अब तमिलनाडु बनाम तमिजगम पर नई बहस

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि द्वारा राज्य विधान सभा अधिवेशन के प्रथम दिन दिया गए अभिभाषण को लेकर राज्य की द्रमुक सरकार के साथ ठन गई। सामान्य तौर पर नियमों और परम्परा के अनुसार किसी भी प्रदेश का राज्यपाल वहां की सरकार द्वारा तैयार किये गए अभिभाषण को पढता मात्र है।  उसमे से न तो कुछ छोड़ता और ना ही कुछ जोड़ता है। लेकिन दक्षिण के इस राज्य के राज्यपाल के रूप में उन्होंने अपने अभिभाषण में दोनों ही बातों का कुछ हद तक उल्लंघन किया। यह अलग बात है की मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने अभिभाषण के तुरंत बाद एक प्रस्ताव सदन में एक प्रस्ताव पारित कर यह कहा कि सदन की कार्यवाही में अभिभाषण के केवल लिखे हुए मूलरूप को ही दर्ज किया जाये। 

ऐसे लगता है कि सरकार को राज्यपाल रवि, जो एक पूर्व  आई पी एस अधिकारी हैं, को उनके अभिभाषण में छोड़ी गई बातों से अधिक जोड़ी गई कुछ बातों पर अधिक एतराज था। राज्यपाल रवि ने अपने लिखित अभिभाषण से हट कर कहा कि राज्य का नाम तमिलनाडु की बजाये तमिजगम होता तो बेहतर होता।  सत्तारूढ़ दल को इसी नाम और इसके सुझाव पर एतराज था। इसके नेताओं को इसमें राजनीति की बू आती थी। द्रमुक के कुछ नेताओं का कहना है कि     राज्यपाल राज्य में  बीजेपी के पैर फ़ैलाने के अजेंडे को आगे बढा रहे  है। पार्टी की ओर से एक प्रतिनिधि मंडल ने राष्ट्रपति मुर्मू से मिलकर इस सारे मुद्दे पर  अपना एतराज़ दर्ज करवाया है। 

राज्य के इस नाम को लेकर तमिलनाडु के राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक हलको में एक नई बहस  शुरू हो गई है। यह बात छिपी हुई नहीं है की  द्रमुक द्रविड़ संस्कृति, द्रविड़ अस्मिता और तमिल भाषा को लेकर आक्रामक रही है। पार्टी हमेशा हिंदी तथा हिंदुत्व का विरोध करती रही है। इसी के बल वह बार बार सत्ता में आती रही है। बीजेपी पिछले दशकों से इन्हीं दो मुद्दों को आगे रख राज्य में अपने पैर फैलाना चाहती रही है पर इसे कोई सफलता नहीं मिली। 

अब इसके नेता यह समझ गए है कि जब तक में द्रविड़ अस्मिता और तमिल भाषा को तरजीह नहीं देंगे तब तक वे  इस राज्य में आगे नहीं बढ़ सकते।  इसी क्रम में केंद्र सरकार ने लगभग एक महीने पहले बनारस में तमिल संगम का योजना किया था जिसका उद्देश्य उस काल को फिर जीवित करना था जब दो ढाई हज़ार पूर्व तमिलनाडु से बड़ी संख्या में यात्री महादेव की इस नगरी में आते थे। राष्ट्र कवि, सुब्रमनियम भारती, तो इस नगरी में आ कर बस ही गए थे। इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने अपने भाषण का पहला हिस्सा तमिल भाषा में ही पढ़ा। 

तमिलनाडु का नाम आज़ादी से पूर्व तथा आज़ादी के कुछ वर्ष बाद तक मद्रास था। यह नाम अंग्रेजो का दिया हुआ था। पचास-साठ के दशक में इस नाम को बदले जाने का आन्दोलन शुरू हुआ जिसकी अगुआ द्रमुक थी। आखिर में तब की केंद्रीय सरकार ने यह मांग स्वीकार करली और मद्रास का नाम तमिलनाडु करने का प्रस्ताव संसद ने पारित कर दिया है। 

तमिल भाषा में तमिलनाडु का अर्थ तमिल देश या तमिल धरती होता है। तमिजगम शब्द का अर्थ तमिल घर होता है। जब इस प्रदेश का नाम बदलने का आन्दोलन चला उस समय यह बहस चली कि मद्रास का नाम तमिलनाडु होना चाहिए या तमिजगम। मोटे तौर पर दोनों शब्दों का अर्थ लगभग एक सा ही है।   तमिल भाषा के पुराने ग्रथों में इन दोनों नामों का उल्लेख  है। बोलचाल में आज भी दोनों शब्दों का उपयोग होता है। उस समय  द्रमुक ने प्रदेश का नया नाम  तमिलनाडु किये जाने पर अधिक जोर दिया था तथा यह स्वीकार कर भी लिया गया। 

चूँकि द्रमुक शुरू से ही कुछ अलगाव की नीति पर चल रही है इसलिए इसके नेताओं को तमिलनाडु शब्द में एक प्रकार से उनको अलग देश का आभास होना लगता है और यही बात वह अपने समर्थकों तक पहुँचाना चाहती थी।  इनके नेताओं को अब यह लग रहा है कि राज्यपाल ने तमिजगम का नाम आगे बढ़ा एक नयी बहस को हवा दी है। बीजेपी ने इस मुद्दे को लेकर राज्यपाल के सुझाव का स्वागत किया है। बीजेपी अब यह बताने में लगी है कि वह तमिल संस्कृति, भाषा और अस्मिता को लेकर राज्य के किसी दल से पीछे नहीं है। कुछ मायनों में बीजेपी अब इस मुद्दे को लेकर अन्य दलों से आगे रहना चाहती है ताकि वह राज्य में अपने पैर जमा सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)