मोदी है तो कुछ भी मुमकिन नहीं है

लेखक : व्यंग्यकार रमेश जोशी 

सीकर (राजस्थान), प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए. 

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आज तोताराम बहुत उत्साहित था, बोला- बस, दो चार महिने की बात और है। अहंकारी चीन को पीछे छोड़ देंगे। 

हमने कहा- क्या तो चीन और क्या उसकी औकात? मोदी जी तो उसे नाम लेने लायक भी नहीं समझते। अब तो हम जी 20 के अध्यक्ष हैं। दुनिया के सबसे धनवान और शक्तिशाली देश कोई कदम उठाने से पहले मोदी जी की तरफ देखते है। हम ब्रिटेन से भी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं।  हाँ, यह बात और है कि अर्थव्यवस्था के जितने बड़े आकार में संसाधनों का बंटवारा 7 करोड़ लोगों में होता है उतने में हम 140 करोड़ को निबटाते हैं। मतलब ब्रिटेन का एक व्यक्ति हमारे बीस व्यक्तियों जितने साधनों का उपयोग करता है। फिर भी तुलना करके खुश होने में क्या नुकसान है। दिल के बहलाने को गालिब...

बोला- मैं अर्थव्यवस्था की बात नहीं कर रहा। मैं तो जनसँख्या की बात कर रहा हूँ। 2023 में हम चीन को पीछे छोड़ देंगे। मोदी है तो मुमकिन है। 

हमने कहा- यह हम नहीं मानते। मोदी जी ने देश के विकास और सेवा के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत ले रखा है। वे संयम, सेवा, निग्रह, अनुशासन के साक्षात् विग्रह हैं। देश जी जनसँख्या वृद्धि में उनका कोई योगदान नहीं है। और न ही मुसलमानों और धर्म निरपेक्षियों का कोई योगदान है। हाँ, उनके कुछ उत्साही, राष्ट्रवादी और हिंदुत्त्ववादी भक्तों का ज़रूर योगदान है जिन्होंने मुसलमानों के खतरे से देश को बचाने के लिए हिन्दुओं को पांच-पांच, सात-सात बच्चे पैदा करने की प्रेरणा देकर देश को यह गौरवपूर्ण उपलब्धि दिलवाई है। लेकिन हम एक बात ज़रूर दावे से कह सकते हैं मोदी जी के रहते कुछ भी 'मुमकिन' नहीं हो सकता।

बोला- क्या बात कर रहा है? पिछले 30 वर्षों में दो-दो बार पूर्ण बहुमत की सरकार देश को दी। नोटबंदी करके आतंकवादियों और काले धन वालों की कमर तोड़ दी। क्या आज तक कोई ऐसा कर पाया? जोशीमठ और बद्रीनाथ के इलाके में मकानों में आने वाली दरारें मोदी जी के एक इशारे से बंद हो गई कि नहीं? हैं कहीं कोई समाचार?

हमने कहा- दरारें बंद नहीं हुई है। सरकार ने 'राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण' पर मीडिया से बात करने पर रोक लगा दी है। इस देश के लोगों को शाम को समाचारों में अपने शहर का तापमान सुनकर सर्दी-गरमी लगती है। जैसे कि हिन्दू खतरे में, हिन्दू खतरे' कह कर लोगों को डराया जाता है वरना हजार साल से दोनों शांति से रहते रहे हैं कि नहीं? यदि इन दोनों का सांप-नेवले, कुत्ते-बिल्ली, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और गाँधी जैसा 36 का आंकड़ा होता तो कब के सब लड़-लड़ कर मर गए होते।  

बोला- कुछ भी कह मैं तेरी इस बात से कभी भी सहमत नहीं हो सकता कि 'मोदी है तो कुछ भी मुमकिन नहीं'। अरे, सारी दुनिया कह रही है- 'मोदी है तो मुमकिन है'। बिलकिस बानो के संस्कारी बलात्कारियों को समय से पूर्व छोड़ने का काम करके भी गुजरात में दो तिहाई बहुमत आ गया। तब ऐसा कौन सा काम है जो मोदी जी के रहते मुमकिन नहीं हो सकता? वे लोगों को जूते मारकर भी जीत सकते हैं। उनका क्या कोई विकल्प है? 

हमने कहा- विकल्प तो किसी का भी नहीं होता। क्या हाथी मक्खी का विकल्प हो सकता है? हाथी बोझा ढो सकता है। राजा के जुलूस की शान बढ़ा सकता है लेकिन पौधों में परागण के लिए तो कीट-पतंगे चाहियें कि नहीं? क्या कोहीनूर हीरा या हजार करोड़ की कोई मूर्ति या मंदिर एक गिलास पानी का विकल्प हो सकता है? क्या आँख का काम पैर से और पैर का काम आँख से चलाया जा सकता है? समाज को अपनी-अपनी सीमाओं से आगे निकलना है तो अंधे और लँगड़े की दोस्ती की तरह मिलकर रहना होगा? किसी के पास आँख है तो किसी के पास पैर।  

बोला- बहुत हो गई तेरी यह 'विकल्प विवेचना'। बस, मुझे तो एक बात का साफ़-साफ़ उत्तर से कि 'मोदी है तो मुमकिन' क्यों नहीं हो सकता?'

हमने कहा- जैसे फैब इण्डिया 'जश्न-ए-रिवाज़' नहीं मना सकता उसे 'परंपरा का उत्सव' ही मनाना पड़ेगा। 'हिजाब' से हिंदुत्व खतरे में पड़ आता है इसलिए हिन्दू महिलाओं को 'हिजाब' की जगह 'घूँघट' करना पड़ेगा। घूँघट हरियाणा और राजस्थान की शान है। इकबाल की प्रार्थना 'लब पे आती है दुआ' सुनकर बच्चा तो बच्चा अस्सी साल के बूढ़े का भी मन डोल जाता है और वह मुसलमान हो जाता है। इसलिए मोदी जी कभी भी 'मोदी है तो मुमकिन है' नारे से सहमत नहीं होंगे।   

हाँ या तो वे तेजस्वी सूर्य से आज्ञा ले लें या फिर नारा बदल दें - 'मोदी है तो संभव है '। 

बोला- लेकिन इसमें अनुप्रास का फ़ोर्स, लय और प्रवाह नहीं। मोदी जी को बात में फ़ोर्स चाहिए फिर चाहे भाषा कोई भी हो।

हमने कहा- तो फिर यह नारा किसी और महापुरुष के नाम कर दें। 

बोला- कैसे ?

हमने कहा- 'शाह है तो संभव है'।

बोला- मोदी जी की छाया में इतनी गुंजाइश नहीं है। वे कैमरे और छवि के बीच किसी मक्खी तक को बर्दाश्त नहीं करते। 

हमने कहा- तो झेलो खतरा। फिर मत कहना कि यह क्या हो गया? 

(लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)