्था के सपने को पूरा करने में मदद मिलेगी।

गाँधी जी के सपने का भारत गांवों पर आधारित था और उन्होंने ग्राम स्वराज, पंचायती राज, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गांवों में स्वच्छता, गांवों का आरोग्य और समग्र विकास को महत्वपूर्ण माना। महात्मा गाँधी ने ’’मेरे सत्याग्रह के प्रयोग’’ में लिखा है-’’भारत में हर चीज मुझे आकर्षित करती है। श्रेष्ठ आकांक्षाओं वाले व्यक्ति को विकास के लिए जो कुछ भी चाहिए वह सब भारत में मिल सकता है। यह केवल गांवों के विकास से ही संभव होगा। याद रखें कि आने वाले समय में गाँवों को देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।’’

महात्मा गाँधी ने गांवों की स्वायत्तशासी संस्थाओं, सहकारिता व सहभागिता, पंचायती राज, ग्रामीण उद्योग, महिला शिक्षा, गांव की स्वच्छता और स्वास्थ्य और गांवों के समग्र विकास को भारत को एक स्वायत्त और मजबूत राष्ट्र बनाने के लिए उपयोगी माध्यम के रूप में पेश किया था। 

गाँधी जी ने ग्रामीण उद्योगों की दयनीय स्थिति से चिंतित हो कर, ’’स्वदेशी अपनाओं,-विदेशी भगाओं’’ के नारे के माध्यम से खादी निर्माण से गांवो को जोड़ा, अनेक बेरोजगार लोगों को इससे रोजगार प्रदान करके स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका को रेखांकित किया। वे स्वतंत्रता के पश्चात एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे जहाँ जाति, लिंग और सामाजिक स्थिति का भेद पूर्णतः समाप्त हो जाएगा, और हर कोई अपने मताधिकार का जिम्मेदारीपूर्वक प्रयोग करके लोकतंत्र की नींव को मजबूत करेगा। स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी ग्रामीण विकास की छवि आज उसके अनुरूप सुधरी हुई नहीं है। 

गाँवों में स्कूल, अस्पताल, शुद्ध पेयजल का प्रबंधन और पुलिस चौकी हैं। महिलाओं के प्रति भेदभाव कम हुआ है और वे अपनी घरेलू भूमिकाओं से परे देश के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में योगदान देने लगी हैं। परन्तु गाँधी के भारत के सपनों को साकार करने के लिए अभी भी बहुत कुछ करना है।

लोकतंत्र की वर्तमान अव्यवस्थाओं से प्रभावित लोगों में अहिंसा और शांति स्थापित करनी आवश्यक है। लोगों में गाँधीवाद और गांँधी मूल्यों के प्रति आस्था व विश्वास बनाए रखने के लिए एक वातावरण बनाना जरूरी है। स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के बाद से ही महात्मा गाँधी गांवों की स्थिति से गहरी चिंता में थे। उन्होंने गांवों के प्रति एक नया दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। अंग्रेज सरकार की आर्थिक नीतियों ने गांवों में रहने वाले लोगों में बेरोजगारी, गरीबी, बेकारी, असमानता को बढ़ावा दिया, ग्रामीण उद्योग धन्धें, हस्तशिल्प आदि छोटे व्यापार और व्यवसाय तबाह हो गए थे। शहरों में लोगों में विदेशी वस्तुओं को खरीदने और उन्हें उपयोग करने का चलन बढ़ गया था। भारत से कच्चा माल विदेश भेजा जाता था, जहां से प्रोसेस कर मैन्युफेक्चर करवा कर भारतीय लोगों को महंगे दामों पर बेचा जाता था। 

गाँधी ने भारतीय जनता में जागरूकता बढ़ाने के लिए काम किया। चरखा को स्वदेशी आंदोलन का हथियार बनाया। उन्होंने नगरवासियों से अनुरोध किया कि वे अपने दैनिक जीवन में केवल देशी उत्पादों का ही उपयोग करें। कारखानों से पॉलिश किए हुए चावल की जगह हाथ से पिसा हुआ चावल और कारखाने की चीनी की जगह गुड का उपयोग किया जा सकता है। गाँधी गांवों की आर्थिक प्रगति के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करना चाहते थे। 

गाँधी के अहिंसा के सिद्धांत व सामाजिक न्याय में भी एक पहलू आर्थिक समानता थी। आर्थिक उन्नति से गरीब और वंचित लोगों की सामाजिक बुराइयां दूर हो जाती हैं। ग्रामीण जनता की आर्थिक प्रगति से राष्ट्रीय समस्याएं कम होंगी और स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूती मिलेगी। गांधी ने नगर वासियों की मानसिकता देखकर कहा था-’’नगरवालों के लिए गॉव अछूत है। नगर में रहने वाला गॉव को जानता भी नहीं। वह वहां रहना भी नहीं चाहता। अगर कभी गांव में रहना भी पड़ जाए तो वह शहर की सारी सुख-सुविधाएं जमा करके उन्हें शहर का रूप देने की कोशिश करता है। ’’

गाँधी मानते थे कि गरीब और पिछडे वर्ग की आर्थिक प्रगति से सामाजिक बुराईयों को कम किया जा सकता है। गाँधी ने गांवों से सामान खरीदने का महत्व बताया था ताकि ग्रामीण जनता को मजबूत किया जा सके। वे वेतन और लाभ दोनों प्राप्त करेंगे। ग्रामीण जनता की आर्थिक प्रगति से राष्ट्रीय समस्याएं कम होंगी। गाँधी के विचारों में भारत की सभ्यता और संस्कृति गांवों में विकसित हुई थी। महात्मा गाँंधी ने ’’मेरे सपनों का भारत’’ में लिखा ’’भारत की हर चीज मुझे आकर्षित करती है। जो व्यक्ति अपने विकास के लिए सर्वोच्च आकांक्षाओं की आवश्यकता रखता है, वह सब कुछ भारत में पा सकता है। ’’

गाँधी के लिए भारत का ग्रामीण परवेश हमेशा महत्वपूर्ण रहा है, और उन्होंने यह माना था ’’भारत की स्वतंत्रता का अर्थ है कि पूरे देश को स्वतंत्र होना चाहिए, और इस स्वतंत्रता की शुरूआत नीचे से होनी चाहिए तभी प्रत्येक गांव एक लोकतंत्र बनेगा। प्रत्येक गॉव को आत्मनिर्भर और सक्षम होना चाहिए।

देश के विकास के लिए आगे आने वाले समय में गांवों की महत्वपूर्ण भमिका होगी। इसके लिए गांवों की मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाने की आवश्यकता है। एक लोकतांत्रिक इकाई के रूप में हमें ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देनी होगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)